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Sunday, March 22, 2009

जागू आब -रूपेश कुमार झा 'त्योंथ'

एक दू दिस कें कहय,
चारू दिस अन्हार अछि ।
मूर्ख अछि गद्दी पर बैसल ,
पढ़ल-लिखल बेकार अछि ।
जतय देखू मारि - फसाद ,
होइत लूट - पाटक काज अछि ।
विकास त' सपनेहुँ नहि देखू ,
शैतानक भेल राज अछि ।
हिंसा आ बेईमानी केर ,
भेल सउँसे आधिपत्य अछि ।
आजुक गाँधी-नेहरू सभ,
बजैत खाली असत्य अछि ।
एम्हर, ओम्हर, जेम्हर देखू ,
दानव करैत किलोल अछि।
उजरा खादी कुरता पाछा,
दबल बहुत रस पोल अछि ।
बन्न पडल अछि बुद्धिक ताला,
मूर्खक शासन ई लोकतंत्र अछि।
फुइस फसाद अछि फुला रहल ,
ई लोकतंत्रक मूल मंत्र अछि ।
नवक्रान्तिक छथि मांग करैत भू ,
सबहक मति आइ मारल अछि ।
सत्य अहिंसा आइ काल्हि,
एहि समाज सं बारल अछि ।

Friday, August 1, 2008

'विदेह' १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )६. पद्यस्व. श्री रामजी चौधरीगंगेश गुंजन ज्योति झा चौधरी

६. पद्य
1.
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)आ.गजेन्द्र ठाकुर
इ. श्री गंगेश गुंजन ई.ज्योति झा चौधरी
2. महाकाव्य- महाभारत
१.विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२)
२. गजेन्द्र ठाकुर

१. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
22.
भजन विहाग

विपति मोरा काटू औ भगवान॥
एक एक रिपु से भासित जन,
तुम राखो रघुवीर,
हमरो अनेक शत्रु लतबै अछि,
आय करू मेरो त्राण॥
जल बिच जाय गजेन्द्र बचायो,
गरुड़ छड़ि मैदान,
दौपति चीर बढ़ाय सभामे,
ढेर कयल असमान॥
केवट वानर मित्र बनाओल,
गिद्ध देल निज धाम,
विभीषणके शरणमे राखल
राज कल्प भरि दान॥
आरो अधम अनेक अहाँ तारल
सवरी ब्याध निधान,
रामजी शरण आयल छथि,
दुखी परम निदान॥

23.

महेशवानी

हम त’ झाड़ीखण्डी झाड़ीखण्डी हरदम कहबनि औ॥
कर-त्रिशूल शिर गंग विराजे,
भसम अंग सोहाई,
डामरु-धारी डामरुधारी हरदम कहबनि औ॥
चन्द्रभाल धारी हम कहबनि,
विषधरधारी विषधरधारी हरदम कहबनि औ॥
बड़े दयालु दिगम्बर कहबनि,गौरी-शंकर कहबनि औ,
रामजीकेँ विपत्ति हटाउ,
अशरणधारी कहबनि औ॥

24.

चैत नारदी जनानी

बितल चैत ऋतुराज चित भेल चञ्चल हो,
मदल कपल निदान सुमन सर मारल हो॥
फूलल बेलि गुलाब रसाल कत मोजरल हो,
भंमर गुंज चहुओर चैन कोना पायब हो॥
युग सम बीतल रैन भवन नहि भावे ओ,
सुनि-सुनि कलरव सोर नोर कत झहरत हो॥
रामजी तेजब अब प्राण अवधि कत बीतल हो,
मधुपुर गेल भगवान, पलटि नहि आयल हो॥

25.
भजन लक्ष्मीनारायण

लक्ष्मीनारायण हमरा ओर नहि तकय छी ओः॥
दीन दयाल नाम अहाँक सब कहैये यौ
हमर दुखः देखि विकट अहूँ हरै छी योः॥
ब्याध गणिका गृध अजामिल गजके उबाड़ल यो
कोल किरात भीलनि अधमके ऊबारल यो
कतेक पैतके तारल अहाँ गनि के सकत यो
रुद्रपुरके भोल्मनाथ अहाँ धाम गेलायोः॥
जौँ नञ हमरा पर कृपा करब हम की करब यौ
रामजी अनाथ एक दास राखू योः॥
(अनुवर्तते)

(अनुवर्तते)
१. श्री गंगेश गुंजन २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
१.. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
आयुर्दा '
ई बात नहि जे पकड़वाक प्रयास मे बात-बसात,
छूटल के छुटले रहि जाइत अछि-
अतीत जेबी-झोरा वा किताब-कॉपी पर
दकचल झगड़ाक साक्षी।
आब इहो नहि जकरा देब' पड़य मजूरी
मामिला-मोकदमाक पक्ष आ विपक्ष मे गवाही देवाक दाम।

दाम ल'क' ठाढ़ भइयो क' कहां भेटत बजारक आंखि,
दोकानक आकृति, दोकानदारक आगत-भागत,
पहिले पहिल बुझाइत छैक सब कें
थिक सबटा बेकार।
सबकिछु छोड़ि क' चलि गेल सुखाएल बालु पर
पुरीक समुद्र। द' मुदा गेल केहन सुनिश्चित भरोस
बूझल अछि मन अहांकें कनिके काल मे ओकर
उद्दाम उत्ताल लहरिक घुरि क' फेर छू लेबाक
धोखाड़ि क' छोड़ि जयवाक स्नेह।

सबकिछु छुटलाहा, सभकिछु छुटिये नहि जाइत छैक
जेना सब किछु बांचल सबटा बांचले मे नहि,
भीतरे भीतर खिया गेल, चनकि गेल आ कए बेर
रिक्त भ' गेल सरबा सं झांॅपल सुखाएल घैल जकांॅ
भरि दुपहरिया बांचल खुचल-जएह जतवे से साफ देखार
घैलची पर धएल रहैए।

मन ! अहां की छी आब ?
घैल, घैलची , कि दुपहर ? सांॅझ ?
पुरीक समुद्र कि भुवनेश्वरक बजार ?
कोणार्कक भग्न प्रस्तर पहियाक अवसादग्रस्त सूर्य,
एकान्त मे बैसल गर्भगृहक पार्श्व मे लैंड स्केप बनबैत पटनाक युवक,
बा सागरक बालु सं तट पर बना रहल बालुक शृंगार सौंदर्य दीप्त
तरहत्थी पर गाल, आ केहुनी बले करोट पड़लि वज्रस्तनी मांसल स्त्री,
गढ़ि रहल ओड़िया बालु-मूर्त्तिकार सुदर्शन पटनायक ?
कनिको नहि उदास
सूर्योदय मात्र धरिक आयुर्दाक अपन दिव्य कलाक
अकाल काल कवलनक प्रसंग!

की छी अहां मन ?
कहियो ने छोड़लहुं हमरा एकहु क्षण
ने भेलहुं जीवन कें एकहु पल
आइ अहां छी- हेरायल कि भेटल ?
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

मिथिलाक विस्तार
हम सब ओहि समूहक लोक
इतिहास छानब जकर भाग
संस्कृति बड़ धनी
मुदा संरक्षणक अभाव
जहिया सभक नींद खुजत
तहिया करब पश्चाताप
ओहि सभ्यताकेँ ताकब
जे अखन लगैअ श्राप
उन्नतिक पथ पर चलऽ लेल
पहिरलहुँ आधुनिकताक पाग
जिनकासॅं ई सुरक्षित अछि
से गाबैत बेरोजगारीक राग
जे गरीबीक सीमा पार कएलाह
से व्यस्त प्रतियोगितामे दिन राति
एक संजीवनी बुटीक अभिलाषा
जे सभ्यताकेँ दिअए सुरक्षित आधार
विश्वस्तरीय संस्थाक निर्माण होए
एकर विशेषताक जे करए विस्तार
६.भीष्म-पर्व

