'भालसरिक गाछ' जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/पर ई प्रकाशित होइत अछि।
Wednesday, May 6, 2009
कथा- पराधीन सपनहुँ सुख नाहि – शेफालिका वर्मा
हे अय, अहाँ सभ तँ नारी-स्वतंत्रताक लेल एतेक बात बजैत छी, एतेक कथा करैत छी मुदा हम बाजी। हमर तेवर देखतहि ड्राइंगरूममे बैसल तीनू गोटे चौंकि गेलाह हमरा उत्साहित करैत बजलाह-हँऽ हँऽ बाजू, अहींक विचार हम सभ सुनी-
हमर मुँहपर तीन जोड़ आँखि अपन पाँखि फड़फड़ाव लागल। मुदा, हम निर्द्वन्द्व छलौं। लोक बजैत अछि जे स्त्रीकें परिवारमे बान्हि छान्हि कऽ बेड़ी पहिरा कऽ राखि देल गेल अछि। हम तै मतक एकदम विरुद्ध छी। "आँय-सुदेश बाबू चौंकि गेलाह, प्रभास अकचका गेल आ ई मन्द मुस्की संग बाजलाह-’तखन आगू मेम साहब?’ विधाता सृजन कयलनि स्त्रीक आ पुरूषक। दुनूक देहयष्टिक निर्माण मे भिन्न-भिन्न तत्त्वक योग अछि। दुनूक निर्माणक फारमूला भिन्न अछि।
"नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पग तलमे
पीयूष स्त्रोत सी बहा करो
जीवन के सुन्दर समतल मे-ई बात मिथ्या नय अछि।
भौजी, अहींक जाति तँ नारा उठौलक-ममतामयी दुर्बलताक लाभ उठा कऽ स्त्रीक बटरिंग कयल गेल अछि- आ अहीं बजैत छी...सुदेश विस्मित सन टेबुल पर अपन आंगुर ढक-ढक करैत बाजल। सुदेश बाबू, स्त्रीक निर्माण जाहि तत्त्वसँ कयल गेल अछि, ताहि लेल ओकर सभसँ उत्तम वा सहज स्वरमे कहल जाय जे ओकर यथोचित स्थान ओकर परिवार अछि। हम स्त्रीके राजनीतिमे भाग लेनाइ तखनै नीक बुझैत छी जखन ओ पारिवारिक नीति मे सफल होय। अपन हिन्दू धर्ममे सभ दिनसँ संयुक्त परिवारक परंपरा चलि आबि रहल अछि, एकटा मर्यादाक संग, एकटा गरिमाक संग। कोनो संयुक्त परिवार बिना कोनो गृहनीति वा राजनीति मे नहि चलि सकैत अछि। गृह संचालनो पालिटेक्से अछि। आ ओहि राजनीतिक प्रधानमंत्री रहलीह स्त्री। कोनो संयुक्त परिवार रहबाक या टुटबाक मुख्य कारण स्त्रीए छथि। ओकरापर तँ समस्त परिवारक सुख-दुःख नीक बेजाय सभटाक भार रहैत अछि जे अपन त्याग आ सहिष्णुताक कारण स्त्रीए सोझरा सकैत अछि। तखने ने भरत सन भारतक सन्तानो पैदा कऽ सकैत अछि। ओकर प्रकृतिए ताहि प्रकारक अछि जे ओ सभ किछु सहि सकैत अछि-रौ छाहरि नोर-मुस्कान, हँसी रूदन...
