विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )
२.

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )
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विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ
मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ मैथिली
अनुवाद धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
बालानां कृते

१.माँ शारदे वन्दना २.उड़ि ने सकी
पर चिड़ै छी हम (भाग-२)
१
माँ शारदे वन्दना - १
(गीत)
(श्री सरस्वती पूजाक शुभ अवसरि पर
विशेष)
जय अम्बे, जय माँ शारदे,
विनय हमर स्वीकार करू ।
सभहक अहाँ सुनै छी हे माता,
हमरो बेड़ा पार करू ।
क्षमा करू अपराध हमर सभ,
हमरो अहाँ उद्धार करू ।
जय अम्बे, जय माँ शारदे,
विनय हमर स्वीकार करू ।।
नञि जानी पूजा केर विधि माँ,
हम धिया - पुता अज्ञानी छी ।
दिशाहीन संसार बीच हम,
अहींक चरण - अनुगामी छी ।
हमहूँ अहींक सन्तान छी माता,
हमरो निज करुणा दान करू ।
पथ - प्रशस्त, शुभ
- दिशाबोध,
सद्ज्ञान दियऽ, अभिमान हरू।
जय अम्बे, जय माँ शारदे,
विनय हमर स्वीकार करू ।।
नञि बालक प्रह्लाद छी हम माँ,
नञि ध्रुव सन हम ज्ञानी छी ।
आयल छी माँ अहींक शरण मे,
कृपा दृष्टि केर कामी छी ।
अज्ञानक अन्हार हरू माँ,
ज्ञानक ज्योति प्रदान करू ।
नहि हमरहि, सम्पुर्ण
जगत भरि,
जन – जन केर कल्याण करू ।
जय अम्बे, जय माँ शारदे,
विनय हमर स्वीकार करू ।।
माँ शारदे वन्दना - २
(गीत)
(श्री सरस्वती पूजाक शुभ अवसरि पर
विशेष)
जय माँ शारदे, विद्यादायिनी,
अज्ञानस्य तिमिर हरणम् ।
तन शुभ्र प्रकाशित, पंकज राजित,
शोभित चारु कमल नयनम् ।।
जय माँ शारदे, विद्यादायिनी, अज्ञानस्य तिमिर हरणम् ।।
कामिनि चतुरानन, हंसहि वाहन,
शान्त स्वभाव, वाणि मधुरम् ।
वीणा कर शोभित, सभजन पूजित,
सकल कला – कौशल कुशलम् ।।
जय माँ शारदे, विद्यादायिनी, अज्ञानस्य तिमिर हरणम् ।।
मम् जहि निर्बुद्धि, देहि सुबुद्धि,
विद्या सम वारिधि सलिलम् ।
छल लोभ च कामम्, तम अज्ञानम्,
हरिअ सकल मम् दोष अयम् ।।
जय माँ शारदे, विद्यादायिनी, अज्ञानस्य तिमिर हरणम् ।।
२
उड़ि ने सकी पर चिड़ै छी हम
(भाग-२)
अगिला साँझ, हाट – बजार कऽ कऽ आङ्गन अबैत
रही । दूरहि सँ कोनटहि लऽग सँ बुझा गेल जे धिया – पुता सभ बाट ताकि रहल अछि । आइ
संख्या सेहो किछु बेशीअहि बुझि पड़ल, जे कि यथार्थे छल ।
लऽग अबितहि सभ धिया - पुता सामने राखल काठक कुर्सी पर
हमरा झीकि –
तीरि कऽ
बैसा देलक आ अपने सभ सामने राखल चौकी पर बैसि रहल ।
सोनी – तऽ चलू आब शुरू भऽ जाउ
आ आगाक खिस्सा सुनाउ ।
कञ्चन – हम्मे काल्हि नञि रहियै , हम्मे शुरू सऽ सुनाउ ।
कञ्चन – हम्मे काल्हि नञि रहियै , हम्मे शुरू सऽ सुनाउ ।
किछु धिया पुता सभ
बाजल – नञि ! नञि ! हम सभ आगा केर खिस्सा सुनब ।
कञ्चन आइ भोरहि भागलपुर सऽ
आयल छलि, एहि ठाम ओकर मामा गाम
। तऽ फेर भगिनमानक बऽल, कोना
ओकर बात टारि सकैत छलियै । बाकी धिया – पुता केँ सेहो मोन नञि तोड़ल जा सकैत छल तेँ ओकरा सभ केँ
समझबैत पहिलुका खिस्सा एक बेर फेर सँ संक्षेप मे कहल ।
.......................... तऽ हम सभ कैसोवरी
लग आबि कऽ रूकल रही ??
- हँ, आ एकर बाद “सोन चिड़ै” केर रहए । बब्बन
सोनी दिशि इशारा करैत बाजल । सभ धिया – पुता फेर जोर सँ भभा कऽ हँसि पड़ल ।
सोनी ओहि ठाम सँ उठि, हमर कुर्सीक कात मे
आबि ठाढ़ि भऽ गेलि । थोड़ेक तामस मे बाजलि – यौ देखै छियै ई सभ कोना हमरा खौंझबैत रहइए ।
- हम कात मे राखल एकटा
मचिया अपन कुर्सीक बगल मे रखैत बजलहुँ – ठीक छै तोँ एहि ठाम बैस । एहि मे खौंझाइ केर कोन गप्प , तोँ तऽ छेँहे “सोन चिड़ै” । लोक तऽ दुलार सऽ
कहैत छौ ने ।
- ओकर तामस कम होइत
निपत्ता भऽ गेलै जेना कि सहजहि धिया – पुता सभ मे होइत छै । ओ हमरहि लऽग ओहि मचिया पर बैसि रहलि ।
- हँ तऽ ऑस्ट्रेलिया
केर बगल मे कोन देश छै ? - हम बाकी धिया – पुता
दिशि मूँह करैत बजलहुँ ।
– न्यूजीलैण्ड । सभ धिया
पुता केँ शान्त देखि कञ्चन कने गम्भीर पर आत्मविशवास भरल स्वर मे बाजलि ।
हम – आ ओहि ठामक राष्ट्रिय
चिड़ै कोन ?
