Pages

Saturday, June 27, 2009

कविता-जननी-आशीष अनचिन्हार

जननी

एखन
लोकक आपकता बेसी घनहन भएगेलैक अछि
ओहू सँ बेसी
बेगरता
आब अहाँ जे बुझिऔ
जे कहिऔ
अहाँ कहि सकैत छिऐक
बेगरता अविष्कारक जननी थिक
मुदा हम नहि
हमर कहब अछि
अविष्कारक नहि
बेगरता
आपकताक जननी थिक.

4 comments:

  1. बहुत सटीक व्यंग्य

    ReplyDelete
  2. जननी
    एखन
    लोकक आपकता बेसी घनहन भएगेलैक अछि
    ओहू सँ बेसी
    बेगरता
    आब अहाँ जे बुझिऔ
    जे कहिऔ
    अहाँ कहि सकैत छिऐक
    बेगरता अविष्कारक जननी थिक
    मुदा हम नहि
    हमर कहब अछि
    अविष्कारक नहि
    बेगरता
    आपकताक जननी थिक.

    bah aashish ji

    ReplyDelete