दीदी, यू आर ग्रेट-बीचमे प्रभास बाजि उठल-
ग्रेट हम की रहलौं प्रभास। पश्चिमसँ आय हवा आइ पूरबक स्त्रीके बेसहारा पात जकाँ उड़ौने जा रहल अछि। स्त्री अपन परिवारक राजनीतिमे एतेक असफल रहलीह जे आइ शत-प्रतिशत परिवार टूटि रहल अछि। कोनो घरमे चैन नहि।
डॉ० राजेन्द्रप्रसाद, नेहरू आदिक बाद कोनो भविष्यमे देशक संतान नय अछि जे अनुकरणीय होय। एकर मुख्य कारण थीक प्रधानमंत्रीक अयोग्यता।
भौजी बीचमे बात काटैत सुदेश बाबू बजलाह-अयोग्यता तँ अहूँ मे किछु अछि।
आब अकचकएबाक बारी हमर छल। एतेक कालमे हम सभ प्रधानमंत्रीक भाषण सुनि रहल छी, मुदा एक कप चाहक व्यवस्था एहि स्पेशल सभा लेल नय अछि...हीयर, हीयर-प्रभास थपड़ी पाड़ि उठल। हम लजा गेलौं-
ह ऽ ह ऽ शिवा, अहाँ हारि तँ मानलौं अपन सिगरेट जरबैत ई बाजि उठलाह। हम तँ साँचे अपन सोहमे बिसरि गेल छलौं जे एहिठाम हमर आत्माभिव्यक्तिक हुनका समक्ष शब्दमे, भाषणमे नहि, चाहक गरम गरम कप चाही, जाहि संग चाहल अनचाहल सभ घोंटा जाइत अछि।
भनसाघरमे चाह बनबैत छलौं। कानमे ड्राइंगरूमक गप आबि आबि अपने बैसि जायत छल।
हिनकर स्वर छल...शिवाके हम चाहितो पालिटिसियन कहाँ बना सकलहुँ-हमर मोनमे हँसी आबि गेल हिनक सरल कल्पना पर। खुदा न खास्ता हम कोनो मंत्री बनि जइतौं तैं पाछाँ-पाछाँ एकटा पुर्जी लय हमरासँ भेंट करबो लेल बेहाल रहताह। पता नय-तखन हमर मोन केहेन रहत-"आ हम कल्पनामे डूबल छलौं। हमरा तँ स्त्रीकें नौकरीयो केनाय पसिन्न नय। जाहि घरमे पति पत्नी दूनू नौकरी करथि। दूनू थाकि हारि घर आबथि, संगे संग बालबच्चा सेहो स्कूलसँ थाकल ठेहिआयल घर आबय-सभ एक दोसरापर बिगड़ल, खौंझायल। घर के कोनो व्यवस्था नय, कोनो सलीका नय, ओहि घरक की होयत? नौकरपर घर छोड़ल जाय तँ जे घरमे वस्तु अछि, सभ स्वाहा। बच्चा सभ स्नेहक अभावमे, ममत्वक अभावमे सुखा जाइत अछि, ओकर प्रकृति रूच्छ भए जाइत अछि...कतेक घर हम देखने छी आ दुःख होयत अछि जे दू पैसा यदि पति कमाइत अछि तँ ओ नोन रोटी खाय किएक नय संतोष करैत अछि। आवश्यकत तँ अनेक वस्तुके चाहब, हेबे करत। जावत संतोष नहि तावत आनंद नहि। आफिसक थाकल ठेहिआयल पति जखन घर अबैत अछि, बाल बच्चा भूखल पिआसल अबैछ, तखन स्त्री अपन घरके नेहक कान बनौने, एकटा स्वर्गक मुस्कान अधर पर नेने पलक पाँखि दरवज्जा पर बिछौने रहैत अछि। पत्नीक अधरक मुस्की देखैत पतिक सभ थकान दूर, माताक स्नेहिल बाँहि भेटैत देरि कि मुरझायल मौलायल नेना हरिअर भए जायत छैक। एक स्त्रीक लेल एहिसँ पैघ गौरव की। भौजी-चाह बनबैत छी कि कविता कऽ रहल छी-सुदेश बाबूक स्वरसँ हमरामे चेतना भरि गेल। चारि कप चाह थोड़ेक निमकी प्लेटमे राखि ड्राइंगरूम अबैत छी। ठहाकाक गरमीसँ कोठरी उसनाइत छल। थ्री चीयर्स फॉर दीदी-निकीक प्लेट देखैत प्रभास उछलि गेल-लांग लीव आवर प्रधानमंत्री-चाहक कप उठबैत सुदेश बाबू बजलाह।