– सभ धिया पुता फेर अवाक
भए हमर मूँह ताकए लागल ।
- तोँ सभ क्रिकेट खेलय
जाय छह, देखै जाय छह, कने जोड़ दहक दिमाग पर
– हम बजलहुँ ।
हम पुनः बजलहुँ - अच्छा
छोड़ह, ई कहह जे न्यूजीलैण्ड
केर लोक सभ केँ की कहल जाइत छै ?
बब्बन – चहकैत बाजल – अरे, हाँ ................ किवी ।
हम – एकदम सही “कीवी” ओहि ठामक राष्ट्रिय
चिड़ै अछि आ ओहो उड़ि नञि सकैत अछि । एकर वंश (Genus) थिक अटेरिक्स (Apteryx) । एकर पाँच टा जाति (Species) पाओल जाइत अछि , जाहि मे सँ अटेरिक्स
ऑस्ट्रेलिस (Apteryx australis) । ई लजकोटरि आ मुख्यतः राति मे विचरण कएनिहार चिड़ै
अछि । तेरहम सती मे न्यूजीलैण्ड मे मनुक्खक आगमन सँ ओहि ठाम कीवी केर कोनो शत्रु
नञि छल । परञ्च मनुक्ख अपना संगहि कुकुर, बिलाइ आ ओकरहि सन आन जानवर जेना कि स्टोट (Stoat) फेर्रेट (Ferret ,बिज्जी केर एक प्रकार)
आदि सेहो नेने आयल ।
स्टोट आ फेर्रेट कीवीक अण्डा केर परम शत्रु आ कुकुर बिलाइ वयस्क कीवीक । एहि
प्रकारेँ कीवीक संख्या बहुत कम होइत गेल आ ई चिड़ै वलुप्त होयबाक श्रेणी मे आबि
गेल । एकरा बचयबाक लेल 200
ई॰ मे न्यूजीलैण्ड मे पाँच टा कीवी अभयारण्य (sanctuary) बनाओल गेल अछि ।

प्रिया – से सभ तऽ ठीक । पर
एकरा बारे मे कोनो विशेष बात बताउ ।
हम – बहुत किछु विशेषता छै
। एकर सूँघबाक शक्ति बहुत तेज होइत अछि ।
सोनी – तखन तऽ ईहो कुकुरहि
भेल कि ने ?
हम – हाँ एहि मामिला मे
कुकुरहि सन तेज । एकर नमगर चोंचक अगिला भाग मे नासाछिद्र (Nostrils) होइत अछि जखन कि आन चिड़ै सभ केर चोंच केर पछिला भाग मे । ई
सर्वाहारी अछि फल – फूल, कीड़ा – मकोड़ा, बेङ्ग – दादुर आदि खा जाइत अछि
। कीवी बिना देखनहि, जमीनक
नीचा मे बिल मे बैसल कीड़ा – मकोड़ा केँ सही – सही अन्दाजि सकैत अछि । यद्यपि शुतुर्मुर्गक अण्डा केर
वास्तविक आकार दुनिञा मे सभसँ पैघ अछि , पर वयस्क चिड़ै केर आकार केर अनुपात मे अण्डा केर आकार देखला सँ कीवीक अण्डाक सानुपातिक
अकार (Relative
/ comparative size) सभसँ पैघ होइछ । कीवीक एक अण्डा केर ओजन वयस्क स्त्री कीवीक ओजन केर चौथाई
ओजन धरि भऽ सकैत अछि । ई किछु गिनल - चुनल चिड़ै मे सँ अछि जे एक बेर जोड़ी बनलाक
बाद जिनगी भरि संग रहैछ ।
विकास – हूँ । से नञि बूझल छल
।
हम – आब हम सभ नऽव दुनञा
दिशि चली ।
बब्बन – नऽव दुनिञा ? हम नञि बुझली ।
प्रिया – अमेरिका के नऽव दुनिञा
कहल जाइत छै ........छै ने ?
हमरा
दिशि तकैत बाजलि ।
हम – हँ नऽव दुनिञा (New World) प्रायः अमेरिकहि केँ
आ खास कऽ दक्षिणी अमेरिका (उच्चारण – दैच्छनी अमेरिका) केँ कहल जाइत छै । ओना किछु लोक ऑस्ट्रेलिया आ लऽग – पासक द्वीप समूह सभ
केँ सेहो नऽव दुनिञा कहैत छथिन्ह ।
कञ्चन – यानि कि हम्मे सभ एक
नऽव दुनिञा सऽ दोसर नऽव दुनिञा जयवो ।
हम – हँ । तऽ चली । सभ केओ
तैय्यार छी ।
- सभ धिया – पुता एक स्वरेँ बाजल – हँ, तैय्यार छी ।
हम - द॰ अमेरिका केर मूल निवासी अछि “रिया” । ई करीब – करीब पूरा दक्षिणी
अमेरिका – जेना कि ब्राजील, पेरू, अर्जेण्टीना, चिली आदि देश – मे पाओल जाइत अछि ।
पवन – रिया तऽ हमर मौसी के
नाम हए ।
हम – पर एहि ठाम “रिया” मनुक्खक नञि, चिड़ै केर नाँव थिक ।
एकर दू टा जाति पाओल जाइछ – पहिल बड़की रिया या रिया अमेरिकाना (Rhea americana) आ दोसर छोटकी रिया
या रिया पिन्नाटा (Rhea pennata) । ई सभ सर्वाहारी (Omnivirous) होइत अछि पर अधिकांशतः चाकर
पत्तावला गाछ – बिरिछ
केर पात खाइत अछि, पर
जरूरति पड़ला पर फल, बीया
आ छोट – मोट गाछक जड़ि सेहो
चिबा जाइत अछि । भूख लगला पर छोट – मोट कीड़ा – मकोड़ा आ गिरगिट धरि खा सकैत अछि । नञि उरि सकएबला चिड़ै सभ
मे रिया केर पंखक आकार सभसँ पैघ होइत अछि आ जखन ओ चलैत वा दौड़ैत अछि तऽ पंख केँ
थोड़े – थोड़े पसारि लैत अछि ।
ई चिड़ै बहुत चलाक होइत अछि ।
सोनी – से कोना ?
