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19 गोट गोत्र आ’ 243 मूल ग्राममे मुख्य मूल 34 टा निर्धारित कएल गेल। एहि 243 ग्रामसँ सेहो ई सभ विभिन्न क्षेत्र आ’ ग्राममे पसरलाह।
19 गोट गोत्र निम्न प्रकारे अछि: 1. शाण्डिल्य 2. वत्स 3. सावर्ण
4. काश्यप 5. पराशर 6. भारद्वाज 7. कात्यायन 8. गर्ग 9. कौशिक 10. अलाम्बुकाक्ष 11. कृष्णात्रेय 12. गौतम 13. मौदगल्य 14. वशिष्ठ 15. कौण्डिन्य 16. उपमन्यु 17. कपिल 18. विष्णुवृद्धि 19. तण्डी
मुख्य 34 मूल सेहो तीन श्रेणीमे विभक्त अछि।
श्रेष्ठ-प्रथम श्रेणीमे 1. खड़ौरे, 2. खौआड़े, 3. बुधबाड़े, 4. मड़रे, 5. हरिहरे, 6. घसौते, 7. खिसौते, 8. कमहे, 9. नरौने, 10. वमनियामै, 11. हरिअम्मे, 12. सरिसवै, 13. सोदरपुरिये.
द्वितीय श्रेणीमे 1. गंगोलिवार, 2. पगौलिवार, 3. कजौलिवार, 4. अड़ेवार, 5. वहड़िखाल, 6. सकड़िखार, 7. पलिवार, 8. विसेवार, 9. फनेवार, 10. उचितवार, 11. पडुलवार, 12. कटैवार, 13. तिलैवार.
मध्यम मूल- 1. दिद्यवे, 2. बैलेचै, 3. एकहरे, 4. पंचोभे, 5. वलियासे, 6. जमजुआले, 7. टकवाले, 8. घड़ुए.
प्रवर
मैथिल ब्राह्मणक मध्य 2 वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ’ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ’ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
एहि प्रकारेँ गोत्रानुसारे प्रवर निम्न प्रकार भेल:-
त्रिप्रवर- 1.शाण्डिल्य, 2.काश्यप,3. पराशर, 4. भारद्वाज, 5. कात्यायन, 6. कौशिक, 7. अलाम्बुकाक्ष, 8. कृष्णात्रेय, 9. गौतम, 10. मौदगल्य, 11. वशिष्ठ, 12. कौण्डिन्य, 13. उपमन्यु, 14. कपिल, 15.विष्णुवृद्धि,16. तण्डी।
पंचप्रवर- 1. वत्स, 2. सावर्ण, 3. गर्ग।
प्रवरक विस्तृत विवरण निम्न प्रकारेँ अछि- 1. शाण्डिल्य- शाण्डिल्य, असित आ’ देवल. 2. वत्स---] ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ’ आप्लावन।
3. सावर्ण--] ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ’ आप्लावन।
4. काश्यप-काश्यप, अवत्सार आ’ नैघ्रूव. 5. पराशर-शक्ति, वशिष्ठ आ’ पराशर. 6. भारद्वाज-भारद्वाज, आंगिरस आ’ बार्ह्स्पत्य. 7. कात्यायन-कात्यायन, विष्णु आ’ आंगिरस. 8. गर्ग-गार्ग्य, घृत, वैशम्पायन, कौशिक आ’ माण्डव्याथर्वन। 9. कौशिक- कौशिक, अत्रि आ’ जमदग्नि. 10. अलाम्बुकाक्ष-गर्ग, गौतम आ’ वशिष्ठ. 11. कृष्णात्रेय-कृष्णात्रेय, आप्ल्वान आ’ सारस्वत. 12. गौतम-अंगिरा, वशिष्ठ आ’ बार्हस्पत. 13. मौदगल्य-मौदगल्य, आंगिरस आ’ बार्हस्पत्य. 14. वशिष्ठ-वशिष्ठ,अत्रि आ’ सांकृति. 15. कौण्डिन्य-आस्तिक,कौशिक आ कौण्डिन्य. 16. उपमन्यु-उपमन्यु, आंगिरस आ’ बार्हस्पत्य। 17. कपिल-शातातप, कौण्डिल्यआ’ कपिल. 18. विष्णुवृद्धि-विष्णुवृद्धि, कौरपुच्छ आ’ त्रसदस्य 19. तण्डी-तण्डी, सांख्य आ’ अंगीरस.
एहिमे सावर्ण आ’ वत्सक पूर्वज एके छथि ताहि हेतु दू गोत्र र्हितो हिनका बीच विवाह नहि होइत छन्हि। छानदोग्य आ’ वाजसनेयक वैदिक युगीन उर्ध्वाधर विभाजन एकर संग रहबे कएल, आ’ यज्ञोपवीत मंत्र दुनूक भिन्न-भिन्न अछि। फेर यज्ञोपवीतमे तीन प्रवर आकि पाँच प्रवर देल जाय ताहि हेतु उपरका सूचीक प्रयोग कएल जाइछ।
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