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Monday, September 28, 2009

डमरुक नादसँ भागत कुसंस्कार ?
















जितेन्द्र झा
मैथिली लोकरंग(मैलोरंग) रविदिन नयां दिल्लीमे जल डमरु बाजे नाटक मन्चन कएलक । कोशी नदीक बाढ़िक विभीषिका आ मिथिलाक सामाजिक कुरीतिके एक्कहिटा मालामे गांथके काज भेल अछि - जलडमरु बाजेमे ।
कोशीक बाढ़िमे सभ किछु दहा गेलाक बादो विचारक कुसंस्कार नई धोआइ छै कोशीक पानिसँ । जातीय कुसंस्कृति, कुसंस्कार र वर्गीय भेदभाव केनाक' लोकके जकडनहि रहैत छै से ई नाटकमे निक जकाँ देखाओल गेल अछि । पैघ जाति- छोट जाति, बडका छोटकासं उपर उठबालेल ई नाटक प्रेरित करैत अछि । कोशीमें पानि अबैत छैक आ चलि जाइत छैक मुदा नर्इं जाईत छैक परम्परागत रुढिवादी विचार, सामन्ती सोच आ बाह्र आडम्बर ।
नाटकमे कोशी बाढ़िसं पीडित अपन बासलेल भटकैत भुखला-भुखली, रामभरोसे, मुंहचीरा, सुप्पी, रामकली, गहना, डोमा, प्यारे सहितके पात्र मिथिलाक जमीनी यथार्थके चित्रण करैत अछि ।
रामे·ार प्रेम लिखित एहि नाटकके निर्देशक छथि प्रकाश झा । हिन्दीमे लिखल एहि नाटकके मैथिलीमे प्रकाश झा आ पवन अनुवाद कएने छथि । नया दिल्लीक मण्डी हाउसक श्री राम सेन्टरमे मे मन्चित नाटक देखबालेल मैथिली अनुरागीक बेस जमघट छल ।
दशमीमे अपन गामसं दुर रहल मैथिलके मैलोरंगक नाटक मात्र मनोरंजन नहि अपन गामघर याद आ कोशीक कोप सेहो याद दिया देने रहैक । मैथिली रंगकर्ममे निरन्तर सकृय मैलोरंग ई नाटक मन्चनसं प्रशंसाक पात्र बनल अछि ।

1 comment:

  1. जितमोहन झाँ जी मैथिली में रचित नाटक "जल डमरू बाजे" से परिचित कराने के लिए धन्यवाद।
    मैथली भाषा मुझे सदैव आकर्षित करती है किन्तु अभी इसमें लिखने का साहस नहीं जुटा पाया।

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