हम – पहिने कहल आन चिड़ै सभ
जेना ईहो, जमीने पर अपन अण्डा
दैत अछि , घोसला आस – पास मे पाओल जाय वला घास – पात सँ बनबैछ । एक घोसला मे 10 सँ 60 धरि अण्डा भऽ सकैत
अछि ।
पवन – एहि मे कथी केर चलाकी ?
हम - ई एकर चलाकी नञि ।
अण्डा खएनिहार जीव – जन्तु
केर ध्यान बहटारए केर लेल ई चिड़ै अपन मुख्य घोसला केर चारू कात दू – चारि टा अण्डा छोड़ि
दैत अछि । एहि प्रकारेँ अपन किछु अण्डा केर बलि दऽ कऽ शेष अण्डा केर बुद्धिमानी सँ
सुरक्षित बचा लैछ ।

बब्बन – हँ, तऽ बुझली, इएह छी एकर चलाकी ।
हम – दक्षिणी अमेरिका मे एक
गोट आओरो चिड़ै भेटैछ , जे
उड़ि नञि सकैछ । केओ बता सकैत छह ओकर नाँव ??
- सभ धिया – पुता एक दोसराक मूँह ताकए
लागल । पर केओ किछु नञि बाजल ।
हम – “पेंगुइन” केर नाम सुनने छह की ?
- सभ धिया – पुताक जेना भक टुटि
गेल हो । एक्कहि संगे जोर सँ बाजल – यौ ! ओ तऽ अण्टार्कटिका मे होइत छै ।
सोनी – अहीं तऽ अपन पिछला खिस्सा – “खिस्सा अण्टार्कटिका
केर” - मे लिखने छलियै । अहूँ
केँ निन्न लागल सन बुझाइत अछि ।
हम – निन्न नञि लागल अछि ।
हम ई थोड़े ने लिखने रही कि पेंगुइन (पेंग्वीन) खाली अण्टार्कटिकहि मे होइत अछि ।
पेंगुइन केर करीब 17 सँ 20 जाति पाओल जाइत अछि आ
ओ अण्टार्कटिकाक अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका (अर्जेण्टीना, चीली), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रिका, गैलेपैगोस द्वीपसमूह
आदि स्थान पर पाओल जाइत अछि । ई सभटा स्थान पृथ्वीक दक्षिणी गोलार्ध (Southern hemisphere) मे अबैछ । जे अकार मे
पैघ आ भारी पेंगुइन अछि ओ ठण्ढा जगह पर आ जे छोट आ हल्लुक पेंगुइन अछि से
अपेक्षाकृत गर्म जगह पर पाओल जाइछ । सम्राट पेंगुइन या एम्पेरर पेंगुइन (Emperor penguin) सभसँ पैघ आ भारी होइछ
जे कि अण्टार्कटिका मे रहैछ । एकर ऊँचाई 1.1 मीटर (लगभग साढ़े तीन फीट) आ ओजन लगभग 35 कि॰ग्रा॰ धरि होइत अछि । सम्राट पेंगुइन केर जैव वैज्ञानिक नाँव अछि ऑप्टेनोडाइटिस
फोर्सटेराइ (Aptenodytes forsteri) । अच्छा तोरा सभ केँ एकरा बारे मे की की बूझल छह ?

बब्बन – ई हमरे आर मनुक्ख
जेकाँ दू पैर सऽ चलि सकै हए ।
हम – एकर मतलब कि अहाँ सभ
एहि चिड़ै सँ अपरिचित नञि छी । पेंगुइन मनुक्खे जेकाँ दू पएर सँ धऽर उठा कए नाकक
सीध मे चलि सकैत अछि । एहि चलबाक समय ओकर छोट- क्षीण नाँगरि (Tail) सन पछिला भाग ओकरा अपन शरीर केँ
सन्तुलित रखबा मे मदति करैछ ।
कञ्चन – हम्मे डिस्कवरी चैनल
पर देखने रहियै जे ओकर पेट उज्जर आ पीठ कारी होइ छैक ।
हम – एकदम सही, ओकर पेटक रंग बर्फ सन
उज्जर होइत अछि । एहि कारणेँ समुद्रक अन्दर सँ ताकि रहल शिकारी समुद्री जीव – जेना कि सील, वालरस आदि – समुद्रक कात मे बर्फ
पर ठाढ़ पेंगुइन आ बर्फ मे भेद नञि कऽ पबैछ । एहि प्रकारेँ पेटक उज्जर रंग ओकरा
लेल सुरक्षा – कवच
सन काज करैत छै । तहिना पीठ परक कारी रंग सेहो – आकाश मे उड़ि रहल पैघ शिकारी
चिड़ै सभ पाथर सन बुझि धोखा खा जाइत अछि । जीव विज्ञान मे एहि
प्रकारक प्राकृतिक सुरक्षा व्यवस्था केँ छद्मावरण (Camouflage) कहल जाइछ । एकर आन उदाहरण अछि
गिरगिट केर रंग बदलब ।
सोनी – ओ पानि मे हेलि सेहो
सकैत अछि ।
हम – बेस कहल । ओ समुद्रक
पानि मे डुम्मी काटि कऽ हेलि (Diving) सकैत अछि । ओकर देह मे बहुत चर्बी रहैत छै । अहाँ सभ केँ
बुझले होयत कि चर्बी पानि सँ हल्लुक होइत अछि आ तेँ ओ पानि मे हेलबा मे मदति करैछ
। ई चर्बी पेंगुइन केँ ठण्ढी सँ सेहो सुरक्षित रखैछ । ओकर दुनू पंख पानि मे हेलबाक
लेल अनुकूलित भऽ गेल अछि आ हेलबाक समय नाओ केर पतवाड़ि सदृश काज करैछ । ओ 6 सँ 12 कि॰ मि॰ प्रति घण्टा
केर गति सँ पानि मे दुम्मी मारि कऽ हेलि सकैछ । सम्राट पेंगुइन समुद्र केर भीतर 365 मीटर अर्थात् 1870 फीट गहीर तक जा सकैत अछि । ओ
समुद्री माछ आ जीव जन्तुक शिकार कऽ कऽ
अपन पेट भरैछ आ कहुखन – कहुखन
इएह फेरी मे स्वयं आन समुद्री प्राणीक (यथा सील आ वालरसक) शिकार सेहो बनि जाइछ । ओ
समुद्रक पानि सेहो पिउबि कऽ पचा सकैत अछि आ समुद्रक पानि केर संग पिउल गेल
अतिरिक्त नोन केँ मगरमच्छे जेकाँ नोरक संग बहा दैछ । पानि मे पेंगुइन केर हेलबाक प्रक्रिया
देखबा मे बहुत किछु हवा मे कोनो चिड़ै केर उरबाक प्रक्रिया सँ मेल खाइछ ।

प्रिया – सही मे , ई तऽ चिड़ै सनि लगिते
नञि अछि ।
हम – हाँ । कखनो कखनो ई
बर्फ पर छहलैत –
छहलैत (Sliding) एक जगह सँ दोसर जगह पहुँचि जाइछ
तऽ कखनो – कखनो छोट धिया – पुता जेकाँ दुनु पएर
उठा कऽ कूदि – कूदि
कऽ सेहो चलैछ ।
पवन – आश्चर्य !!!