भेल भोर रणभूमिमे कौरव-पाण्डव सेना सहित
आगाँ भीष्म कौरवक पाण्डवक अर्जुन-कृष्ण सहित।
भीष्मक रथक दुहुओर दुःशासन दुर्योधन छलाह,
पार्श्वमे अश्वत्थामा गुरु द्रोणक संग भाग्य आह।
युद्ध कए राज्य पाएब मारि भ्राता प्रियजनकेँ,
सोचि विह्वल भेल अर्जुन गांडीव खसत कृष्ण हमर।
कर्मयोग उपदेश देल कृष्ण दूर करू मोह-भ्रम,
स्वजन प्रति मोह करि क्षात्रधर्मसँ विमुख न होऊ।
अधर्मसँ कौरवक अछि नाश भेल देखू ई दृश्य।
विराटरूप देखि अर्जुन विशाल अग्नि ज्वालमे,
जीव-जन्तु आबि खसथि भस्म होथि क्षणहि,
कौरवगण सेहो भस्म भए रहल छलाह,
चेतना जागल अर्जुनक स्तुति कएल सद्यः।
फलक चिन्ता छोड़ि कर्म करबाक ज्ञानसँ,
आत्मा अमर अछि शोक एकर लेल करब नहि उचित।
युढिष्ठिर उतरि रथसँ भीष्मक रथक दिस गेलाह,
गुरुजनक आशीर्वाद लए धर्मपालन मोन राखल।
भीष्म द्रोण कृपाचार्य पुलकित विजयक आशीष देल,
धृतराष्ट्र पुत्र युयुत्सु देखि रहल छल धर्मनीति
छोड़ि कौरव मिलल पाण्डव पक्षमे तत्काल,
युषिष्ठिर मिलाओल गर ओकरसँ भेल शंखनाद।
अर्जुन शंख देवदत्त फूकि कएल युद्धक घोषणा,
आक्रमण कौरवपर कए रथ हस्ति घोटक पैदल,
युद्धमे पहिल दिन मुइल उत्तर विराटक पुत्र छल।
भीष्म कएल भीषण क्षति साँझमे अर्जुनक शंख,
बाजि कएल युद्धक समाप्ति भीष्म सेहो बजाओल अपन।
पहिल दिनक युद्धसँ पाण्दव शोकित दुर्योधन हर्षित।
दोसर दिनक युद्ध जखन शुरू भीष्म आनल प्रलय।
कृष्ण एना भए हमर सेना मरत चलू भीष्म लग।
हँ धनञ्जय रथ लए जाइत छी भीष्मक समक्ष।
दुहुक बीच जे युद्ध भेल विकराल छल काँपि सकल।
भीम सेहो संहारक बनल भीष्म छोड़ि अर्जुनकेँ ओम्हर दुगल,
सात्यिकीक वाणसँ भीष्मक सहीसक अपघात भेल,
खसल भूमि तखन ओऽ भीष्मक घोड़ा भागल वेगमान भए।
साँझ भेल शंख बाजल युद्ध दू दिनक समाप्त भेल।

तेसर दिन सात्यिकी अभिमन्यु कौरवपर टूटल,
द्रोणपर सहदेव-नकुल युधिष्ठिर आक्रमण कएल,
दुर्योधनपर टूटल भीम वाण मारि अचेत कएल,
ओकर सहीस दुर्योधनकेँ लए चलल रणक्षेत्रसँ,
कौरव सेना बुझल भागल छल ओऽ युद्ध छोड़ि कए।
भागि रहल सेनापर भीम कएलन्हि आक्रमण,
साँझ बनि रक्षक आएल दुर्योधन कुपित भेल।
भीष्मकेँ रात्रिमे कहल अहाँक हृदय पक्षमे अछि पांडवक,
भीष्म कहल छथि ओऽ अजेय परञ्च युद्ध भरिसक करब।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

Monday, July 28, 2008

'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक६. पद्य अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरीश्री गंगेश गुंजनज्योति झा चौधरीगजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ. श्री गंगेश गुंजन
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर शैलेन्द्र मोहन झा
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
18.
भजन विनय

सुनू-सुनू औ भगवान,
अहाँक बिना जाइ अछि
आब अधम मोरा प्राण॥
कतेक शुरके मनाबल निशिदिन
कियो न सुनलनि कान,
अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
बन्धु वर्ग कुटुम्ब सभ छथि बहुत धनवान,
हमर दुःख देखि-देखि हुनकौ होइ छनि हानि।।
रामजी निरास एक अहाँक आशा जानि,
कृपा करी हेरु नाथ,
अशरण जन जानि॥

19.

महेशवाणी

देखु देखु ऐ मैना,
गौरी दाइक वर आयल छथि,
परिछब हम कोना।
अंगमे भसम छनि,भाल चन्द्रमा
विषधर सभ अंगमे,
हम निकट जायब कोना॥
बाघ छाल ऊपर शोभनि,मुण्डमाल गहना,
भूत प्रेत संग अयलनि,बरियाती कोना॥
कर त्रिशूल डामरु बघछाला नीन नयना
हाथी घोड़ा छड़ि पालकी वाहन बरद बौना॥
कहथि रामजी सुनु ऐ मनाइन,
इहो छथि परम प्रवीणा,
तीन लोकके मालिक थीका,
करु जमाय अपना॥

20.

महेशवानी

एहेन वर करब हम गौरी दाइके कोना॥
सगर देह साँप छनि, बाघ छाल ओढ़ना,
भस्म छनि देहमे,विकट लगनि कोना॥
जटामे गंगाजी हुहुआइ छथि जेना,
कण्ठमे मुण्डमाल शोभए छनि कोना॥
माथे पर चन्द्रमा विराजथि तिलक जेकाँ,
हाथि घोड़ा छाड़ि पालकी,बड़द चढ़ल बौना॥
भनथि रामजी सुनु ऐ मैना, गौरी दाइ बड़े भागे,
पौलनि कैलाशपति ऐना॥

21.

भजन विहाग

राम बिनु विपति हरे को मोर॥

अति दयालु कोशल पै प्रभुजी,

जानत सभ निचोर,

मो सम अधम कुटिल कायर खल,

भेटत नहि क्यो ओर॥

ता’ नञ शरण आइ हरिके हेरू प्लक एक बेर,

गणिका गिद्ध अजामिल तारो

पतित अनेको ढेर॥

दुःख सागरमे हम पड़ल छी,

जौँ न करब प्रभु खोज,

नौँ मेरो दुःख कौन हारावन,

छड़ि अहाँ के और॥

विपति निदान पड़ल अछि निशि दिन नाहि सहायक और,

रामजी अशरण शरण राखु प्रभु,

कृपा दृष्टि अब हेरि॥

(अनुवर्तते)
2. गंगेश गुंजन श्री गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
बीच बाट पर खसल लाल गमछा

हमरा सं पहिने गेनहार लोक देखि , बढ़ि गेल हएत
सड़क पर आगां। राजधानी जेना प्रतिदिन बढ़ि जाइत अछि
अपनहि पिछड़ल प्रदेश सभकें छोड़ि क'
प्रगति जकां अमूर्त्त आगां।
हम देखलियैक चिन्हवाक कयलियैक यत्न
कोनो दुर्घटनाक शिकार नेना जकां बुझायल -
हवा मे छटपटाइत-उधियाइत-धूल धूसरित भेल।
एक क्षण रुकि क' उठा लेवाक चाही एकरा, हमरा।
मुदा पीठ पर , बामा दहिना पांतीक पांती गाड़ीक
संहार प्रलापी चीत्कार करैत पथियाक पथिया
सड़कक भड़ भड़ हल्ला पाछां सं ठोकर जे मारि दैत।
सेकेण्डक दशांशो रुकवाक विचार कयलौं कि
स्वयं भ' जायब, बीच सड़क पर ओहिना थकुचा-थकुचा।

उठा लियैक ओकरा कोरा, मन मे आयलए-
एना कोना पड़ल रहि जाय दियैक असहाय-अनाथ!
असंभव बनल जा रहल, राजधानीक खुंखार व्यस्त सड़क पर।
ममता आ चिन्ता आब ?
आब ओ गाड़ी सभक गुड़कैत पहिया सभ सं आंदोलित हवाक
दबाब मे दुर्घटना सं चोटायल बीच बाट पर ओंघड़ाएल
छटपटा रहल अछि। मोड़ाइत-थकुचाइत-उधियाइत परिधि मे
असकर बिरड़ो जकां घुरमैत।
विचित्रे आयल अनचोखे एकटा विचार
ओ हमरा सोवियत रूस बुझाय लागल।
आब हमरा रूसे देखाइत रहल ....
मुदा से कोना संभव अछि ?
तखन की , थिक ई ढहल ओकर महान ध्वजा ?
भू-लुंठित लाल ई ? की ?
सोझां मे भूमि पर होइत लतखुर्दनि !
सभक लेखें धनि सन ,
बेशी सभ्य लोकनि कें एतवो ने फिकिर-
जे पैर नहि पड़वाक चाही कथमपि ध्वजा पर ।
एतवो नहि ध्यान !
बहुत आगां धरि जा क' भ' पओलहुं कनीक धीमा, फेर ठाढ़,
घुमैत पाछां,-चेष्टा, फेर चेष्टा मुदा, जाः आब तं ओ
कोनो गाड़ीक पहिया संगे लेपटाइत-लेढ़ाइत
कतहु आगां चलि गेल। आब ?
सोचैत छी, मने मन मूड़ी झंटैत छी,
छातीफाड़ पछताइत छी-नाभि लग सं
नाक-श्वांस नली धरि औंनाइत छी,
अपन कोन हाथ ?
उठा क' माथ सं लगाब' चौहत छी ,
दिल्लीक एहि सड़क पर गामक मुरेठा जकां
बान्ह'चाहैत छी ओकरा,
सड़क पर खसल ई लावारिस लाल गमछा ।

मस्तके पर शोभैत छैक लाल रंग,
ध्वजेक रूप मे रहैत छैक ओकर मान-मर्यादा ।
भने से कोनो हाड़तोड़ श्रम सं
ड्यूटीक झमारल बस पर ओंघाइत जाइत मजूरक कान्ह पर सं
उधिया क'खसि पड़ल हो, चलि गेल होइ खिड़की सं बाहर,
बाट मे,लेढ़ा रहल ललका गमछा-
सड़क पर धांगल जाइत राक्षस ट््रैफिक सं।

आत्मा, झकझोरि एना कियेक क' गेल , उद्विग्न हमरा -
माथ पर बान्हि लेबा लेए मुरेठा
सड़क पर भू-लुंठित ई रक्तधूरि वर्ण गमछा !



ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बरखा तू आब कहिया जेबैं
1
बरखा तू आब कहिया जेबै
अकच्छ भेलौ सब तोरा सॅं
बुझलियौ तू छै बड जरूरी
लेकिन अतीव सर्वत्र वर्जित छै
आर कतेक तंग तू करबैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

बेंग सब फुदकि फुदकि कऽ
घुसि रहल घर - ऑंगन में
ओकरा खिहारैत सॉंपो आयत
तरह - तरह के बिमारीक जड़ि
मच्छड़ सभके खुशहाल केलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

कतौ बाढ़ि सॅं घर दहाइत अछि
कतौ गाछ उखड़ि खसि पड़ल
कतेक खतरा तोरा संग आयल
आन-जान दुर्लभ तोरा कारण
आढ़ि सभ कादो सऽ भरलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

टूटल फूटल खपरी सऽ छाड़ल
गरीबक कुटिया कोनाक सहत
तोहर निरन्तर प््रावाहक मारि
पशु-पक्षी सेहो आश्रयहीन भेल
नञहर के तू सासुर बुझलैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं

तोहर जाइत देरी शीतलहरी
अप्पन प््राकोप देखाबऽचाहत
मुदा पहिने आयत शरद ऋतु
कनिके दिनक आनन्दी लऽ कऽ
पनिसोखा देखेनाई नञ बिसरिहैं
बरखा तू आब कहिया जेबैं।
*****

1. शैलेन्द्र मोहन झा 2. गजेन्द्र ठाकुर
1. शैलेन्द्र मोहन झा

सौभाग्यसँ हम ओहि गोनू झाक गाम, भरवारासँ छी, जिनका सम्पूर्ण भारत, हास्यशिरोमणिक नामसँ जनैत अछि। वर्तमानमे हम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, सम्बलपुरमे प्रबन्धकक रूपमे कार्यरत छी।
चलला मुरारी छौरी फ़ँसबय !

एक दिनक गप्प अछि, हमर मित्रगण हमरा कहय लगला -
शैलेन्द्र, अन्हां के कोनो गर्ल फ़्रैन्ड नहिं?

हम कहलियनि - दोस, ई भारत अछि, इन्गलैन्ड नहिं!
अखन गर्ल फ़्रैन्ड क जरूरत नहिं,
अखन त पढय - लिखय के दिन अछि, प्रेम करय के मुहुरत नहिं!!

सब मित्र कहय लगला, हम अनाडी छी
जौं कोनो छौरी फ़ंसाबी, तहने हम खिलाडी छी

ई सब हमरा सहल नहिं गेल,
बिना ई दुस्कर्म कयने रहल नहिं गेल
फ़ेर की छ्ल? हम ताकय लगलहुं एकटा फ़्रैन्ड,
फ़्रैन्ड नहिं, गर्ल फ़्रैन्ड......

मुदा एकटा मुश्किल छ्ल -
हमरा छौरी सब स लगैत छ्ल बड्ड डर
जौं हुनक सैन्डल गेल पडि, त इज्जत जायत उतरि
तैयो हमरा प्रमाणित करय के छ्ल, कहुना कय एकटा छौडी पटबय के छ्ल

त कुदि पडलौं मैदान में, या ई कहु श्मशान में,
कियाकि, पिटला के बाद ओत्तहि जायब, फ़ीरि क मुंह नहिं देखायब
बन्हलहुं माथ पर कफन, कय सब डर के करेज में दफन
निकलि पडलहुं हम बाट में, एक छौरी के ताक में

सब सं पहिने प्रार्थना कयलहुं -
हे किशन कन्हैया! आंहां त अहि कर्म में खिलाडी छी
हमरो खिलाडी बना दिअ,
हमरा सोलह हजार गोपी नहिं, केवल एकटा छौडी फ़ंसवा दिअ
आंहाके बड्ड गुणगान करब,
फ़ंसिते छौरी, सवा रुपैया के प्रसाद चढायब

हम सोचलहुं, शायद आंखि मारला सं छौरी पटै छैक!
हमरा कि बुझल छल, आंखि मारला सं छौरी पीटै छैक
भागि कय घर अयलहुं, आर पहिल सप्पत खेलहुं
फ़ेर कहियो आंखि नहिं मारब.

फ़ेर सोचलहुं - पहिने बतियायब, फ़ेर घुमायब तहन फ़ंसायब
हं, ई ठीक रहत!

देखलहुं एकटा छौरी, त आंखि हमर फ़रकल....
फ़ेर की छ्ल? हम कहलौं-
पोखरि सन आंखि तोहर, केश जेना मेघ,
फ़ूल सन ठोढ तोहर, कहियो असगर में त भेट!

कहलहुं हम एतबे की भय गेली ओ लाल,
ओ मारलीह एहन थप्पड, भेल गाल हमर लाल
कनबोज सुन्न भेल हमर, आंखि भेल अन्हार
सूझय लागल तरेगन, भेल दुपहरिया में अन्हार
सरधुआ, करमघट्टु, बपटुगरा आर अभागल
देखू कपार हम्मर, ई विशेषण हाथ लागल

एतबे नहिं........
ओ करय लगलीह हल्ला, जूटय लागल मोहल्ला
हम कहलौं - ई कोन काज केलहुं? कियक गाम के बजेलहुं
नहिं पटितौं हमरा सं, ई आफ़त कियक बजेलहुं

फ़ेर की छल?
पिटय लगलहुं हम आर पीटय लगला गौंआं
मुंह कान तोडि देलक, अधमरु कय क छोरलक
ई कोन काल घेरलक, मरय में नहिं छल भांगठ,

हम भागि घर एलहुं, दुबारा सप्पत खेलहुं -
फ़ेर आंखि नहिं मारब, नै गीत हम गायब,
फ़ेर छौरी नहिं फ़ंसायब, नै जान हम गमायब,
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!
आर भूलि कय अंग्रेजी, हम मैथिल बनि जायब!!



2. गजेन्द्र ठाकुर


पुनः स्मृति

बितल बर्ख बितल युग,
बितल सहस्राब्दि आब,
मोन पाड़ि थाकल की,
होयत स्मृतिक शाप।

वैह पुनः पुनः घटित,
हारि हमर विजय ओकर,
नहि लेलहुँ पाठ कोनो,
स्मृतिसँ पुनः पुनः।

सभक योग यावत नहि,
होएत गए सम्मिलन,
हारि हमर विजए ओकर,
होएत कखनहु नहि बन्द।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

'विदेह' १५ जून २००८ ( वर्ष १ मास ६ अंक १२ )६. पद्य 1.मैथिली हैकू पद्य/कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)/ज्योति झा चौधरी/गजेन्द्र ठाकुर

६. पद्य
1.
मैथिली हैकू पद्य- रवीन्द्रनाथ ठाकुर सेहो हैकू लिखलन्हि, मुदा मैथिलीमे पहिल बेर जापानी पद्य विधाक आधार पर "विदेह" प्रस्तुत कए रहल अछि ई विधा।
2.
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य ज्योति झा चौधरी
इ.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
मैथिली हैकू
हैकू सौंदर्य आऽ भावक जापानी काव्य विधा अछि, आऽ जापानमे एकरा काव्य-विधाक रूप देलन्हि कवि मात्सुओ बासो १६४४-१६९४। एकर रचनाक लेल परम अनुभूति आवश्यक अछि। बाशो कहने छथि, जे जे क्यो जीवनमे ३ सँ ५ टा हैकूक रचना कएलन्हि से छथि हैकू कवि आऽ जे दस टा हैकूक रचना कएने छथि से छथि महाकवि। भारतमे पहिल बेर १९१९ ई. मे कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर जापानसँ घुरलाक बाद बाशोक दू टा हैकूक शाब्दिक अनुवाद कएले रहथि।