हौ-तोरा सभ हमर घरके रहऽ देबहक कि नय? देहक फुला-फुला कऽ दिमाग आसमान पर चढा। हिनकर स्वर पर हम हिनको दिसि चाहक कप बढ़यलौं आग्रह मिश्रित कर्तव्यक संग।
जे कहऽ, विशेष की कहू। तों बड्ड फारचुनेट छह। जाहि ठाम सेक्रेटरिएटक बाबूगिरी करैत करैत लोक असमयमे बुढ़ा जायत अछि-ओकर कोनो भविष्य नय, कोनो अतीत नय-समरस, समतल जीवन, ताहिठाम तोहर घर एतेक प्राणवंत, एतेक जीवंत रहैत छह। एकर प्रत्यक्ष प्रमाण भौजी छथुन, नो डाउट। सुदेश बाबू चेहराक लकीर गहराय गेल-भरि दिन खटि मरि घर जाइत देरी वएह हरहर-खट खटेनाय अछि। ओ नय अछि। अरे भाग्यवान, पूर्णिमाक दिन तँ सभटा दरमाहा, अहींक हाथमे दऽ दैत छी, आब अहाँ सम्हारू। हम ककर जेब काटब, ककर गर काटब मुदा नय, आइ फल्लां ओतऽ एतेक बढिया शरबत सेट आयल अछि, फल्लाँक कनिया नीक नुआ पिन्हने अछि। एहि ठाम तँ शरबत राखबाक उपाये नय आ शरबत सेट एकटा विद्रूपता भरल स्वर छल सुदेश बाबूक।
कोठलीमे एकटा गंभीर उदासी पसरि गेल ओह, सुदेश बाबू, ई कोन रूदनक गान लऽ बैसलहुँ-प्रभास अपन चहकी सँ उदासी तोड़बाक प्रयत्न केलक-सभ क्यों तँ एके बाटक बटोही थिकहुँ। आ हमरा संग-एहि विग्रह बाबू सभक बिना तँ एहि देशक, एहि सरकारक कोनो काज नहि चलऽ वाला छैक। सरकारक इमारतक न्यों हमही थिकहुँ। ने आगॉं किछु उन्माद आ नय अतीतक अवसाद। छोडू ओ सभ-प्रभासक मजाको सँ सभ जेना काँपि गेल।
सुदेश बाबू-ई एकटा निसांस लैत बजलाह - हम तँ सरिपों भागवंत छी। मुदा, शिवाक समक्ष स्वयंकें अपराधी बुझैत छी। आय दस बरीस ब्याहक भऽ गेल मोन नय अछि जे कहियो एक खंड नूआ आ कि कोनो वस्तुक फरमाइश केने होयत। तीन तीन बच्चाक पढाई आ पटनाक खरचा। कहियो कोनो शिकाइत हमरा लग नय कयलनि। कतेक बेर मूड खराब रहैत अछि, आफिसक तामस हिनकापर उतारि दैत छी मुदा-शिवा घरमे टेपरिकार्डर जकाँ चलिते रहैत छथि। अहॉं देखिते छी जे हिनकर एहि गुणक कारणें दोस्त सभ हमरा घेरने रहैत छथि। करवनो कखनो हिनक ऐ गुण सँ हमरा ईर्ष्या भऽ जायत अछि-
कनखियाकऽ हमरा दिस तकैत ई हमरा कचकचौलनि। बेस-बेस, बड़ भेल। बड़ सुन्दर भाषण प्रेसिडेन्टक रहल। हम थपड़ी पाड़ैत बाजलहुँ। ई खिसिया कऽ चुप भऽ गेलाह। वातावरण पुनः हल्लुक भऽ गेल। दीदी, एकटा बातक उत्तर हमरा दैए दिअऽ। आठ बाजि रहल अछि। आब हम सभ चलि जायब-प्रभासक उत्सुक नयन दिस हम प्रश्न वाचक दृष्टि देलहुँ।
एक क्षण लेल मानि लिअऽ दीदी, अहाँ ऐहि देशक प्रधानमंत्री, भऽ जायब तँ की करब?
