1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा) प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ /पुरोहित/ आ' स्त्री-धन केर संदर्भमे
पुरातात्त्विक ,भाषावैग्यानिक आ’ साहित्यिक साक्ष्य एहि पक्षमे अछि,जे आर्य भारतक मूल निवासी छलाह। आर्य भाषा परिवारक नामकरण मैक्समूलर द्वारा कएल गेल छल। द्रविड़ परिवारक नामकरण पादरी रॉबर्ट काल्डवेल द्वारा कएल गेल छल।आर्यक आक्रमणक सिद्धांत आयल ग्रिफिथक ऋग्वेदक अनुवादमे देल गेल फूटनोटसँ। पहिने तँ ई बात जे ई नामकरण विदेशी विद्वान द्वारा देल गेल छल, ताहि द्वारे ओकर अपन उद्देश्य होयतैक।
सरस्वती नदी,जल-प्रलय, मनु, आ’ महामत्स्यक कथा, गिल्गमेश कथा काव्य, प्राणवंतक देश गिल्गमेशक खोज, सृष्टिकथा आ’ देवतंत्रक विकास एहि सभटाक समाजशास्त्रीय विकासक विश्लेषन आर्य लोकनिक भारतक मूल निवासी होयबाक साक्ष्य प्रस्तुत करैत अछि।
ऋग्वेदमे मात्र्सत्तात्मक व्यवस्थाक स्मृतिक रूपमे बहुवचन स्त्रीलिंगक प्रयोगक बहुलता अछि।
सघोष आ’ महाप्राण ऋग्वेदिक आ’ भारतीय भाषाक ध्वनिक प्रतिरूप नहि तँ ईरानी आ’ नहिये यूरोपीय भाषा सभमे भेटैत अछि। सरस्वती आ सिन्धु धारक बीचक सभ्यता छल आर्यक सभ्यता। सरस्वती धारक तटवर्त्ती भरत, पुरु आ’ अन्य गण सभ मिलि कए ऋगवेदक रचना कएलन्हि। सरस्वतीमे जल-प्रलयक बाद ई सभ्यता सारस्वत प्रदेश सँ हटि कए कुरु-पांचाल आ’ ब्रह्मर्षि प्रदेश-मध्यदेश- पहुँचि गेल। इतिहासमे भरत लोकनिक महत्त्व समाप्त भ’ गेल। एहि जल प्रलयक बाद आर्यजन लोकनिक वंशज लोकनि मोहनजोदड़ो आ’ हड़प्पा नगरक निर्माण कएलन्हि। हड़प्पा सभ्यताक 800 मे सँ 530 सँ ऊपर स्थान, एहि लुप्त सरस्वती धारक तट पर अवस्थित छल। सिन्धुक धार पर एहि स्थल सभक बड्ड कम निर्भरता छल, आ’ जखन सरस्वतीमे पानिक प्रवाह घटल तँ एहि सभ केन्द्रक ह्रास प्रारम्भ भ’ गेल।
पहिने सरस्वतीमे जल-प्रलयसँ आर्यक पलयन भेल(ऋगवेद आ’ यजुर्वेदक रचनाक बाद) आ’ फेर सरस्वतीमे पानि कमी भेलासँ दोसर बेर आर्यक पैघ पलायन भेल(अथर्ववेदक रचनाक पहिने)।अरा-युक्त रथक वर्णन वेदमे भेटैत अछि। नहि तँ ई पश्चिम एशियामे छल आ’ नहिये यूरोपमे। फेर ई रह, भारतीय देवनाम,शिल्प,कथा, अश्वविद्या,संगीत, भाषिक तत्त्व आ’ चिंतनक संग उद्घाटित होमय लागल पश्चिम एशिया, मिश्र, आ’ यूनानमे।
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