'भालसरिक गाछ' जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/पर ई प्रकाशित होइत अछि।
Tuesday, July 28, 2009
गामसँ पत्र-विद्यानन्द झा
माँ हमरा लिखै छथि पत्रा
टेढ़-मेढ़ आखरें
एकटा कार्ड आ कि अन्तरदेसी
छोट भाइ वा पितियौत
(वत्र्तमानसँ खौंझाएल
तैयो भविष्यक प्रति आशावान)
खसबै छथि ओकरा
बेचन ककाक दलान पर टाँगल
लाल डाकबला बक्सामे
जे कैक सालसँ
धान आ कि गहूमक बोझक बीच ठाढ़ रहला उत्तरो
बिसरल नहि अछि अपन साहेबी
आ दैत रहैत अछि हरदम
एकटा नागरीय मुस्की
शिबू भाइ लगबै छथि
मोहर ओहि पत्रा पर
(सियाही कने सुखाएल जकाँ छै तैयो)
चिन्तनमे लीन
ख’ढ़क जोगारमे
अबैत बरखा कोना काटब राति
बिचारैत शिबू भााइ
लगबै छथि मोहर हल्लुकेसँ
जानकी एक्सप्रेस आ कि पैसंेजरमे चढ़ि
प्रारम्भ करैत अछि
एकटा सुदीर्घ यात्रा
पत्रा
कैक टा नव-पुरान पोस्टमैन
कैक टा चिन्ता आ आशाक वाहक
आ भण्डार पोस्टमैनक हाथें
कैक टा नगर-गाम
बाध-बोन
धार आ पहाड़ टपैत
पहुँचैत अछि हमरा लग अंततः
ई पत्रा
आ हमरा शंका होब’ लगैछ जे
माँ पठौलनि अछि
पत्रा नहि
कोनो पार्सल।
किऐ गमकैछ
नव धान जकाँ
ई पत्र?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
vidyanand jha jik kavita bad nik lagal
ReplyDeleteमाँ हमरा लिखै छथि पत्रा
टेढ़-मेढ़ आखरें
एकटा कार्ड आ कि अन्तरदेसी
छोट भाइ वा पितियौत
(वत्र्तमानसँ खौंझाएल
तैयो भविष्यक प्रति आशावान)
खसबै छथि ओकरा
बेचन ककाक दलान पर टाँगल
लाल डाकबला बक्सामे
जे कैक सालसँ
धान आ कि गहूमक बोझक बीच ठाढ़ रहला उत्तरो
बिसरल नहि अछि अपन साहेबी
आ दैत रहैत अछि हरदम
एकटा नागरीय मुस्की
किऐ गमकैछ
ReplyDeleteनव धान जकाँ
ई पत्र?
ati sundar
bhavnak uttam abhivyakti
ReplyDelete