हद भऽ गेल प्रभास जी। अहाँ तँ मजाक करऽ लगलौं-हम लजा गेलहुँ। नहि-नहि भौजी, सुदेश बाबू बाजि उठलाह-"आब तँ एहि प्रश्नक उत्तर अपन बुद्धिमती घरनीक भाषणमे सुनबे करब। प्लीज भौजी-
अरे शिवा, बाजू, बाजू जे जमौनाई अछि, एहि चंडाल चौकड़ीमे जमा लिय। फेर ई मौका नय आओत। ईहो गपक गुदगुदी हमरा लगबऽ लगलाह।
हम कने संयत भेलहुँ-देखू, जखन अहाँ सभ पुछैत छी तँ अपन आन्तरिक विचार हम कहैत छी। भारत ग्राम प्रधान देश अछि। एहि देशक उन्नति तखने होयत जखन गामक उन्नति होय। हम सभसँ पहिलुक नियम बनबितहुँ कोनो मंत्री कोनो बाहरमे आम सभा नय कऽ सकैत अछि। ओ जखन कोनो मीटींग वा सभा करैथ देहातेमे।
हिनकर ठोरपर हँसी पसरि गेल। सुदेश आ प्रभास सरल शिशु जकाँ हमर कथन आत्मसात कऽ रहल छलाह-से किएक भौजी?
एकर बहुत कारण अछि सुदेश बाबू। सभसँ पहिने अन्हारमे पड़ल गामक लोक देखत जे हमर देशक कर्णधार के छथि जिनका हम प्रतिनिधि चुनि के पठौने छी। जनतामे नवीन उत्साह जागत। कोनो ग्रामके सड़कक व्यवस्था नहि छैक। यदि कोनो मंत्री कोनो ग्राममे अपन सभा राखैत छथि तँ अधिकारीगण ओहि ग्राम धरि पहुँचबा लेल सड़क बनवाय देताह। समस्त गामक सफाई भऽ जायत। जाहि ढंगक दौरा मंत्रीगणक रहैत छनि, रोज कोनो ने कोनो मंत्री, कोनो ने कोनो गामक दौरा करताह आ तखन देखतहि देखतहि सभ गामक काया पलट भऽ जायत। सुदेश बाबू, जा धरि ग्राम नहि उन्नति करत, ता धरि देश नय उन्नति करत।
भौजी एतेक बात अहाँ कतऽ सँ सीखने छी-सुदेश बाबू विमोहित छलाह। ओहि दिन चूड़ा वाली आयल छली सुदेश बाबू। सौंसे देहमे हड्डी पर चाम लटकल। हम सभ कोटामे जानितो नय छी की आबैत अछि आ की भेटैत अछि? एक मुट्ठी चीनीयो बाल बच्चा कोटा महक नय खेलक। हमरा सभ लेल कोन देवता आ कोन सरकार? क्यो नहि-हमर छाती मे आगि धधकि गेल छल सुदेशबाबू-आँखि मे जल-
माँ माँ आठ बरीसक रींकु हमर कोरसँ झुलि गेल- माँ भूख लागल अछि...