हम – हाँ आश्चर्ये थिक ।
ओना तऽ नञि उड़ि सकनिहार करीब 40 प्रकारक चिड़ै अछि पर ई चिड़ै सभ लोक केँ बेशी आकर्षित करैत
अछि तेँ अहूँ सभ केँ सुना देलहुँ । ई खिस्सा आब एतहि खतम करैत छी ।
विकास – तइयो किछु आओर एहि
तरहक चिड़ै सभहक नाँव तऽ बताउ ।
हम – नाँव तऽ अहूँ सभ केँ
बुझले अछि –
मुर्गा, बत्तख आ मोर ।
प्रिया – पर ओ सभ तऽ उड़ए छै ।
हम – नञि खा गेलहुँ ने धोखा
। ओ सभ वास्तव मे उड़ैत नञि अछि, कोनो ऊँच स्थान सँ कुदैत अछि, अपन पंख केँ फड़फड़बैत अछि आ हवा
पर गुड्डी (पतंग) जेकाँ उधियाइत वा उड़ियाइत (Glide) रहैत अछि ।
पवन – सही कहलहुँ अहाँ ।
हम – चलैत – चलैत एकटा नाँव आओर
बता दैत छी – “डोडो” । ई चिड़ै मॉरिशस केर मूल निवासी छल, उड़ि नञि सकैत छल । अत्यधिक शिकार
होयबाक कारणेँ ओ करीब चारि – साढ़े चारि सौ वर्ष पहिने विलुप्त (Extinct) भऽ गेल ।
पवन – ओह । ई तऽ बहुत खड़ाब
भेल ।
हम – हँ से तऽ अछि । पर जे
एक बेर विलुप्त भऽ गेल से फेर सँ दोबारा नञि आबि सकैछ ।
- किछु क्षण केर लेल
सभ शान्त भऽ गेल ।
- शान्ति केर तोड़ैत
हम बजलहुँ । ठीक अछि तऽ आब चलबाक चाही ।
- हाँ । सभ धिया – पुता बेमोन सँ बाजल ।
सोनी – फेर अगिला बेर कोन
खिस्सा सुनाएब ।
हम – से अगिलहि बेर कहब ।
ता धरि शुभ रात्रि ।
*******************
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने)
सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’
ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे
वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले
स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ
लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन
करबाक थीक।
२.संध्या
काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले
स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे
शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल
भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर
स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक
काल-
रामं
स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः
स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ
दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४.
नहेबाक समय-
गङ्गे च
यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे
सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं
यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं
तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक
उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या
द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं
ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ
दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा
बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः
परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते
भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन
तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः
साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव
यन्यूधि शशिनः कला॥
९.
बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे
पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता
देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा
रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒
युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो
न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ
विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ
नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ
दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक
सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि।
अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा
परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश
होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि
मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी
र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए
बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक
रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे
ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय
बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर
वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम
सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
8.VIDEHA
FOR NON RESIDENTS
8.1 to 8.3 MAITHILI
LITERATURE IN ENGLISH
8.1.4.NAAGPHANS (IN ENGLISH)- SHEFALIKA VERMA translated by Dr.
Rajiv Kumar Verma and Dr. Jaya Verma
विदेह नूतन अंक भाषापाक रचना-लेखन
Input: (कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output: (परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/
रोमनमे। Result in Devanagari, Mithilakshara and Phonetic-Roman/
Roman.)
English
to Maithili
Maithili to English
Maithili to English
इंग्लिश-मैथिली-कोष / मैथिली-इंग्लिश-कोष प्रोजेक्टकेँ आगू
बढ़ाऊ,
अपन सुझाव आ योगदान ई-मेल द्वारा ggajendra@videha.com पर पठाऊ।
२३.गजेन्द्र ठाकुर इडेक्स
२४.
नेना भुटका
२५.विदेह रेडियो:मैथिली कथा-कविता आदिक पहिल पोडकास्ट साइट
२६.
२७.