पुरनोपुकुर
व्यंगेरलाफ
जलेर शब्द
आऽ
पचाएडालि
एकटा के
शरत्काल।
हैकूक लेल मैथिली भाषा आऽ भारतीय संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आऽ समस्त उत्तर-पश्चिमी आऽपूर्वी भारतीय लिपि आऽ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आऽ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व 'इ' एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि? मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि? तँ ई की अछि- आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छैक , आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आऽ बाजल जाइत अछि।
जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल जे बादमे ५ ७ ५ आऽ ७ ७ दू लेखक द्वारा लिखल जाए लागल आऽ नव स्वरूप प्राप्त कएलक आऽ एकरा रेन्गा कहल गेल। रेन्गाक दरबारी स्वरूप गांभीर्य ओढ़ने छल आऽ बिन गांभीर्य बला स्वरूप वणिकवर्गक लेल छल। बाशो वणिक वर्ग बला रेन्गा रचलन्हि। रेन्गाक आरम्भ होक्कुसँ होइत छल आऽ हैकाइ एकर कोनो आन पंक्त्तिकेँ कहल जाऽ सकैत छल। मसाओका सिकी रेन्गाक अन्तक घोषणा कएलन्हि १९म शताब्दीक प्रारम्भमे जाऽ कए आऽ होक्कु आऽ हैकाइ केर बदलामे हैकू पद्यक समन्वित रूप देलन्हि। मुदा बाशो प्रथमतः एकर स्वतंत्र स्वरूपक निर्धारण कए गेल छलाह।
हैकू निअम १. १७ अक्षरमे लिखू, आऽ ई तीन पंक्त्तिमे लिखल जाइत अछि- ५ ७ आऽ ५ केर क्रममे। रचना लिखबासँ पहिने स्तंभमे मात्रिक छन्दक वर्णन क्रममे हम लिखने रही जे संयुक्त्ताक्षरकेँ एक गानू आऽ हलन्तक/ बिकारीक/ इकार आकार आदिक गणना नहि करू।
हैकू निअम २.व्यंग्य हैकू पद्यक विषय नहि अछि, एकर विषय अछि ऋतु। जापानमे व्यंग्य आऽ मानव दुर्बलताक लेल प्रयुक्त विधाकेँ "सेर्न्यू" कहल जाइत अछि आऽ एहिमे किरेजी वा किगो केर व्यकरण विराम नहि होइत अछि।
हैकू निअम ३. प्रथम ५ वा दोसर ७ ध्वनिक बाद हैकू पद्यमे जापानमे किरेजी- व्याकरण विराम- देल जाइत अछि।
हैकू निअम ४. जापानीमे लिंगक वचन भिन्नता नहि छैक। से मैथिलीमे सेहो वचनक समानता राखी सैह उचित होएत।
हैकू निअम ५. जापानीमे एकहि पंक्त्तिमे ५ ७ ५ ध्वनि देल जाइत अछि। मुदा मैथिलीमे तीन ध्वनिखण्डक लेल ५ ७ ५ केर तीन पंक्त्तिक प्रयोग करू। मुदा पद्य पाठमे किरेजी विरामक ,जकरा लेल अर्द्धविरामक चेन्ह प्रयोग करू, अतिरिक्त्त एकहि श्वासमे पाठ उचित होएत।
हैकू निअम ६. हैबुन एकटा यात्रा वृत्तांत अछि जाहिमे संक्षिप्त वर्णनात्मक गद्य आऽ हैकू पद्य रहैत अछि। बाशो जापानक बौद्ध भिक्षु आऽ हैकू कवि छलाह आऽ वैह हैबुनक प्रणेता छथि। जापानक यात्राक वर्णन ओऽ हैबुन द्वारा कएने छथि। पाँचटा अनुच्छेद आऽ एतबहि हैकू केर ऊपरका सीमा राखी तखने हैबुनक आत्मा रक्षित रहि सकैत अछि, नीचाँक सीमा ,१ अनुच्छेद १ हैकू केर, तँ रहबे करत। हैकू गद्य अनुच्छेदक अन्तमे ओकर चरमक रूपमे रहैत अछि।- सम्पादक
प्रस्तुत अछि ज्योतिक ९५ टा मैथिली हैकू। हुनकर ९६ सँ १०० धरि हैकू अंग्रेजीसँ मैथिलीमे सम्पादक द्वारा अनुवादित अछि, तकर अंग्रेजी अंश सेहो देल गेल अछि। तकरा बाद गजेन्द्र ठाकुरक १२ टा हैकू आऽ एकटा हैबुन देल गेल अछि।

ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
(१)
तारा दूरसँ
बुझाइत कतेक शीतल
वास्तवमे जड़ैत
(२)
शाखासँ लागल
पुष्प आऽ पत्रसॅं आच्छादित
अछि झूलैत लता
(३)
पक्षी विश्राम कएल
बड़का यात्राक उपरान्त
एखनो जे अपूर्ण
(४)
अद्रभुत अपवाद छैक
नागफनीक कॉँटक बीच
कुसुम खिलायल
(५)
नीलांबरमे मेघ
विचरैत अछि कोना जेना
सागरमे होए शार्क
(६)
भावी संकट केर
पशु पक्षीमे पूर्वाभास
प्रभुक दिव्य आशिष
(७)
कोमल पंखुड़ी
सुगन्धक संग सजाओल
एक पुष्पक रूपमे
(८)
नदीक तरंग
ओहिना लागैत अछि जेना
ओकर घुरमल केश
(९)
दू टा पसरल पाँखि
बाज उड़ऽ लेल तैयार अछि
पूर्ण रूपसॅं जागरूक
(१०)
पहाड़ीक ढलान
ताहि पर एकमात्र गाछक छाह
भेल यात्रीक विश्राम
(११)
संध्याक बेला
सुनसान आऽ शान्त पोखरिक कात
एक एकान्त स्थान
(१२)

मेघ रूपी बर्फमे
अछि हवाई जहाज पिछड़ैत
आकाशमे विचरैत
(१३)
कठोरतम भूमि
समुद्रक छोर पर बसल
अछि पाथरक किनार
(१४)
विलक्षण अपवाद
आकाश जरैत संध्याकाल
समुद्रक उपरि
(१५)
पहाड़सॅं उदित
सूर्यसॅं आकाश भेल जागृत
ज्वालामुखी सन
(१६)
उगैत सूर्य संगे
आयल अंधकारक उपरान्त
अंतहीन दिनक आस
(१७)
दिवस आब थकल
रातिक स्वागतमे लीन साँझ
मिझाइत सूर्य दीप
(१८)
गाछ भने हरियर
ग्रीष्मोमे देखु पतझड़
भोरक आकाशमे
(१९)
पक्षीक चहक
आऽ आकाशक लाली संग
प्रकृति जागल
(२०)
अतिसुन्दर जाड़
मेघक घिस घिस छिड़यौलक
हिमपातक रूपमे
(२१)
तैयार उड़ऽलेल
पक्षी विश्रामसॅं जागल
वा अछि शुरूआत
(२२)
पक्षीक निरीक्षण
छूटल अन्नक फेरमे
कटनी भेलाक बाद
(२३)
फूलक हुँजक बोझ
शाखा केँ झुका रहल
बसंत आयल अछि
(२४)
तितलीक पंख
अंकित रंग बिरंग आकार
प्रभुक चित्रकला
(२५)
मनुष लेल कठिन
किन्तु जीवन ओतहु अछि
शीतलतम स्थान
(२६)
उच्चतम शिखरसॅं
धुन्ध भरल हरियर घाटी
निहारक इच्छा
(२७)
विभिन्न प्रकारक
घास पात जमीन पर उगल
आइरसँ दूर बॅंचल।
(२८)
ओसक बूँद पाबि अछि
घासक फुनगी आह्‌लादित
हीरा सन चमकैत
(२९)
बाहर घूमऽ निकलल
बतख अपन बच्चा संग
गर्मीक दिनमे
(३०)
बतख हेल रहल अछि
पानिक ऊपरी सतह पर
लक्ष्यक दिस निरंतर
(३१)
स्प्रेसो
आस्ते पिब लेल
गर्म देल गेल
(३२)
ईश्वर केँ तकनाइ
नहि कठिन पाबू ओकरा
पवित्र हृदयमे
(३३)
दृष्टि भ्रमणमे
घाटी पर दूर दूर धरि
भटकि सकैत अछि
(३४)
घोड़ा भटकि रहल
उद्देश्यहीन बिन घुड़सवार
भेल अनुशासनहीन
(३५)
स्थिर पानिमे
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
साफ लेकिन उलटा
(३६)
प्राकृतिक दृष्य
पानिक प्रतिरूप बिना
अपूर्ण बुझाइत अछि।
(३७)
पतझड़क पात
पसारलक अप्पन सतरंजी
हरियर घास बदला।
(३८)
समुद्रक तहमे
विभिन्न आकार प्रकारक
रंग बिरंग जीवन।
(३९)
नटखट समुद्र
तटक आरामसँ वंचित
कएने बेर बेर तंग।
(४०)
पहाड़क चोटी
आर बेसी ऊँच लागैत अछि
गहीँर घाटीक बीच
(४१)
पोखरिमे देखु
प्रकृतिक प्रतिबिम्ब
उलटल बुझाइत अछि
(४२)
तितलीगण उतरल
पंखरूपी पैराशूट लऽ
फुलक झुण्ड पर।
(४३)
उच्चतम शिखर पर
गुफासँ दृष्टिगोचर
होइत रमणीय दृष्य
(४४)
बच्चाक संग खेलमे
एकेटा खुशीक आभास
ओकर किलकारी
(४५)
टेढ़ मेढ़ रेखा अछि
बरसातक बहैत पानिसँ
खिड़कीक काँच पर बनल
(४६)
बादलसँ छनल
समुद्रक लहरिक तरंग
उपर चमकैत किरण
(४७)
पानिक तरंग केँ
पक्षी बदलि रहल अछि
कलरवक लयमे
(४८)
मरुस्थलमे रेत
अछि हवासँ बहारल
सतह भेल समतल
(४९)
कतेक बेसी ध्यान
पातक प्रारूप देबऽमे
ईश्वर देने छथि
(५०)
बरसात खतम भेल
पानि तइयो झरि रहल अछि
गाछक पात सब सऽ
५१
समुद्रक लहरि
लगातार टकरा रहल
पाथर तइयो स्थिर
५२
मनोरम दृष्य
जेना चिन्नीक चाशनीमे लिप्त
अछि गाछ जाड़मे
५३
अपने रंगहीन अछि
गाछ केँ रंगीन बनौलक
नीचा गड़ल जड़ि
५४
शीतल प्रकाश युक्त
सुर्योदयक पहिनेक समय
सर्वोत्तम काल
५५
पाँखिक शाल ओढ़ने
प्रकृतिक भ्रमण हेतु
पक्षी निकलल जाड़मे
५६
चिडैय़ाक बच्चा
माए बाप संगे अछि ताबञ
जाबञ पंख नहिक छैक।
५७

