'भालसरिक गाछ' जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/पर ई प्रकाशित होइत अछि।
Saturday, June 20, 2009
पता नहि घुरि कए जाएब आकि-गजेन्द्र ठाकुर
“पता नहि घुरि कए जाएब
आकि एतहि मरि-खपि
बिलायब
घर आँगन बहारि
गाममे
आबी दुआरि
दए दूभि गाएकेँ
मालक घरमे घूर लगाय
फेर पैंजाबमे
चाहक स्वाद कतेक नीक
दिन भरि खटनीक बादो
नहि थाकए छलहुँ मीत
आब सुनैत छियैक जे चाहमे हफीम रहैत छल मिलाओल”
तखने ओहि बच्चाक सोझाँ
घोरनक छत्ता खसल
मोन पड़लए गाम
घुरि चलू देश बजाओल
मिथिलाक माटिक वास
आमक आएल अछि मास
गाछक पात खसि रहल
लजबिज्जी सभ पसरल होएत
गाछक जड़िक चारूकात
नहिए गाछक जड़ि बनेलहुँ
नहिए पोखरिक घाट
एक पेरियोपर जनमल होएत
अक्खज दूभि आ काँट
तरेगणक तँ दर्शनो नहि होइए
प्रदूषण किदनि एतए
रोकलक चन्दमामाकेँ
थारीयोमे आबएसँ
हमरा ई सभ किदन बिहारी कहैए
क्यो लए चलू देश घुरा कए
मोन नहि एतए लगैए
माएक बरतन टिनही जहिया किनाएल
कतेक हँसल रही प्रसन्न भए सभ भाए
बेरा-बेरी खाइत ओहि थारीमे
एहि दिल्ली नगरियामे
स्टीलक बरतन बासन
मुदा स्वाद ओहि टिनही थारीक
जे स्वादि-स्वादि खयने रही
पता नहि घुरि कए जाएब
आकि एतहि मरि-खपि
बिलायब
बकड़ीक भेराड़ी
खरड़इत सुखाएल पात
पोखरिक महारपर
बबूरक काँट
उज्जर सपेत बिखाह
मुदा एहि दिल्ली नगरियाक
उज्जर सपेत लोकसँ बेशी बिखाह नहि
जतेक बिखाह बोल
ओहूसँ बेशी मारूख घृणायुक्त दृष्टि
बिहारी ! बिहारी ! स्वरक बीच !
बेचैत छी ककबा पापड़ मसाजर
जाड़क राति
ठिठुरैत ई गाछ
बसात सेहो ओहने चण्डाल
सोझाँमे एकटा गाछमे अछि छह मारल
निकलैत अछि ओकरासँ खून
उज्जर-ललौन
मुदा फेर बनैए थलथल ठोस लस्सा
जाड़मे सुखाएल सन
गरमीमे झरकल सन
ई गाछ-पात
सिखबैए रहनाइ असगर आ एकेठाम
बिनु भेने अकच्छ
सालक साल
ददिया जे दैत रहए अर्घ्य दिवाकरकेँ
पाछूमे खसबैत रहथि पानि तड़ाक
बौआ माने हम
पएर पटकि कूदए छलहुँ छपाक छपाक
पता नहि घुरि कए जाएब
आकि एतहि मरि-खपि
बिलायब
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दिल्ली-पँजाबमे बिहार आ मिथिलाक लोकक विशेष कए बाल श्रमपर ई एकटा मार्मिक कविता लागल ।
ReplyDeleteबबूरक काँट
ReplyDeleteउज्जर सपेत बिखाह
मुदा एहि दिल्ली नगरियाक
उज्जर सपेत लोकसँ बेशी बिखाह नहि
जतेक बिखाह बोल
ओहूसँ बेशी मारूख घृणायुक्त दृष्टि
adbhut varnan
jan jan ke jorai ye ee kavita
ReplyDeletebah, ee bhel kavita
ReplyDeleteजाड़क राति
ReplyDeleteठिठुरैत ई गाछ
बसात सेहो ओहने चण्डाल
hamar katha par jena banal achhi ee kavita,
marmik
नहि बिलायब, चिन्ता जुनि करू. सभ दिन अहिना थोड़्बेक रह्तैक.
ReplyDeleteकविता बहुत नीक भेल.