२८. विदेह मैथिली नाट्य
उत्सव
२९.समदिया
३०. मैथिली फिल्म्स
३१.अनचिन्हार आखर
३२. मैथिली हाइकूhttp://maithili-haiku.blogspot.com/
३३. मानक मैथिली
http://manak-maithili.blogspot.com/
महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल गेल गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प-गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-किशोर साहित्य विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक खण्ड-१ सँ ७ Combined ISBN No.978-81-907729-7-6 विवरण एहि पृष्ठपर नीचाँमे आ प्रकाशकक साइट http://www.shruti-publication.com/ पर ।
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक- गजेन्द्र ठाकुर
गजेन्द्र ठाकुरक निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा, उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह
(सहस्राब्दीक चौपड़पर),
कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक(संकर्षण), महाकाव्य
(त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बालमंडली-किशोरजगत विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक
बाद प्रिंट फॉर्ममे। कुरुक्षेत्रम्–अन्तर्मनक, खण्ड-१ सँ ७
Ist
edition 2009 of Gajendra Thakur’s KuruKshetram-Antarmanak (Vol. I to VII)-
essay-paper-criticism, novel, poems, story, play, epics and Children-grown-ups
literature in single binding:
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
(add courier charges Rs.50/-per copy for Delhi/NCR and Rs.100/- per copy for outside Delhi)
For Libraries and overseas buyers $40 US (including postage)
The book is AVAILABLE FOR PDF DOWNLOAD AT
https://sites.google.com/a/videha.com/videha/
http://videha123.wordpress.com/
Details for purchase available at print-version publishers's site
website: http://www.shruti-publication.com/
or you may write to
Language:Maithili
६९२ पृष्ठ : मूल्य भा. रु. 100/-(for individual buyers inside india)
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विदेह: सदेह : १: २: ३: ४ तिरहुता : देवनागरी "विदेह" क, प्रिंट संस्करण :विदेह-ई-पत्रिका (http://www.videha.co.in/)
क
चुनल रचना सम्मिलित।

विदेह:सदेह:१: २: ३: ४
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर।
Details for purchase available at print-version
publishers's site http://www.shruti-publication.com
or you may write to shruti.publication@shruti-publication.com
२. संदेश-
[ विदेह ई-पत्रिका, विदेह:सदेह मिथिलाक्षर आ देवनागरी आ गजेन्द्र ठाकुरक सात खण्डक- निबन्ध-प्रबन्ध-समीक्षा,उपन्यास (सहस्रबाढ़नि) , पद्य-संग्रह (सहस्राब्दीक चौपड़पर), कथा-गल्प (गल्प गुच्छ), नाटक (संकर्षण), महाकाव्य (त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन) आ बाल-मंडली-किशोर जगत- संग्रह कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मादेँ। ]
१.श्री गोविन्द झा-
विदेहकेँ तरंगजालपर उतारि विश्वभरिमे मातृभाषा मैथिलीक लहरि जगाओल, खेद जे अपनेक एहि महाभियानमे हम एखन धरि संग नहि दए सकलहुँ।
सुनैत छी अपनेकेँ सुझाओ आ रचनात्मक आलोचना प्रिय लगैत अछि तेँ किछु लिखक मोन भेल।
हमर सहायता आ सहयोग अपनेकेँ सदा उपलब्ध रहत।
२.श्री रमानन्द रेणु-
मैथिलीमे ई-पत्रिका पाक्षिक रूपेँ चला कऽ जे अपन मातृभाषाक प्रचार कऽ रहल छी, से धन्यवाद । आगाँ अपनेक समस्त मैथिलीक कार्यक हेतु हम
हृदयसँ शुभकामना दऽ रहल छी।
३.श्री विद्यानाथ झा
"विदित"- संचार आ प्रौद्योगिकीक एहि प्रतिस्पर्धी ग्लोबल युगमे अपन
महिमामय "विदेह"केँ अपना देहमे प्रकट देखि जतबा प्रसन्नता आ संतोष भेल, तकरा कोनो उपलब्ध "मीटर"सँ नहि नापल जा सकैछ? ..एकर ऐतिहासिक मूल्यांकन आ सांस्कृतिक प्रतिफलन एहि शताब्दीक
अंत धरि लोकक नजरिमे आश्चर्यजनक रूपसँ प्रकट हैत।
४. प्रो. उदय नारायण सिंह
"नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक
इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट
मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।...विदेहक चालीसम अंक पुरबाक लेल
अभिनन्दन।
५. डॉ. गंगेश गुंजन- एहि
विदेह-कर्ममे लागि रहल अहाँक सम्वेदनशील मन,
मैथिलीक
प्रति समर्पित मेहनतिक अमृत रंग, इतिहास मे एक टा विशिष्ट
फराक अध्याय आरंभ करत, हमरा विश्वास अछि। अशेष
शुभकामना आ बधाइक सङ्ग, सस्नेह...अहाँक पोथी कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रथम दृष्टया
बहुत भव्य तथा उपयोगी बुझाइछ। मैथिलीमे तँ अपना स्वरूपक प्रायः ई पहिले एहन भव्य अवतारक पोथी थिक। हर्षपूर्ण हमर
हार्दिक बधाई स्वीकार करी।
६. श्री रामाश्रय झा
"रामरंग"(आब स्वर्गीय)- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय
वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
७. श्री ब्रजेन्द्र
त्रिपाठी- साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका
"विदेह" केर लेल बधाई आ शुभकामना स्वीकार करू।
८. श्री प्रफुल्लकुमार
सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक
समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि
दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
