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Tuesday, September 29, 2009

गाँधी-दयाकान्त


दीवा राति स्वपन एक देखल
गाँधी जी सिरमा में ठार
वस्त्र लंगोटी हाथ में डंडा
बिना मांस के काया हार
बौया हमरा स्वर्गलोक में
आत्मा करैया सत्तत धित्कार
स्वर्ग समान छल जे भारतवर्ष
के करत आब ओकर रखवार
कि भेल हमर खादी, चरखा
गीता, लंगोटी, लोटा आ खरपा
कि भेल हमर सपनाक रामराज
के चोरेलक टैगोरक 'ताज'
किया उठल अहिंसा सँ विश्वास
गृह हिंसा सँ बिछल आई लाश
प्लास्टिक सँ आई बनैया तिरंगा
नेतोक देह पर नहि खादीक अंगा
टी-सर्ट नीकर में घुमैया नाड़ी
नहि पहिरैत कियो खादी साड़ी
फेर फिरंगीक भय गेल राज
MNC के नाम पर चलबैया काज
घुश देब कर्तव्य आ लेब अधिकार
मानवता के केलक धिक्कार
कोना रहत भारत अछुन्न
हर प्रदेश के अलगे धुन्न
के बनत सीमाक रक्षक
देशही में बसैया भक्षक
खून से लथपथ नेताक हाथ
देशद्रोहक करैत ओ काज
करय फसाद मिली नेता 'आला'
हर महिना कोनो नव घोटाला
जमाखोर के बढ़ी गेल पेट
मिलावट कय कटैया घेट
धर्मक नाम पर होइया ब्यपार
सब मजहब के अलग ढीकेदार
हमरा नीदक भेल विराम
दुने के मुह से निकलल 'हे राम'

2 comments:

  1. जीतू भाई, हम मैथिली लिख नय सकय छी, पर अहांक बात समैझ गेलों. अहां बहुत बढ़िया लिखलियै. हम ई कहौं कि एकर जतेक प्रशंसा करल जाय उ कम होयत. ई कैहक हम ई कविता के महत्ता कम नहीं करवाक चाही. बस अहांक सोच समझ बहुत दिव्य यै. यहां एनाही लिखैत रहु. कृपा करिके भाषाई गलती-सलती माफ के देवैय.

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