प्रवासी पक्षी
मीलक मील उड़िक आयल
गर्मीक आनन्द लय।
५८
उछलैत पानि
नदीसँ भेँट लेल
खसल झरनाक रूपमे ।
५९
नागफणीक गाछ सभ
मरुस्थल्मे सेहो अछि
मजबूतीसँ ठाढ़।
६०
कठोर पातसँ लिप्त
नागफनीक चोटी पर अछि
कोमल फूलक ताज
६१
आर सजायल गेल
कैक रंगक फूल आऽ लाइटसॅं
क्रिसमसक साँझमे
६२
एक नारिकेरक फल
कठोर केशयुक्त कवचमे
मीठ उज्जर फल अछि
६३
भुखाएल बगुला
नदीक कातमे ठाढ़ अछि
माछक ताकिमे
६४
अतिथिक आगमन
कौआक कर्कश काँव काँवसँ
पूर्वसूचित भेल अछि
६५
सागरमे डॉलफिन
खतरनाक जीवक बीचमे
मनुषक साथी
६६
जिग ज़ैग ध्वनि केँ
गाड़ी दोहरा रहल अछि
भीजल सड़क पर
६७
भूकम्पक श्राप अछि
अज्ञात अपराधक सजा
मनुषकेँ भेटल
६८
छोट किन्तु तेज अछि
अपन लक्ष्य चिनहऽमे
भड़ल भीड़क बीच
६९
समुद्रक नीचाँ
कतओ जायकाल रहैअ
छोट माछ सब झुण्डमे
७०
अंगूरक फल अछि
मीठ जेल जमाकऽ रखने
छोट छोट आकारमे
७१
स्वर्ग सदृश दृश्य
हरियर प्राकृतिक संग
चिड़ैआक कलरव
७२
राति हुअक पहिने
आकाश दहकि रहल
सूर्यास्तक पहिने
७३
खिलखिलाइत झरना
मधुर ध्वनि घोरि रहल
चारू दिशामे
७४
सूर्यक अएलापर
रातिक अन्हार भागि गेल आऽ
भोर शुरु भऽ गेल
७५
छाया उपर्युक्त अछि
गोबरछत्ता केँ उगऽ
आऽ पसरऽ लेल
(७६)
एकटा पओलाक बाद
खरहा फेर भागि रहल अछि
आर भोजन लेल

(७७)
गाछक स्वर्णिम रंग
पतझड़क आगमनक
घोषणा अछि करैत ।
(७८)
गरमीक ऋतु
कहॉँ ओतेक दुखद अछि
शुरुक दिनमे
(७९)
स्वयम्‌ सिद्ध मकरा
अपन सुरक्षा हेतु
जाल अछि बुनैत
(८०)
कोनो आकारमे
ढलि जाएत पानि मुदा गहराई
एकर अपन गुण
(८१)
आकाश अखनो ऊँच
बादल पहुँचमे बुझाएल
ई धुन्धक रूपमे
(८२)
रातिमे इजोत दैत
बर्फसँ परावर्तित होइत
प्रकाशपुँज जाड़मे
(८३)
लुक्खी सब निकलल
अपन घड़सँ आलस त्यागि
वसन्त ऋतुमे
(८४)
सोन सन सूरज भेल
उज्जर चमकैत हीरा सन
दिनकेँ अएला पर
(८५)
गाछ सब अछि होड़मे
सबसँ पहिने पाबऽ लेल
सूरजक रोशनी
(८६)
एकटा मन्दिर अछि
खजूरक गाछ भीड़मे
एक पोखरि कातमे
(८७)
सुखाएल छोट पातसभ
गाछसँ नीचाँ खसैत अछि
नबकेँ अवसर दैत
(८८)
गाछक शाखासभ
अतेक ऊँचाई पर पसरल
जड़ि ततब्बे गहिँर
(८९)
भोरक अयला पर
गाछ पर लादल ओस भेल अछि
चमकैत हॅँसी सन
(९०)
सोन सन कम्बल अछि
ओढ़ने गहुमक खेत सभ
कटाइक पहिने
(९१)
चक्रवातीय पवन
जीवनसंहारक बनि गेल
जीवनरक्षक छल।
(९२)
प्रदान करैत अछि
पक्षी आऽ हिरण सभकेँ
गाछ आऽ वृक्ष आश्रय
(९३)
फूलसँ भरल अछि
एकटा घाटी एहन अछि
जेना खुशी मुस्काइत।
(९४)
पानि बढ़ि रहल
रस्ताक गाछ आऽ पाथर सभ
विदा करैत ठाढ़
(९५)
जाड़क गाछ अछि ठाढ़
वसन्तक प्रतीक्षामे
पात सभसँ भिन्न भऽ
(९६)
Illusion of eye
Colourful appearance of
Rainbow in the sky
आँखिक भ्रम,
आभास वर्णमय
पनिसोखा द्यौ

(९७)
Rainbow declares
Beginning of bright days and
End of rainy ones
पनिसोखाक,
शुभ्र दिन आबह
खिचाहनि जाऽ

(९८)
Filled with smoky fog
The wood seems to be burning
Thou' it is winter
धुँआ कुहेस
जेना जड़ैत काठ,
अछि ई जाड़
(९९)
The words sound so sweet
imitated by parrots
Like baby babbles
गुञ्ज मधुर
सुग्गाक अभिनय,
तोतराइत स्वर
(१००)
The sky is bright
The wind has cleared the clouds
Some still needs force
अकाश श्वेत
वायु टारैत मेघ,
कनेक बल
(९६ सँ १०० धरि इंग्लिशसँ मैथिली अनुवाद संपादक द्वारा कएल गेल)
गजेन्द्र ठाकुरक १२ टा हैकू
१.वास मौसमी,
मोजर लुबधल
पल्लव लुप्ता
२.घोड़न छत्ता,
रेतल खुरचन
मोँछक झक्का
३. कोइली पिक्की,
गिदरक निरैठ
राकश थान
४.दुपहरिया
भुतही गाछीक
सधने श्वास
५.सरही फल
कलमी आम-गाछी,
ओगरबाही
६.कोलपति आऽ
चोकरक टाल,
गछपक्कू टा
७.लग्गा तोड़ल
गोरल उसरगि
बाबाक सारा
८.तीतीक खेल
सतघरिया चालि
अशोक-बीया
९.कनसुपती,
ओइधक गेन्द आऽ
जूड़िशीतल
१०.मारा अबाड़
डकहीक मछैड़
ओड़हा जारि
११.कबइ सन्ना
चाली बोकरि माटि,
कठफोड़बा
१२.शाहीक-मौस,
काँटो ओकर नहि
बिधक लेल
हैबून १
सोझाँ झंझारपुरक रेलवे-सड़क पुल। १९८७ सन्। झझा देलक कमला-बलानक पानिक धार, बाढ़िक दृश्य। फेर अबैत छी छहर लग। हमरा सोझाँमे एकठामसँ पानि उगडुम होइत झझात बाहर अछि अबैत। फेर ओतएसँ पानिक धार काटए लगैत अछि माटि। बढ़ए लगैत अछि पानिक प्रवाह, अबैत अछि बाढ़ि। घुरि गाम दिशि अबैत छी। हेलीकॉप्टरसँ खसैत अछि सामग्री। जतए आयल जलक प्रवाह ओतए सामग्रीक खसेबा लए सुखाएल उबेड़ भूमिखण्ड अछि बड़ थोड़। ओतए अछि जन- सम्मर्द। हेलीकॉप्टर देखि भए जाइत अछि घोल। अपघातक अछि डर हेलीकॉप्टर नहि खसबैत अछि ओतए खाद्यान्न। बढ़ि जाइत अछि आगाँ। खसबैत अछि सामग्री जतए पानि बिनु पड़ैत छल दुर्भिक्ष, बाढ़िसँ भेल अछि पटौनी। कारण एतए नहि अछि अपघातक डर। आँखिसँ हम ई देखल। १९८७ ई.।
पएरे पार
केने कमला धार,
आइ विशाल


विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
14.