९.डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई
जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक
क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि।
पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
१०. श्री आद्याचरण झा-
कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग
करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान
यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
११. श्री विजय ठाकुर-
मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु
हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
१२. श्री सुभाषचन्द्र
यादव- ई-पत्रिका "विदेह" क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित
हो आ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१३. श्री मैथिलीपुत्र
प्रदीप- ई-पत्रिका "विदेह" केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग
रहत।
१४. डॉ. श्री भीमनाथ झा-
"विदेह" इन्टरनेट पर अछि तेँ "विदेह" नाम उचित आर कतेक रूपेँ
एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि
अति प्रसन्नता भेल। मैथिलीक लेल ई घटना छी।
१५. श्री रामभरोस कापड़ि
"भ्रमर"- जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ
अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन
अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत, से विश्वास करी।
१६. श्री राजनन्दन
लालदास- "विदेह" ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक अहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अंक जखन प्रिंट निकालब
तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ
होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ,
मुदा उमर आब
बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।.. उत्कृष्ट प्रकाशन
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक लेल बधाइ। अद्भुत काज कएल अछि, नीक प्रस्तुति
अछि सात खण्डमे। मुदा अहाँक सेवा आ से निःस्वार्थ तखन बूझल जाइत जँ अहाँ
द्वारा प्रकाशित पोथी सभपर दाम लिखल नहि रहितैक। ओहिना सभकेँ विलहि देल जइतैक।
(स्पष्टीकरण- श्रीमान्, अहाँक सूचनार्थ विदेह द्वारा ई-प्रकाशित कएल सभटा सामग्री
आर्काइवमे https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ पर बिना मूल्यक डाउनलोड लेल
उपलब्ध छै आ भविष्यमे सेहो रहतैक। एहि आर्काइवकेँ जे कियो प्रकाशक अनुमति लऽ कऽ
प्रिंट रूपमे प्रकाशित कएने छथि आ तकर ओ दाम रखने छथि ताहिपर हमर कोनो नियंत्रण
नहि अछि।- गजेन्द्र ठाकुर)... अहाँक प्रति अशेष
शुभकामनाक संग।
१७. डॉ. प्रेमशंकर सिंह-
अहाँ मैथिलीमे इंटरनेटपर पहिल पत्रिका "विदेह" प्रकाशित कए अपन अद्भुत
मातृभाषानुरागक परिचय देल अछि, अहाँक निःस्वार्थ
मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक
प्रयोजन हो, तँ सूचित करी। इंटरनेटपर
आद्योपांत पत्रिका देखल, मन प्रफुल्लित भऽ गेल।
१८.श्रीमती शेफालिका
वर्मा- विदेह ई-पत्रिका देखि मोन उल्लाससँ भरि गेल। विज्ञान कतेक प्रगति कऽ रहल
अछि...अहाँ सभ अनन्त आकाशकेँ भेदि दियौ, समस्त विस्तारक रहस्यकेँ
तार-तार कऽ दियौक...। अपनेक अद्भुत पुस्तक
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक विषयवस्तुक दृष्टिसँ गागरमे सागर अछि। बधाई।
१९.श्री हेतुकर झा, पटना-जाहि समर्पण भावसँ अपने मिथिला-मैथिलीक सेवामे तत्पर
छी से स्तुत्य अछि। देशक राजधानीसँ भय रहल मैथिलीक शंखनाद मिथिलाक गाम-गाममे
मैथिली चेतनाक विकास अवश्य करत।
२०. श्री योगानन्द झा, कबिलपुर, लहेरियासराय- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीकेँ निकटसँ देखबाक अवसर भेटल अछि आ मैथिली जगतक एकटा उद्भट ओ
समसामयिक दृष्टिसम्पन्न हस्ताक्षरक कलमबन्द परिचयसँ आह्लादित छी।
"विदेह"क देवनागरी सँस्करण पटनामे रु. 80/- मे उपलब्ध भऽ सकल जे विभिन्न लेखक लोकनिक छायाचित्र, परिचय पत्रक ओ रचनावलीक सम्यक प्रकाशनसँ ऐतिहासिक कहल जा
सकैछ।
२१. श्री किशोरीकान्त
मिश्र- कोलकाता- जय मैथिली, विदेहमे बहुत रास कविता, कथा, रिपोर्ट आदिक सचित्र संग्रह देखि आ आर अधिक प्रसन्नता मिथिलाक्षर देखि-
बधाई स्वीकार कएल जाओ।
२२.श्री जीवकान्त- विदेहक
मुद्रित अंक पढ़ल- अद्भुत मेहनति। चाबस-चाबस। किछु समालोचना मरखाह..मुदा सत्य।
२३. श्री भालचन्द्र झा-
अपनेक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि बुझाएल जेना हम अपने छपलहुँ अछि। एकर
विशालकाय आकृति अपनेक सर्वसमावेशताक परिचायक अछि। अपनेक रचना सामर्थ्यमे
उत्तरोत्तर वृद्धि हो, एहि शुभकामनाक संग हार्दिक बधाई।
२४.श्रीमती डॉ नीता झा-
अहाँक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। ज्योतिरीश्वर शब्दावली, कृषि मत्स्य
शब्दावली आ सीत बसन्त आ सभ कथा, कविता, उपन्यास, बाल-किशोर साहित्य सभ उत्तम छल। मैथिलीक
उत्तरोत्तर विकासक लक्ष्य दृष्टिगोचर होइत अछि।
२५.श्री मायानन्द मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक मे हमर उपन्यास स्त्रीधनक जे विरोध कएल
गेल अछि तकर हम विरोध करैत छी।... कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक पोथीक लेल शुभकामना।(श्रीमान् समालोचनाकेँ विरोधक रूपमे नहि लेल
जाए।-गजेन्द्र ठाकुर)
२६.श्री महेन्द्र हजारी-
सम्पादक श्रीमिथिला- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन हर्षित भऽ
