हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |
हम छी मुरख बड़ अज्ञानी
नहीं जप-तप-पूजा पाठ जानी
बस आस अहींक अछि अम्बे
मुरख बुझी सबटा माफ करू
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |
हम फसल छी बीच भ्रमर माता
नहि अछि कोनो एकर अता-पता
अहि बिपत्ति सं आब अहीं माता
अबला जानी उधार करू |
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |
छी मायाजाल में हम ओझरल
नहि जपि अहांक नाम बिरल
यदि अहाँ माय बिसरी जेबै
और ककर हम आस करू|
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |
पुत कपूत ते होय माता
नहि मात कुमाता होय कौखन
अहि पातकी पुत के हे माता
आब अहि बेरा पार करू |
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहीं बिसरू |