महेशवानी

विधि बड़ दुःख देल,
गौरी दाइ के एहेन वर कियाक लिखि देल॥
जिनका जाति नहि कुल नहि परिजन,
गिरिपर बसथि अकेल,
डमरू बजाबथि नाचथि अपन कि भूत प्रेत से खेल॥
भस्म अंग शिर शोभित गंगा,
चन्द्र उदय छनि भाल
वस्त्र एकोटा नहि छनि तन पर
ऊपरमे छनि बघछाल,
विषधर कतेक अंगमे लटकल,
कंठ शोभे मुंडमाल,
रामजी कियाक झखैछी मैना
गौरी सुख करती निहाल॥

15.

विहाग

वृन्दावन देखि लिअ चहुओर॥
काली दह वंशीवट देखू,
कुंज गली सभ ठौर,
सेवा कुंजमे ठाकुर दर्शन,
नाचि लिअ एक बेर॥
जमुना तटमे घाट मनोहर,
पथिक रहे कत ठौर,
कदम गाछके झुकल देखू,
चीर धरे बहु ठौर॥
रामजी वैकुण्ठ वृन्दावन
घूमि देखु सभ ठौर,
रासमण्ड ल’ के शोभा देखू,
रहू दिवस किछु और।।
16.
विहाग

मथुरा देखि लिअ सन ठौर॥
पत्थल के जे घाट बनल अछि,
बहुत दूर तक शोर,
जमुना जीके तीरमे,
सन्न रहथि कते ठौर॥
अस्ट धातुके खम्भा देखू,
बिजली बरे सभ ठौर,
सहर बीच्मे सुन्दर देखू,
बालु भेटत बहु ढ़ेर॥
दुनू बगलमे नाला शोभे,
पत्थल के है जोर
कंशराजके कीला देखू
देवकी वो वसुदेव॥
चाणूर मुष्टिक योद्धा देखू
कुबजा के घर और,
राधा कृष्णके मन्दिर देखू,
दाउ मन्दिर शोर॥
छोड़ विभाग
रामजी मधुबन, घूमि लिअ अब,
कृष्ण बसथि जेहि ठौर॥
गोकुल नन्द यशोदा देखू
कृष्ण झुलाउ एक बेर॥
17.
महेशवानी

भोला केहेन भेलौँ कठोर,
एक बेर ताकू हमरहुँ ओर॥
भस्म अंग शिर गंग विराजे,
चन्द्रभाल छवि जोर।।
वाहन बसहा रुद्रमाल गर,

भूत-प्रेतसँ खेल॥

त्रिभुवन पति गौरी-पति मेरो जौँ ने हेरब एक बेर,

तौँ मेरो दुःख कओन हरखत

सहि न सकत जीव मोर॥

बड़े दयालु जानि हम अयलहुँ,

अहाँक शरण सूनि शोर,

राम-जी अश्रण आय पुकारो,

दिजए दरस एक बेर॥

(अनुवर्तते)


इ.पद्य ज्योति झा चौधरी


ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

मेघक उत्पात
कनिक काल दऽ पानिक फुहार
फेर लेलक अपन ऑँजुर सम्हारि
देखू मेघक उत्पात
लोकक आशाक उपहास करैत
कखनो दर्शन दऽ बेर-बेर नुकाइत
मौलाऽगेल गाछ आऽ पात
कखनो गरजि भरि कऽ रहि गेल
कखनो बरसि-बरसि कऽ भरि गेल
डूबल पोखरिक कात
कोसीक प्रवाह सब बॉँन्ह तोड़लक
गामक गाम जलमग्न कएलक
ततेक भेल बरसात
किसानक भविष्य मेघपर आश्रित
मेघक इच्छा पूर्णतः अप्रत्याशित
सभसालक अनिश्चित अनुपात

गजेन्द्र ठाकुर

पथक पथ

स्मृतिक बन्धनमे
तरेगणक पाछाँसँ
अन्हार गह्वरक सोझाँमे
पथ विकट। आशासँ!

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक प्रहेलिकाक
तोड़ भेटि जायत जौँ
इतिहासक निर्माणक
कूट शब्द ताकब ठाँ।

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

विश्वक मंथनमे
होएत किछु बहार आब
समुद्रक मंथनमे
अनर्गल छल वस्तु-जात

पथक पथ ताकब हम
प्रयाण दीर्घ भेल आब।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

Sunday, July 27, 2008

विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक ११ ६. पद्य स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)गंगेश गुंजनज्योति झा चौधरीगजेन्द्र ठाकुर

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
इ.पद्य ज्योति झा चौधरी
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर

अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
8.
भजन विनय

लक्ष्मीनारायण हमर दुःख क्खन हरब औ॥
पतित उधारण नाम अहाँके सभ कए अछि औ,
हमरा बेर परम कठोर कियाक होइ छी औ।।
त्रिविध ताप सतत निशि दिन तनबै अछि औ॥
अहाँ बिना दोसर के त्राण करत औ॥
देव दनुज मनुज हम कतेक सेवल औ,
कियो ने सहाय भेला विपति काल औ॥
कतेक कहब अहाँके जौँ ने कृपा कर औ,
रामजीके चाड़ि अहाँक के शरण राखन औ॥

9.
भजन विनय
एक बेर ताकू औ भगवान,
अहाँक बिना दोसर दुःख केहरनाअन॥
निशि दिन कखनौ कल न पड़ै अछि,
कियो ने तकैये आन
केवल आशा अहाँक चरणके आय करू मेरे त्राण॥
कतेक अधमके तारल अहाँ गनि ने सकत कियो आन,
हमर वान किछु नाहि सुनए छी,
बहिर भेल कते कान॥
प्रबल प्रताप अहाँक अछि जगमे
के नहि जनए अछि आन,
गणिका गिद्ध अजामिल गजके
जलसे बचावल प्राण॥
जौँ नहि कृपा करब रघुनन्दन,
विपति परल निदान,
रामजीके अब नाहि सहारा,
दोसर के नहि आन॥

10.
महेशवानी

सुनू सुनू औ दयाल,
अहाँ सन दोसर के छथि कृपाल॥
जे अहाँ के शरण अबए अछि
सबके कयल निहाल,
हमर दुःख कखन हरब अहाँ,
कहूने झारी लाल॥
जटा बीच गंगा छथि शोभित चन्द्र विराजथि भाल,
झारीमे निवास करए छी दुखियो पर अति खयाल॥
रामजीके शरणमे राखू,
सुनू सुनू औ महाकाल,
विपति हराऊ हमरो शिवजी करू आय प्रतिपाल॥


11.
महेशवानी

काटू दुःख जंजाल,
कृपा करू चण्डेश्वर दानी काअटू दुःख जंजाल॥
जौँ नहि दया करब शिवशंकर,
ककरा कहब हम आन,
दिन-दिन विकल कतेक दुःख काटब
जौँ ने करब अहाँ खयाल॥
जटा बीच गंगा छथि होभित,
चन्द्र उदय अछि भाल,
मृगछाला डामरु बजबैछी,
भाँग पीबि तिनकाल॥
लय त्रिशूलकाटू दुःख काटू,
दुःख हमरो वेगि करू निहाल,
रामजी के आशा केवल अहाँके,
विपति हरू करि खयाल॥



12.
महेशवानी

शिव करू ने प्रतिपाल,
अहाँ सन के अछि दोसर दयाल॥
भस्म अंग शीश गंग तीलक चन्द्र भाल,
भाँग पीब खुशी रही ,
रही दुखिया पर खयाल।
बसहा पर घुमल फिरी,
भूत गण साथ,
डमरू बजाबी तीन
नयन अछि विशाल॥
झाड़ीमे निवास करी,
लुटबथि हीरा लाल,
रामजी के बेर शिव भेलाह कंगाल॥

13.