गेल..एखन पूरा पढ़यमे बहुत समय लागत, मुदा जतेक पढ़लहुँ से आह्लादित कएलक।
२७.श्री केदारनाथ चौधरी- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक अद्भुत लागल, मैथिली साहित्य लेल ई पोथी एकटा प्रतिमान बनत।
२८.श्री सत्यानन्द पाठक-
विदेहक हम नियमित पाठक छी। ओकर स्वरूपक प्रशंसक छलहुँ। एम्हर अहाँक लिखल - कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक देखलहुँ। मोन आह्लादित भऽ उठल। कोनो रचना तरा-उपरी।
२९.श्रीमती रमा
झा-सम्पादक मिथिला दर्पण। कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक प्रिंट फॉर्म पढ़ि आ एकर
गुणवत्ता देखि मोन प्रसन्न भऽ गेल, अद्भुत शब्द एकरा लेल प्रयुक्त कऽ रहल छी।
विदेहक उत्तरोत्तर प्रगतिक शुभकामना।
३०.श्री नरेन्द्र झा, पटना- विदेह
नियमित देखैत रहैत छी। मैथिली लेल अद्भुत काज कऽ रहल छी।
३१.श्री रामलोचन ठाकुर-
कोलकाता- मिथिलाक्षर विदेह देखि मोन प्रसन्नतासँ भरि उठल, अंकक विशाल
परिदृश्य आस्वस्तकारी अछि।
३२.श्री तारानन्द वियोगी-
विदेह आ कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक देखि चकबिदोर लागि गेल। आश्चर्य। शुभकामना
आ बधाई।
३३.श्रीमती प्रेमलता
मिश्र “प्रेम”- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ। सभ रचना उच्चकोटिक लागल।
बधाई।
३४.श्री कीर्तिनारायण
मिश्र- बेगूसराय- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बड्ड नीक लागल, आगांक सभ काज लेल
बधाई।
३५.श्री महाप्रकाश-सहरसा-
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक नीक लागल, विशालकाय संगहि उत्तमकोटिक।
३६.श्री अग्निपुष्प-
मिथिलाक्षर आ देवाक्षर विदेह पढ़ल..ई प्रथम तँ अछि एकरा प्रशंसामे मुदा हम एकरा
दुस्साहसिक कहब। मिथिला चित्रकलाक स्तम्भकेँ मुदा अगिला अंकमे आर विस्तृत बनाऊ।
३७.श्री मंजर
सुलेमान-दरभंगा- विदेहक जतेक प्रशंसा कएल जाए कम होएत। सभ चीज उत्तम।
३८.श्रीमती प्रोफेसर वीणा
ठाकुर- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक उत्तम, पठनीय, विचारनीय। जे
क्यो देखैत छथि पोथी प्राप्त करबाक उपाय पुछैत छथि। शुभकामना।
३९.श्री छत्रानन्द सिंह
झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़लहुँ, बड्ड नीक सभ तरहेँ।
४०.श्री ताराकान्त झा-
सम्पादक मैथिली दैनिक मिथिला समाद- विदेह तँ कन्टेन्ट प्रोवाइडरक काज कऽ रहल अछि।
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक अद्भुत लागल।
४१.डॉ रवीन्द्र कुमार चौधरी-
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक बहुत नीक, बहुत मेहनतिक परिणाम। बधाई।
४२.श्री अमरनाथ-
कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक आ विदेह दुनू स्मरणीय घटना अछि, मैथिली साहित्य
मध्य।
४३.श्री पंचानन मिश्र-
विदेहक वैविध्य आ निरन्तरता प्रभावित करैत अछि, शुभकामना।
४४.श्री केदार कानन- कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक लेल अनेक धन्यवाद, शुभकामना आ बधाइ स्वीकार
करी। आ नचिकेताक भूमिका पढ़लहुँ। शुरूमे तँ लागल जेना कोनो उपन्यास अहाँ द्वारा
सृजित भेल अछि मुदा पोथी उनटौला पर ज्ञात भेल जे एहिमे तँ सभ विधा समाहित अछि।
४५.श्री धनाकर ठाकुर-
अहाँ नीक काज कऽ रहल छी। फोटो गैलरीमे चित्र एहि शताब्दीक जन्मतिथिक अनुसार रहैत
तऽ नीक।
४६.श्री आशीष झा- अहाँक
पुस्तकक संबंधमे एतबा लिखबा सँ अपना कए नहि रोकि सकलहुँ जे ई किताब मात्र किताब
नहि थीक, ई एकटा उम्मीद छी जे मैथिली अहाँ
सन पुत्रक सेवा सँ निरंतर समृद्ध होइत चिरजीवन कए प्राप्त करत।
४७.श्री शम्भु कुमार
सिंह- विदेहक तत्परता आ क्रियाशीलता देखि आह्लादित भऽ रहल छी। निश्चितरूपेण कहल जा
सकैछ जे समकालीन मैथिली पत्रिकाक इतिहासमे विदेहक नाम स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत।
ओहि कुरुक्षेत्रक घटना सभ तँ अठारहे दिनमे खतम भऽ गेल रहए मुदा अहाँक कुरुक्षेत्रम्
तँ अशेष अछि।
४८.डॉ. अजीत मिश्र- अपनेक
प्रयासक कतबो प्रशंसा कएल जाए कमे होएतैक। मैथिली साहित्यमे अहाँ द्वारा कएल गेल
काज युग-युगान्तर धरि पूजनीय रहत।
४९.श्री बीरेन्द्र
मल्लिक- अहाँक कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक आ विदेह:सदेह पढ़ि अति
प्रसन्नता भेल। अहाँक स्वास्थ्य ठीक रहए आ उत्साह बनल रहए से कामना।
५०.श्री कुमार राधारमण-
अहाँक दिशा-निर्देशमे विदेह पहिल मैथिली ई-जर्नल देखि अति प्रसन्नता भेल।
हमर शुभकामना।
५१.श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण-विदेह:सदेह
पढ़ने रही मुदा कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक देखि बढ़ाई देबा लेल बाध्य भऽ
गेलहुँ। आब विश्वास भऽ गेल जे मैथिली नहि मरत। अशेष शुभकामना।
५२.श्री विभूति आनन्द-
विदेह:सदेह देखि, ओकर विस्तार देखि अति प्रसन्नता भेल।
५३.श्री मानेश्वर मनुज-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक एकर भव्यता देखि अति प्रसन्नता भेल, एतेक विशाल ग्रन्थ मैथिलीमे आइ धरि
नहि देखने रही। एहिना भविष्यमे काज करैत रही, शुभकामना।
५४.श्री विद्यानन्द झा- आइ.आइ.एम.कोलकाता-
कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक विस्तार, छपाईक संग गुणवत्ता देखि अति प्रसन्नता भेल। अहाँक अनेक धन्यवाद;
कतेक बरखसँ हम नेयारैत छलहुँ जे सभ पैघ शहरमे मैथिली लाइब्रेरीक