एतेक सुन्दर साँझ लेल धन्यवाद भौजी-
हँ दीदी सरिपों- दूनू गोटे उठैत बजलाह।
हँ भौजी सभ किछु, आ जे भौंजीके अनलक से किछु नहि-
अहाँ दीदी से धन्यवाद लऽलेब-प्रभासक उक्ति संग एकटा ठहाका अन्धकारमे विलीन भऽ गेल।
हमर जिनगी, कोन घाटी, कोन पर्वतमाला, कोन अरण्यमे गुजरि रहल अछि, केओ जनैत नय अछि। ड्राइंगरूमक फिलासफी आ जिनगी दूनूमे कतेक अन्तर अछि। जिनगी जिनगी अछि जकर अपन सिद्धान्त अछि, अपन नियम अछि, अपन कानून अछि लोकके प्रताड़ित करबाक, लोकके रूदनक सरगम सुनयबाक, लोकके दुःख पहुँचएबाक-ताहिमे हमर जिनगी? जितगीसँ फराक एक आर जिनगी अछि, जाहि ठाम आँखिक आकाशमे सपनाक इन्द्रधनुष उगल रहैत अछि। सभक दुःखके अपन दुख बनाय घंटो ओकरा लेल सोचैत रहैत छी। एतेक कुंठा आ संत्रासक मध्य हम हँसिते रहैत छी मात्र अपन परिवार लेल। स्त्री जावत जीबैत अछि खंड-खंडमे, दोसरा लेल बाँटल, ओकर अपन किछु नय होयत छैक-जखन ओकर मृत्यु होयत अछि तखन ओ संपूर्ण भऽ कऽ विदा होयत अछि। के व्यथा बुझत? सून आंगन, सून दुपहरिया आ छहक एक कप लेल हमर मोन छटपटा उठल। जहिना लोक शराबमे अपन दुःख बिसरि जायत अछि तहिना हम चाहक कपमे अपनाके विस्मृत कय हँसीक एकटा टंकी एकत्रित कय लैत छी। ओहि दिन ई कहने छलाह शिवा, अहॉं एतेक चाह नय पीबू। ई स्लो प्वायजनिंगक काज करैत अछि- हम चौंकि उठल छलौं/स्लो प्वायजनिंग, ई तँ हम कहियो नए सोचने छलौं। ठीके तँ अछि। तखन तँ मॄत्यु दिसि शीघ्र बढ़बाक हमर प्रयास भीतरे भीतर-शतप्रतिशत सफल भऽ जायत। ई स्लो प्वायजनिंग काज करैत? हमर माथ भारी भऽ गेल। अपनासँ भगवाक प्रयास हम करैत छी-एकान्त हमरा अपनामे लील लैत अछि-शिवा, अहाँ कोनो कॉलेज ज्वाइन कऽ लियऽ। हिनक मोन हमर मोनक सँ संवेदनशील भऽ उठैत अछि-भरि दिन एकसर घरमे किछु सोचैत रहैत छी- हम हुनक मुँह बन्न कऽ दैत छी नय-नय हमरा अपना घरमे खूब मोन लगैत अछि।
मुदा, नय हम स्वयं के बहटारैत छलौं। हमर परिवारके ककरो कोनो चिन्ता नय होय आ अपनाके कुशल सिद्ध करबा लेल हम सभके खुश राखबाक प्रयत्न करयऽ लागलौं। जनैत छी, एक आदमी सभके खुश नय राखि सकैत अछि मुदा हमर ई प्रयास। प्रतिफल भीतरे भीतर हम टुटैत गेलहुँ, कतहु बड़ दुःखी रहऽ लागलौं। जनैत छी, महगी बड़ बढ़ि गेल अछि। जोड़ैत छी तँ आमदनीसँ बेसी खर्चे भऽ जायत अछि। कहियो-कहियो लगैत अछि दुनियाक जतेक अपराध अछि, जतेक दुर्भाग्य अछि, सभक मूलमे हमही छी। सभटा अनर्थक जड़ि हमही छी। आ हमर मोन दस बरीस पहिलुक विस्मृत अतीतक अन्हार प्रकोष्ठ जकरा हम एकदम बिसरि गेल छलौं, प्रायः अवचेतनक दुआरि खोलि आस्ते से आबि गेल-जखन हम द्विरागमनमे सासुक पएर छूने छलौंह, झनकारैत स्वर सासुक सुना पड़ल- हँऽह, दान दहेज किछु नय कथीपर पएर छूब? अहाँ सभक लक्षण तँ हम पहिनहि देख लेने छलौं। कोन डकैत सभक