महेशवानी

शिवजी केहेन कैलौँ दीन हमर केहेन॥
निशिदिन चैन नहि
चिन्ता रहे भिन्न,
ताहू पर त्रिविध ताप
कर चाहे खिन्न॥
पुत्र दारा कहल किछु ने सुनै अछि काअ
ताहू पर परिजन लै अछि हमर प्राण॥
अति दयाल जानि अहाँक शरण अयलहुँ कानि,
रामजी के दुःख हरू अशरण जन जानि॥
(अनुवर्तते)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
गंगेश गुंजन(1942- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
३. गाम
चारि पाँती मातृभूमि मिथिलाक नाम
पाँच फूल देश केर शहीदक नाम
नोर चारि ठोप हमर श्रम केर
स्मतृतिमे अव्यतीतक नाम

माटि, मेघ, वायु, सौँस पर्वतकेँ
नदी, वृक्ष, पक्षी आऽ निर्झरकेँ
अपन सूर्य तारा आऽ चन्द्रमा,
ग्राम नगर गली केर बसातक नाम
गुंजनक सश्रु स्वाधीन प्रणाम
गढ़ि रहल छथि फेरसँ एखन ओऽ मुरुत
हुनक मन, बांहि आँखि अथक हौँसला
चकचक देहक श्रमकणकेँ सादर प्रणाम
हे हमर विवेक, हमर दुःख-सुख,
हे हमर गाम!


इ.पद्य ज्योति झा चौधरी


ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बालश्रम
बालपनक किलकारी भूखक ताप सऽ भेल मूक,
पोथी बारि कोदारि पाडैत हाथक मारि अचूक।
कादो रौद बसातमे श्रम केनाइ भेल मजबूरी;
गरीबीक पराकाष्ठा ! पेट आ पीठक घटैत दूरी,
किछु धनहीनता आ’ किछु माता पिताक मूर्खता,
मुदा, सभसँ बेसी स्वार्थी समाजक संवेदनहीनता,
जे बालक केँ माताक आश्रय सॅं वञ्चित केलक,
लेखनि के छीन कोमल हाथमे करची धरेलक,
माल जालक सेवा करैत बाल्य जीवन कुदरूप,
अपने भविष्यकेँ दरिद्र करैत अज्ञान आ' अबूझ,
विद्योपार्जनक ककरा फुर्सति ? स्थिति तऽ तेहन भेल,
चोर बनक आतुर अछि बालपन दू दाना अन्न लेल।
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
मोनक जड़िमे
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल।

पर्वत शिखर सोझाँ अबैत हियाऊ गमाबथि,
बल घटल जेकर पार दुःखक सागर करैत।
करबाक सिद्धि सोझाँ छथि जे क्यो विकल,
भोथलाइत प्यासल अरण्यपथ मे हँ बेकल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल।

हाथ दए तीर आनि दए करोँट तखन तत,
मनसिक अन्हारक मध्य विचरणहि सतत।
प्रकाशक ओतए कए उत्पत्ति ठामहि तखन,
विपत्तिक पड़ल क्यो आब नञि होएत अबल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध कए पुनः किञ्च जानि किए सेजल।

करबाक अछि लोक कल्याणक मन वचन कर्महि ,
नञि अछि अपन अभिमान छोड़ब अधः पथ ई।
घुरत अभिमान देशक तखन अभिमानी हमहुँ छी,
नञि तँ फुसियेक अभिमान लए करब पुनः की।
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रमक ई,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च जानि कए सेजल छी।

c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक १० ६. पद्यस्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)/ गंगेश गुंजन/ज्योति झा चौधरी/गजेन्द्र ठाकुर

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
इ.पद्य ज्योति झा चौधरी
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
4.
भजन विनय

प्रभु बिनु कौन करत दुःख त्राणः।।
कतेक दुखीके तारल जगमे
भवसागर बिनु जल जानः॥
कतेक चूकि हमरासे भ’ गेल,
स्वर नञ सुनए छी कानः।।
अहाँके तौँ बानि पड़ल अछि,पतित उधारण नामः।
नामक टेक राखु अब प्रभुजी हम छी अधम जोना।
कृपा करब एहि जन पर कोन खबरि लेत आन।
रामजी पतितके नाहि सहारा दोसर के अछि आनः॥

5.
विहाग

भोला हेरू पलक एक बेरः॥
कतेक दुखीके तारल जगमे कतए गेलहुँ मेरो बेरः॥
भूतनाथ गौरीवरशंकर विपत्ति हरू एहि बेरः॥
जोना कृपा करब शिवशंकर कष्ट मिटत के औरः॥
बड़े दयालु जानि हम एलहुँ अहाँक शरण सुनि सोरः॥
रामजीके नहि आन सहारा दोसर केयो नहि औरः॥

6.

भजन महेशवाणी

भोला कखन करब दुःख त्रान?
त्रिविध ताप मोहि आय सतावे लेन चहन मेरो प्राण॥
निशिवासर मोहि युअ समवीने पलभर नहि विश्रामः॥
बहुत उपाय करिके हम हारल दिन-दिन दुःख बलबान,
ज्यौँ नहि कृपा करब शिवशंकर कष्ट के मेटत आन॥
रामजीके सरण राखू प्रभु, अधम शिरोमणि जान॥भोला.॥

7.
विनय विहाग

राम बिनु कौन हरत दुःख आन
कौशलपति कृपालु कोमल चित
जाहि धरत मुनि ध्यान॥
पतित अनेक तारल एहि जगमे,
जग-गणिका परधान।।
केवट,गृद्ध अजामिल तारो,
धोखहुषे लियो नाम,
नहि दयालु तुअ सम काउ दोसर,
कियो एक धनवान।।
रामजी अशरण आय पुकारो, भव ले करू मेरो त्राण॥रामबिनु॥

(अनुवर्तते)
(अनुवर्तते)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
गंगेश गुंजन(1942- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
2.परिवर्त्तन

बदलू आंखि बाट बदलू
गाछक छाहरि मार्ग चलू
बहुत गोटय भेटत ओहि ठाम
आदर्शक बाना त्यागू
मात्र शब्द धरि ल' ओढ़ू
मनपसिन्न सुविधा लोढ़ू
बेमतलब थिक गुंजन जी,
बाकी बेश रहओ सिद्धान्त
पोथी मे किछु अवसर पर
मंच, सभामे किन्तु ने घर
सगरे शीतल-शीतल छैक
रौद नहि बेश इजोरिया हैत
ठहाठही उज्जर मखमल
हरियर घनगर गाछे गाछ
मंद पवन सुरभित सब बात
जुनि झरकाउ, रहू सुस्थिर
बड़ अमूल्य थिक इहो शरीर
आत्मा तं पौतीक समान
सन्नुक मे जाँतल सामान


इ.पद्य ज्योति झा चौधरी


ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) आ' हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्र्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
विकास
विकासशीलताक उच्चतम्‌ शिखर
कतऽ आऽ कतेक दूर पर भेटत।
ई एकमात्र मृगमरीचिका तऽ नहि
जे लग गेला पर बिला जायत ।
प्यासलकेँ लोभ दऽ बजाबए लेल
फेर कनिक दूर पर देखायत।
मनुष विज्ञान आर तकनीकक नशामे
आर कते दिन ओकरा खिहारइत रहत।
यात्रा मात्रसॅं प्रकृति दूषित भेल
भेटऽ मे की जानि कतेक हानि हएत।
परन्तु अपन ज्ञानक सीमा संकुचित कऽ
बुद्धिकेँ स्थूल तऽ नहि कएल जायत।
गति निर्धारण आ' सामनजस्य चाही
जतऽ विकासक मार्ग नहि रोकल जायत।
संगहि प्रगति आऽ प्रकृति दुनुक भैयारी
विज्ञानक नाम पर नहि तोड़ल जायत।
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
अखण्ड भारत
धीर वीर छी मातु बेर की,
अबेर होइत सङ्कल्पक क्षण ई,
बुद्धि वर्चसि पर्जन्य बरिसथि,
सभा बिच वाक् निकसथि,
औषधीक बूटी पाकए यथेष्ठा,
अलभ्य लभ्यक योग रक्षा।
आगाँ निश्चयेण कार्यक क्रमक,
पराभव होए सभ शत्रु सभक,
वृद्धि बुद्धिक होऽ नाश शत्रुत्वक,
मित्रक उदय होऽ भरि जगत।
नगर चालन करथि स्त्रीगण,
कृषि सुफल होए करू प्रयत्न।
वृक्ष-जन्तुक संग बढि आब,
ठाढ होऊ नहि भारत भेल साँझ,
दोमू वर्चसिक गाछ झहराऊ पाकल फलानि,
नञि सोचबाक अनुकरणक अछि बेर प्राणी।
वर्चस्व अखण्ड भरतक मनसिक जगतमे,
पूर्ण होएत मनोरथ सभक क्यो छुटत नञि।

c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

विदेह 15 अप्रैल 2008 वर्ष 1 मास 4 अंक 8 7. पद्य

7. पद्य

नाम - ज्योति झा चौधरी ;जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८;जन्म स्थान -बेल्हवार,मधुबनी ;शिक्षा - स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्र्ल्स हाई स्कूल़,मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़,इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी);;निवास स्थान - लन्दन, यू के ;पिता -श्री शुभंकर झा,ज़मशेदपुर ;माता -श्रीमती सुधा झा,शिवीपट्टी ; ।''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सबकेँ पत्र लिखबामे केने छी।।बचपनसँ मैथिली सँ लगाव रहल अछि।-ज्योति