स्थापना होअए, अहाँ ओकरा वेबपर कऽ रहल छी, अनेक धन्यवाद।
५५.श्री अरविन्द ठाकुर-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक मैथिली साहित्यमे कएल गेल एहि तरहक पहिल प्रयोग अछि, शुभकामना।
५६.श्री कुमार पवन-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक पढ़ि रहल छी। किछु लघुकथा पढ़ल अछि, बहुत मार्मिक छल।
५७. श्री प्रदीप बिहारी-कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक देखल,
बधाई।
५८.डॉ मणिकान्त
ठाकुर-कैलिफोर्निया- अपन विलक्षण नियमित सेवासँ हमरा लोकनिक हृदयमे विदेह सदेह भऽ
गेल अछि।
५९.श्री धीरेन्द्र
प्रेमर्षि- अहाँक समस्त प्रयास सराहनीय। दुख होइत अछि जखन अहाँक प्रयासमे अपेक्षित
सहयोग नहि कऽ पबैत छी।
६०.श्री देवशंकर नवीन-
विदेहक निरन्तरता आ विशाल स्वरूप- विशाल पाठक वर्ग, एकरा ऐतिहासिक बनबैत अछि।
६१.श्री मोहन भारद्वाज-
अहाँक समस्त कार्य देखल, बहुत नीक। एखन किछु परेशानीमे छी, मुदा
शीघ्र सहयोग देब।
६२.श्री फजलुर रहमान
हाशमी-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक मे एतेक मेहनतक लेल अहाँ साधुवादक अधिकारी
छी।
६३.श्री लक्ष्मण झा
"सागर"- मैथिलीमे चमत्कारिक रूपेँ अहाँक प्रवेश आह्लादकारी
अछि।..अहाँकेँ एखन आर..दूर..बहुत दूरधरि जेबाक अछि। स्वस्थ आ प्रसन्न रही।
६४.श्री जगदीश प्रसाद
मंडल-कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक पढ़लहुँ । कथा सभ आ उपन्यास सहस्रबाढ़नि पूर्णरूपेँ
पढ़ि गेल छी। गाम-घरक भौगोलिक विवरणक जे सूक्ष्म वर्णन सहस्रबाढ़निमे अछि, से चकित कएलक,
एहि संग्रहक कथा-उपन्यास मैथिली लेखनमे विविधता अनलक अछि। समालोचना शास्त्रमे अहाँक दृष्टि वैयक्तिक नहि वरन्
सामाजिक आ कल्याणकारी अछि, से प्रशंसनीय।
६५.श्री अशोक झा-अध्यक्ष
मिथिला विकास परिषद- कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक लेल बधाई आ आगाँ लेल
शुभकामना।
६६.श्री ठाकुर प्रसाद
मुर्मु- अद्भुत प्रयास। धन्यवादक संग प्रार्थना जे अपन माटि-पानिकेँ ध्यानमे राखि
अंकक समायोजन कएल जाए। नव अंक धरि प्रयास सराहनीय। विदेहकेँ बहुत-बहुत धन्यवाद जे
एहेन सुन्दर-सुन्दर सचार (आलेख) लगा रहल छथि। सभटा ग्रहणीय- पठनीय।
६७.बुद्धिनाथ मिश्र-
प्रिय गजेन्द्र जी,अहाँक सम्पादन मे प्रकाशित ‘विदेह’आ ‘कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक’ विलक्षण
पत्रिका आ विलक्षण पोथी! की नहि अछि अहाँक सम्पादनमे? एहि
प्रयत्न सँ मैथिली क विकास होयत,निस्संदेह।
६८.श्री बृखेश चन्द्र
लाल- गजेन्द्रजी, अपनेक पुस्तक कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि मोन गदगद भय गेल ,
हृदयसँ अनुगृहित छी । हार्दिक शुभकामना ।
६९.श्री परमेश्वर कापड़ि -
श्री गजेन्द्र जी । कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक पढ़ि गदगद आ नेहाल भेलहुँ।
७०.श्री रवीन्द्रनाथ
ठाकुर- विदेह पढ़ैत रहैत छी। धीरेन्द्र प्रेमर्षिक मैथिली गजलपर आलेख पढ़लहुँ।
मैथिली गजल कत्तऽ सँ कत्तऽ चलि गेलैक आ ओ अपन आलेखमे मात्र अपन जानल-पहिचानल लोकक
चर्च कएने छथि। जेना मैथिलीमे मठक परम्परा रहल अछि। (स्पष्टीकरण- श्रीमान्, प्रेमर्षि जी ओहि
आलेखमे ई स्पष्ट लिखने छथि जे किनको नाम जे छुटि गेल छन्हि तँ से मात्र आलेखक
लेखकक जानकारी नहि रहबाक द्वारे, एहिमे आन कोनो कारण नहि
देखल जाय। अहाँसँ एहि विषयपर विस्तृत आलेख सादर आमंत्रित अछि।-सम्पादक)
७१.श्री मंत्रेश्वर झा- विदेह पढ़ल
आ संगहि अहाँक मैगनम ओपस कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सेहो, अति उत्तम। मैथिलीक लेल कएल जा रहल अहाँक समस्त कार्य अतुलनीय
अछि।
७२. श्री हरेकृष्ण झा- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मैथिलीमे अपन तरहक एकमात्र ग्रन्थ अछि, एहिमे लेखकक समग्र दृष्टि आ रचना कौशल देखबामे आएल जे लेखकक फील्डवर्कसँ जुड़ल रहबाक कारणसँ
अछि।
७३.श्री सुकान्त सोम- कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक मे समाजक इतिहास आ वर्तमानसँ
अहाँक जुड़ाव बड्ड नीक लागल, अहाँ एहि क्षेत्रमे आर आगाँ काज करब से आशा अछि।
७४.प्रोफेसर मदन मिश्र- कुरुक्षेत्रम्
अंतर्मनक सन किताब मैथिलीमे पहिले
अछि आ एतेक विशाल संग्रहपर शोध कएल जा सकैत अछि। भविष्यक लेल शुभकामना।
७५.प्रोफेसर कमला चौधरी-
मैथिलीमे कुरुक्षेत्रम् अंतर्मनक सन पोथी आबए जे गुण आ रूप दुनूमे निस्सन
होअए, से बहुत दिनसँ आकांक्षा छल, ओ आब जा कऽ पूर्ण भेल।
पोथी एक हाथसँ दोसर हाथ घुमि रहल अछि, एहिना आगाँ सेहो
अहाँसँ आशा अछि।
७६.श्री उदय चन्द्र झा
"विनोद": गजेन्द्रजी, अहाँ जतेक काज कएलहुँ अछि से मैथिलीमे आइ धरि कियो नहि कएने
छल। शुभकामना। अहाँकेँ एखन बहुत काज आर करबाक अछि।
७७.श्री कृष्ण कुमार
कश्यप: गजेन्द्र ठाकुरजी, अहाँसँ भेँट एकटा स्मरणीय क्षण बनि गेल। अहाँ जतेक काज एहि
बएसमे कऽ गेल छी ताहिसँ हजार गुणा आर बेशीक आशा अछि।
७८.श्री मणिकान्त दास:
अहाँक मैथिलीक कार्यक प्रशंसा लेल शब्द नहि भेटैत अछि। अहाँक कुरुक्षेत्रम्
अन्तर्मनक सम्पूर्ण रूपेँ पढ़ि गेलहुँ।
त्वञ्चाहञ्च बड्ड नीक लागल।
७९. श्री हीरेन्द्र कुमार झा- विदेह ई-पत्रिकाक सभ अंक
ई-पत्रसँ भेटैत रहैत अछि। मैथिलीक ई-पत्रिका छैक एहि बातक गर्व होइत अछि। अहाँ आ
अहाँक सभ सहयोगीकेँ हार्दिक शुभकामना।
विदेह

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