फेरमे पड़ि गेल छी-हम कानऽ लागल छलौं। हम नय बुझैत रही जे एहन दुर्व्यवहार हमरा संग किएक भऽ रहल अछि? ई तँ साँच अछि जे हमर बाबूजी दस हजार टाका, दान दहेज नय दऽ सकलाह-मुदा, तकर प्रतिफल की एतेक? हम साहसक केलौ अपन घरके अपन बनएबाक, अपन सासु ससुर, देआदिनी सभक स्नेही बनबाक। भरि-भरि दिन खटैत छलौं मुदा हमर सासु टोल-पड़ोसक संग हमर खिस्सा करैत छली। हम केकरोसँ घृणा नय कऽ सकलौं। जनैत रही जे घृणा घृणाकें जन्म दैत अछि। कहियो प्रेमकें जन्म नय दऽ सकैत अछि। भैया कहैत छलाह साँच पुतहु वएह थिकीह जे बेटी बनि सासुरमे राज करथि। मुदा, हम देखि लेलौं अपन समाज पुतहुकें कहियो बेटी नय मानि सकैत अछि। ओकरासँ खाली अपेक्षा रहैत छैक। हम बेटी बनऽ चाहलौं मुदा सासुक उपदेश आ तिरस्कार भेटल। एक दिन घरमे कोनो अप्रिय घटना भऽ गेल छल, जकर मूलमे हमरा राखल गेल, जखनकि हम जानितो नय छलौं कि की भऽ रहल छैक आ की भऽ गेलैक? तैयो हम सासुक पएरपर खसि पड़लौं-हमरा सँ अनजाने कोनो गलती भऽ गेल तँ माफ कय दिहथि। हमर नैहरक लोक जे लोक गलती केने होय मुदा हम तऽ आब हिनकर बेटी छियनि। आब तँ इएह हमर माए छथि। हिनकर खुशी हमर खुशी छी। अपन बेटी पर तमसाएल नय रहथु? आ हम फफकि-फफकि कानऽ लागलौं। पएर खीचैत माय बमकि उठल छलीह-
’हे हमर पएर तएर नय छूबू। एतेक नकलपचीसी हमरा पसिन्न नय। हमर बेटी सभक परतर करब कोन बूतापर? जतऽ गेल रूप आ धनसँ घर भरि देलक। माय बापमे हौंसले नय रहए। हौसला रहितैक तखन ने? बेटी भारी लागलैक हमरा घरमे फेकि देलक। हम कहियो प्रतिवाद नय केलौ। एकटा दहेजक कुप्रथा समाजक कोढ़क कारणें हमर ई गंजन होइत रहल। हुनकर लेल तँ आर बेटा बेटी छल मुदा हमरा लेल तँ एकटा वएह सास-ससुर फेर हम हुनकर बातक दुःख किएक मानी?
ठक-ठक ठक...क्यो केबाड़ खटखटौलक। सिनेमाक रील जकाँ आगू मे सभटा अतीत पसरि गेल। केवाड़ खोलैत छी ’मालकिनि, दूधक हिसाब कऽ दितियैक। हमर चेहरापर म्लान मुस्की आबि गेल-
’आब तँ साँझ पड़ल जाइत छैक। आफिससँ, स्कूलसँ एबाक बेर भऽ गेल। काल्हि हिसाब कऽ देब।’
दूधवाली प्रायः हमर म्लान चेहरा, नोरायल आँखि आ व्यथित अंग देखि मुस्की मारैत चलि गेल- ओह आय मालिक अओता तँ...टूटल चूड़ी देखि हास हमर अधर पर आबि गेल। एनामे अपन चेहरा अपने अनचिन्हार लागि रहल अछि। पाइप लग जा कऽ मुँह हाथ धोय अतीतकें अपनासँ अलग धकेलैत छी। सभ अबैत होयत, मुदा, हमर समस्त तन मनके अतीत अपन बाहुपाशमे कसने अछि। नय नय, अहाँ जाउ। हमरा जीबऽ दिअऽ प्लीज़। कहियो काल अहाँके की भऽ जायत अछि, जे एकटा उद्धत प्रेमी जकाँ हमरा आलिंगन बद्ध कयने रहैत छी? एतेक नय सताउ हमरा। हम अतीतक बाँहि अपन तन मोन परसँ हँटबैत रहलौं-हिनका एबासँ पहिने, सुदेश, प्रभासके एवा सँ पहिने अतीत कें भगाबैक प्रयासमे रहलौं-ठक...ठक...ठक...
