मोन पौडेत ऐच्छ,
आम के कलम,
ओग्रैये छलौं ,
दिन - राईत,
नहिं आब रहलौं,
हम गाम के,
नहिं आब औ ,
गाछ छईथ ॥
सोन्हा-बेलवा, मालदा -कलकतिया,
सिन्दुरिया आ कृष्न्भोग,
कीछ सुखायल , किछ मुर्झायल,
सब गाछ में लागल रोग॥
हमरा मोन ऐच्छ नीक जकाँ,
आम गाछ मजरल जहाँ,
पटिया गेरुआ ल सब भागल गाछी ,
गाम पर रुकल कियो कहाँ ॥
फेर त कियो टिकुला बीछैत,
कियो जोगाड़ में गोपी के,
आन्हर बीहैएर में कियो गमछा भैरेय,
कियऊ मोटरी बनाबे धोती के॥
खट्टा चटनी कुच्चा अचार,
त कियो बेहाल ऐच्छ अम्मत्त में,
आब त गाछी सुनसान पडल ऐच्छ,
जेना ठाढ़ छी मरघट में...
सत्ते हमरा त गाम के कलम-गाछी बड मोन पदैत ऐच्छ, आ अहाँ के
एही चिट्ठा पर हमर अगला पन्ना : सब ठाम रहैत छाईथ एक टा कट्ठ्पिंगल...
श्रीमान
ReplyDeleteअपने के कविता (मोन पौडेत ऐच्छ कलम गाछी) कलम गाछी के याद कs ताज़ा करैत ह्रदय कय छुई गेल उम्मीद करेत छलो अपने के कलम स और कविता पढाई लय मिलत अति सुन्दर अहिना लिखैत रहू !
बहुत निक कविता अछि अजय जी अहिना मैथिली आर मिथिला के प्रति लिखैत रहू !अपने के कविता काविले तारीफ अछि !!
ReplyDeleteahan dunu gote ke bahut bahut dhanyavaad. ham koshish mein chhee je jaldiye aar kich ahan sab ke lel prastut karab.
ReplyDeleteभैया प्रणाम
ReplyDeleteअपने'क सरल शब्द सं सुसोभित कविता (मोन पौडेत ऐच्छ कलम गाछी) सच - मूच मए हमर ह्रदय कस भेद देलक, अपने'क कविता पढैत-पढैत हम बीतल समय के स्मरण में लिन भो गेलो ! ओहो एक समय छले जै समय मए हम सब कलम गाछी ओग्रैत रही ओ गाछी के बास सं बनल पेंगा झुला आहा जा तक जिब मोन रहत, अपन गाछी के सोन्हा-बेलवा, मालदा -कलकतिया,
सिन्दुरिया आ कृष्न्भोग आम सब के तय बाते किछ और छले आब नै ओ गाछी अछि नै ओ सोन्हा-बेलवा, मालदा -कलकतिया,सिन्दुरिया आ कृष्न्भोग आम, बस इये समझू अपने के कविता पढी क मन तृप्त भेल !!
http://maithilaurmithila.blogspot.com/
उम्मीद अछि अपने'क अगला कविता जल्दिये पढ़ई लय मिलत !!
ajay ji Ahan ke likhal kabita gaama ghar ke yad bhoot nik dilabaiya , hamr Apan Aai apan gramin jiwan ke bital kahani yada Aabait Achhi
ReplyDeleteAasha Achhi bahoot our kichhu yad dilabai ke lela ,
bahoot- bahoo dhany wad Achhi
gam ghar ke yad dilaabai ke lela
jay maithil , jay mithla
आत्मासँ हृदयसँ लिखल एहि ब्लॉगक सभ पद्य हृदयकेँ छुबैत अछि।
ReplyDeleteগজেন্দ্র ঠাকুব
सोन्हा-बेलवा, मालदा -कलकतिया,
ReplyDeleteसिन्दुरिया आ कृष्न्भोग,
कीछ सुखायल , किछ मुर्झायल,
सब गाछ में लागल रोग॥
हमरा मोन ऐच्छ नीक जकाँ,
आम गाछ मजरल जहाँ,
पटिया गेरुआ ल सब भागल गाछी ,
गाम पर रुकल कियो कहाँ ॥
फेर त कियो टिकुला बीछैत,
कियो जोगाड़ में गोपी के,
आन्हर बीहैएर में कियो गमछा भैरेय,
कियऊ मोटरी बनाबे धोती के॥
खट्टा चटनी कुच्चा अचार,
त कियो बेहाल ऐच्छ अम्मत्त में,
आब त गाछी सुनसान पडल ऐच्छ,
जेना ठाढ़ छी मरघट में...
ati sundar
ee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.
ReplyDeletedr palan jha
wah ki likhlath.
ReplyDeleteBahut bahut dhanyabad.
Ratish