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Friday, July 3, 2009

कखन होएत भोर-सुस्मिता पाठक

कखन होएत भोर

आइ काल्हिक राति

बहुत नमहर होब’ लागल अछि

दिनक अपन रातिमे पूछैत अछि

परिचय


हवा आतंकित

अन्धकार स्तब्ध

चुप्पीकें चीरैत

सर्द घामसँ जागल चेहराकें

भिजा दैत अछि

हल्लुक सन आहटि

आ कोनो छोटो सन ठक-ठक

एक क्षणक मृत्युक अनुभव

आँचरमे सटि जाइत अछि


घड़ी भ’ गेल अछि बन्न

अथवा ई राति बितबे नहि करत

नहि जानि कखन चिड़ै अनघोल करत

कखन बाजत घण्टी

भोर कखन होएत

कखन होएत भोर


जे कखन फूल फुलएबाक

बचा लेबाक लेल लहलहाइत फसिल

कखन, कोन राति क्यो गढ़त हथियार

सर्द चुप भेल मृत राति

आ सन्देहास्पद आहटि

ठक-ठक केर विरुद्ध

कि भोर कखन होएत

कखन होएत भोर

4 comments:

  1. susmita ji ke badhai etek nik kavitak lel, anshu ji ke seho prastutik lel

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  2. bad nik susnitajik kavita lagal

    क्यो गढ़त हथियार सर्द चुप भेल मृत राति आ सन्देहास्पद आहटि ठक-ठक केर विरुद्ध कि भोर कखन होएत कखन होएत भोर

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  3. कखन होएत भोर आइ काल्हिक राति बहुत नमहर होब’ लागल अछि दिनक अपन रातिमे पूछैत अछि परिचय हवा आतंकित अन्धकार स्तब्ध चुप्पीकें चीरैत सर्द घामसँ जागल
    excellent

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