'भालसरिक गाछ' जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/पर ई प्रकाशित होइत अछि।
Wednesday, July 22, 2009
बुधनी- सतीश चंद्र झा
घुरलै जीवन दीन - हीन कें
बनलै जहिया टोलक मुखिया।
नव- नव आशा मोन बान्हि क’
सगर राति छल नाचल दुखिया।
घास फूस कें चार आब नहि
बान्हब कर्जा नार आनि क’।
नहि नेन्ना सभ आब बितायत
बरखा मे भरि राति कानि क’।
माँगि लेब आवास इन्दिरा
काज गाम मे हमरो भेटत।
जाति - जाति कें बात कोना क’
ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।
भेलै पूर्ण अभिलाषा मोनक
भेट गेलै आवास दान मे।
दुख मे अपने संग दैत छै
सोचि रहल छल ओ मकान मे।
की पौलक की अपन गमौलक
की बुझतै दुखिया भरि जीवन।
मुदा बिसरतै बुधनी कहिया
बीतल मोन पड़ै छै सदिखन।
पड़ल लोभ मे गेल सहटि क’
साँझ भोर मुखिया दलान मे।
होइत रहल भरि मास बलत्कृत
विवश देह निर्वस्त्रा दान मे।
जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
छै बंधन जीवन मे झूठक।
जकरा अवसर भेटल जहिया
पीबि लेत ओ शोणित सबहक।
सबल कोना निर्बल कें कहियो
देत आबि क’ मान द्वारि पर।
कोना बदलतै भाग्य गरीबक
दौड़त खेतक अपन आरि पर।
भाग्यहीन निर्धन जन जीवन
बात उठाओत की अधिकारक।
नोचि रहल छै बैसल सभटा
छै दलाल पोसल सरकारक।
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नीक कविता...घसल अठन्नी के याद दिला रहल अछि। तमाम विकासक बादो बुधनी के हालत एखन तक ओहिना छैक।
ReplyDeleteमाँगि लेब आवास इन्दिरा
ReplyDeleteकाज गाम मे हमरो भेटत।
जाति - जाति कें बात कोना क’
ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।
bad satish ji
जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
ReplyDeleteछै बंधन जीवन मे झूठक।
जकरा अवसर भेटल जहिया
पीबि लेत ओ शोणित सबहक।
ahank padya bad nik hoit achhi satish ji
घुरलै जीवन दीन - हीन कें
ReplyDeleteबनलै जहिया टोलक मुखिया।
नव- नव आशा मोन बान्हि क’
सगर राति छल नाचल दुखिया।
घास फूस कें चार आब नहि
बान्हब कर्जा नार आनि क’।
नहि नेन्ना सभ आब बितायत
बरखा मे भरि राति कानि क’।
माँगि लेब आवास इन्दिरा
काज गाम मे हमरो भेटत।
जाति - जाति कें बात कोना क’
ई ‘दीना’ मुखिया नहि मानत।
भेलै पूर्ण अभिलाषा मोनक
भेट गेलै आवास दान मे।
दुख मे अपने संग दैत छै
सोचि रहल छल ओ मकान मे।
की पौलक की अपन गमौलक
की बुझतै दुखिया भरि जीवन।
मुदा बिसरतै बुधनी कहिया
बीतल मोन पड़ै छै सदिखन।
पड़ल लोभ मे गेल सहटि क’
साँझ भोर मुखिया दलान मे।
होइत रहल भरि मास बलत्कृत
विवश देह निर्वस्त्रा दान मे।
जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
छै बंधन जीवन मे झूठक।
जकरा अवसर भेटल जहिया
पीबि लेत ओ शोणित सबहक।
सबल कोना निर्बल कें कहियो
देत आबि क’ मान द्वारि पर।
कोना बदलतै भाग्य गरीबक
दौड़त खेतक अपन आरि पर।
भाग्यहीन निर्धन जन जीवन
बात उठाओत की अधिकारक।
नोचि रहल छै बैसल सभटा
छै दलाल पोसल सरकारक।
theeke kahalani sushant ji
muda nav pariprekshyame ahank katha bad nik lagal
satish jee ke kavita bahut nik lagal.
ReplyDeletesachchida nand jha
pokhrauni
madhubani
जाति- धर्म, निज, आन व्यर्थ कें
ReplyDeleteछै बंधन जीवन मे झूठक।
जकरा अवसर भेटल जहिया
पीबि लेत ओ शोणित सबहक।
A nice kavita...True but bitter emotion...