Pages

Monday, June 29, 2009

अफरल पेट- मनीष झा "बौआ भाइ"

सजल धजल बड़ सुंदर लागल
दरबज्जा सगरो
बरियाती स'
तकलौ त' तकिते रहि गेलौं
सघन समाज आ सरियाती स'

उचित व्यवस्थाक प्रश्न नहि पूछू
कहैत लगैइयै मोन गदगद
पैर धोआय कुर्सी बैसोलन्हि
बाँट' लगला चाह आ शरबत

बिग्जी,मिठाई के हाल नै पूछू
ऐल गेल कत्तेको प्लेट
भोजन करब त' बांकिये छल
ताबतहि में अफ़रि गेल पेट

किछु क्षण केलहुं विश्राम ओतय
कुरुड़ क' लेलहुं भक तोड़ि
भोजनक वास्ते आग्रह केने
व्यक्ति एक ठाढ़ छलाह कर जोड़ि

सभ बरियाती क्रम-क्रमशः
ग्रहण केलहुं बैसक आसन
भोजन परसथि युवक सदस्यगण
वृद्ध ठाढ़ करै छथि शासन

एक कात बैसल नवयुवक सब
दोसर कात बुजुर्गक पाँत
युवक लोकन्हि बक ध्यान लगौने
बुजुर्गक मुँह में बान्हल जाँत

खाइत देखि बरियात के कहलन्हि
अपनेंक घर पर नहि अछि खर
एतबहि सुनि युवक एक बजलाह
अपनेंक कृपा स' की कहू सर
बन्हने छी खाली पक्के के घर

देलन्हि ठहक्का सब बरियाती
संग देलन्हि सम्पूर्ण समाज
वाह वाह क' गूँजि उठल स्वर
ओ युवक सबहक बचौलन्हि लाज

विविध प्रकारक भोजन केलहुं
तरूआ, तरकारी, मांछ, मिठाई
पत्र शुद्धि दही केर जोग स'
पेट अफ़रि गेल मोन अघाई

भोजनोपरांत प्रस्थानक तैयारी
लेलौं विदा जनऊ-सुपारी पाबी
सभा मध्य में अपन ई रचना
परसै छथि "मनीष जी" लाबि
ग्राम+पोस्ट- बड़हारा
भाया - अंधरा ठाढी
जिला -मधुबनी (बिहार)
पिन-८४७४०१
http://www.manishjha1.blogspot.com/

7 comments:

  1. bad nik kavita, samajik yatharth ke chitrit karait

    ReplyDelete
  2. खाइत देखि बरियात के कहलन्हि
    अपनेंक घर पर नहि अछि खर
    एतबहि सुनि युवक एक बजलाह
    अपनेंक कृपा स' की कहू सर
    बन्हने छी खाली पक्के के घर

    देलन्हि ठहक्का सब बरियाती
    संग देलन्हि सम्पूर्ण समाज
    वाह वाह क' गूँजि उठल स्वर
    ओ युवक सबहक बचौलन्हि लाज

    Badd neek, bahut sundar.

    ReplyDelete
  3. मनीष..अहां त..हिला देलियैक..एक दमे सं बरियाती में ल जाक बैसा देलहुं.....बड्ड नीक कविता।

    ReplyDelete
  4. bahut nik prastuti, ehina likhait rahoo...apne sa paryapt apeksha achhi

    ReplyDelete
  5. बिग्जी,मिठाई के हाल नै पूछू
    ऐल गेल कत्तेको प्लेट
    भोजन करब त' बांकिये छल
    ताबतहि में अफ़रि गेल पेट
    bah

    ReplyDelete