मेम साहब-ई तरकारीवालाक स्वर छल। मोन जेना फेर चंचल भऽ आर्थिक जगत मे आबि गेल-
’मेमसाब, पहिलुका पैसा दऽ दैतियैक-’पैसा-पैसा-पैसा। विग्रह बाबू सभक राजमे मासक पन्द्रह-बीस तारीखसँ अमावस्या शुरू भऽ जाइत अछि। पेटीमे देखैत छी पन्द्रह टाका मात्र बाचल अछि। पाँच टाका दय देबैक तँ बचल दस टाका आ मासक शेष दिन आर-
आइ दऽ दियऊ। बच्चा सभ लेल आटा कीनने जायब-हमर माथ पर झन्न सँ ओकर करूण स्वर लागल-उठा कऽ पाँच टाका ओकरा दऽ देलहुँ। मोन पड़ल पचीस टाका भोरमे हिनका देने छी। मोन किछु ठाढ़ भेल। कहुना मिलाय जुलाय-अमावस्याक दिन काटिए लेब-हमर मोन पुनः हल्लुक भऽ सिमरक फूल जकाँ मुक्त पवन संग बिहरऽ लागल। सभ बच्चा जलखै कय खेलएबा लेल चलि गेल। ड्राइंग रूममे आइ ई असगरे रहथि। वातावरण सर्द छल, कोनो चौकड़ी, नय कोनो फिलासफी, कोनो डायलाग कोनो भाषण किछु नय छल। हुनक चेहरा भाव शून्य छल।
’की बात नय शिवा, थाकि गेल छी।’ ’चाह बनाय दिअ की?’
’चाह?’ कनि हँसैत बजलाह-अहाँ अपना रूममे शिवा हमरा बकसि दिअऽ।’
छीः की बजैत छी।’ हम एक गिलास नेबि पानि हुनका आगू राखि दैत छी-एकटा बात बाजी-’हम हँसिते-हँसिते बाजलौं। हम जनैत छी जे हिनको साइकोलौजी विचित्र अछि। दोस्त सभ लग एकदम सहज रोमांटिक मूडमे रहैत छलाह। एकसर हमरा लग? सौंसे संसारक टेंशन हमही भऽ जायत छी। हमर चेहरा पर अपन दृष्टि निक्षेपमे लैत ’अहाँक संगमे किछु टाका अछि?’
नय नय, नय अछि। की बात थीक? हिनका स्वर विचित्र छल
दूधवालीके टाका देबाक अछि।
’आब दस टाका...’
मुँहक बात मुँहे रहल-
सभटा टाका खतम भऽ गेल। बाकी दस दिन आर मासक बाकी अछि। कोना चलत? की भऽ जाइत अछि टाका सभ?हमरा संग किछु नय अछि। अहाँ जाउ, आ ई पएर पटकैत, बड़बड़ाइत विदा भऽ गेलाह।आ तखन हमर मोने अपन सभ हँसी, सभ फिलासफी, सभ डायलाग, भाषण, सभ सिद्धान्त मुँह दुसैत नेना सन लागल। कतऽ गेल सुदेश आ प्रभास। प्रत्येक पुरुषक दुई रूप होयत अछि। जकरा झेलऽ पड़ैत छैक स्त्रीके। हम अपना लेल नय, घरेमे खर्च करैत छी-टाका हुनकर जेबमे ओहिना पड़ल छल। हम अपन प्रतिवाद अपने भऽ गेलौं। हमर हृदयक अन्तरतमनसँ जेना प्रतिरोधक एकटा चीत्कार क्षण भरि लेल उठल-स्त्रीक आर्थिक स्वाधीनता अत्यावश्यक अछि। जाहिसँ एक एक पाइक लेल ओकरा मर्दक मुँह नहि ताकऽ पड़य। आर्थिक स्वाधीनता-आह ’पराधीन सपनहुँ सुख नाहि’ रोम-रोममे प्रतिरोध उठऽ लागल।
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नीक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसभटा टाका खतम भऽ गेल। बाकी दस दिन आर मासक बाकी अछि। कोना चलत? की भऽ जाइत अछि टाका सभ?
ReplyDeletebad nik katha
bad nik katha
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