आधुनिक जीवनदर्शन

अतिशयोक्ति सँ विरक्ति अछि
जाबे ओ' दोसरक प्रशंसा में होय
परञ्च निंदामे किएक कंजूसी
जखन अनकर करबाक होय ।

असभ्य तऽ ओकरा बुझब
जे हमर प्रशंसकके रोकयए,
ने हम्मर कियो प्रशंसक अछि
ने समाजमे कियो असभ्य बुझाइए ।

परोपकार करनिहारके आशिष
जे हमर काज बना गेल
अन्यथा ओ सब बेरोजगार
जे आनक काजमे लागि गेल ।



2. मिथिलाक ध्वज ग़ीत- गजेन्द्र ठाकुर

मिथिलाक ध्वज फहरायत जगतमे,
माँ रूषलि,भूषलि,दूषलि, देखल हम,
अकुलाइत छी, भँसियाइत अछि मन।

छी विद्याक उद्योगक कर्मभूमि सँ,
पछाड़ि आयत सन्तति अहाँक पुनि,
बुद्धि, चातुर्यक आ’ शौर्यक करसँ,
विजयक प्रति करू अहँ शंका जुनि।

मैथिली छथि अल्पप्राण भेल जौँ,
सन्ध्यक्षर बाजि करब हम न्योरा,
वर्ण स्फोटक बनत स्पर्शसँ हमर,
ध्वज खसत नहि हे मातु मिथिला।

Music Notation
राग वैदेही भैरव त्रिताल(मध्य लय)

स्थाई
सां

धसां धप म (-) रे – सा सा सा रे॒ म – प ध प म

सां
प ध – ध सां – सां धसां रें – सां सां धसां धप म, ध
सां धप म (-)



अन्तरा

प ध सां ध सां सां सां ध – रें॒ – मं रें॒ –सां सां
सां – ध प म - - प म रे॒ – सा रे॒ – सा सा
- रे॒ म - प ध ध सां ध सां- सां रें॒ रें॒ सां सां
मप धसां धसां रें॒सां धसां धप म,सां
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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Saturday, July 26, 2008

विदेह 01 अप्रैल 2008 वर्ष 1 मास 4 अंक 7 5. पद्य

5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य

विशाल समुद्र
समुद्रक लहरिक तरंग
अनगिनत बेर दोहरा रहल अछि ।
उद्देश्यहीन अपने मुदा ओकर गान
कहिया कत’ सँ चलि रहल अछि ।
बेर बेर रेत पर बनल पदचिह्‌न
मेटा क’ तटसॅं घुरि जाइत अछि ।
जलक सभसॅं शक्तिशाली संगठन
सागरक रूपमे उपस्थित अछि ।
रातिक अन्हारोमे ओकर गर्जन
ओकर विशालताक आभास कराबैत अछि ।








गजेन्द्र ठाकुर-
के छथि
के छथि जिनकर हस्त-रेखमे,
अछि परिश्रमसँ बढ़ब लिखल।
के छथि जिनका ललाट मध्य,
परिश्रमक गाथा रहैछ सकल।
जे छथि सुस्त तकरे चमकैत,
अछि हाथक रेखा बुझूँ सखा,
जिनका घाम नहि खसन्हि,
छन्हि ललाट चमकैत,नहि बेजाय।।

(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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Friday, July 25, 2008

विदेह 15 मार्च 2008 वर्ष 1मास 3 अंक 6 5. पद्य

5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य

गामक सूर्यास्त
गामक सूर्यास्त
एक अद्भुत दृष्य यादि पाड़ि चकित भेलहुँ,
पोखरिक भीड़ पर हम ठाढ़ छलहुँ
आसमानक नीलवर्ण भेल रंगमय
दिया बातीक मुहुर्तमे सुर्य सबसॅं विदा लय
क्षितिजमे विलीन हुअ लागल
संग ओकर प्रकाशपुंज सेहो भागल
सबहक खरिहानमे लालटेन टिमटिमाय छल
पक्षी सब समदाओन गाबि रहल छल
सेहो ध्वनि मन्द पड़ि गेल
सॉंझ रातिमे बदलि गेल
फेरि स अगिला भोर मे पक्षिगण
गायत प्राती सब मिलि एक संग।








आ’ गजेन्द्र ठाकुर
होली
धुरखेलक कादो-माटिसँ रहथि अकच्छ, रंग अबीर भने आयल मुदा लगैछ टका,
साफ-सुथड़ा बुझैत छलहुँ एकरा मुदा, निबंध निकलैत अछि रंगक केमिकलक, विषय अछि पुरनके छल ठीक यौ कका।

दारू पिनहार सोमरसक चर्चा करैत नहि अघाइत छथि, देवतो पिबैत रहथि ओकरा पुरनका नामसँ, अछि होली,
मित्रता बढ़ेबासँ बेशी घटा रहल अछि आइ काल्हि ई।

Thursday, July 24, 2008

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 3. महाकाव्य महाभारत (आँगा)

3. महाकाव्य
महाभारत (आँगा) ------
2.सभा पर्व
मय दानव छल कय रहल नव निर्माण,
सभा भवनक दिन-राति लागि उत्थान।
स्फटिकसँ युक्त शीसमहल सन कौशल,
युधिष्ठिर ओतहि तखन सिंहासन बैसल।
ऋषि नारदक आगमन भेल ओतय जाय,
देलन्हि करबाक यज्ञ जे राजसूय कहाय।
बजाओल द्वारकासँ कृष्णकेँ समाद पठाय,
कृष्ण कहलन्हि सभा भवनमे आबि कय,
जरासंध मगधक नरेश रहत गय यावत।
राजसूय सफल नहि होमय देत तावत।
बंदी बनेलक राजा लोकनिकेँ ओ’हराय,
आक्रमण ओकर भेल मथुरा पर बड्ड ,
हारि द्वारका राजधानी बनाओल जाय ।
युधिष्ठिर बात सुनैत भेलथि हतास सन,
भीम अर्जुन आशा बन्हेलन्हि भ्राता सुन।
क्षत्रिय-धर्म अछि शत्रुके वशमे करय,
कृष्ण,अर्जुन-भीम संग राजगृह चलल।
ब्राह्मण वेशधारी राजगीरक प्राचीर लाँघि,
पहुँचल सभ सोझे सभा-भवन जी-जाँति।
सत्कार करय चाहलक जरासंध बुझि विप्र,
ललकारा देलक किंतु भीम द्वंद-युद्धक शीघ।
दिन बीतल खत्मक नाम नहि लैछ ई युद्ध,
कृष्णक संकेत पाबि चीरल ओ’शरीर संधिसँ,
भीम तोड़ल शरीर जरासंधक उनटि फूर्त्तिसँ,
शरीर फेंकल दुहू दिशि उनटि एम्हर-ओम्हर,
मुक्त कएल कारागारसँ बंदी गण राजा सभकेँ।
जरासंध-पुत्र सहदेवकेँ दय मगध राजक गद्दी,
आपस भेलाह इंद्रप्रस्थ घुरलाह तीनू व्यक्त्ति।
पूर्व दिशि भीम उत्तर अर्जुन नकुल दक्षिण ,
सहदेव पश्चिम दिशा दिशि दिग्विजय खातिर।
विजय रथ नहि क्यो रोकि सकल हुनकर,
धन-धान्यसँ परिपूर्ण सभ आबि कएल तैयारी,
राजसूय यज्ञक भेल राजा सभक प्रस्थमे बजाही।
राजा लोकनि केँ दय समुचित कार्यक भार,
भीष्म-द्रोणकेँ यज्ञ-निरीक्षणक देल प्रभार।
कृष्ण विप्र चरण-धोबाक लेलन्हि काज ।
हस्तिनापुरसँ भीष्म,
द्रोणक संग भेल आगमन,
धृतराष्ट्र विदुर कृप अश्वत्थामा दुर्योधन दुःशासन।

(अनुवर्तते)

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 5.पद्य (आँगा)

5.पद्य (आँगा)

नाम - ज्योति झा चौधरी ;जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८;जन्म स्थान -बेल्हवार मधुबनी ;शिक्षा - स्वामी विवेकानन्द मिडल स्कूल़,टिस्को साकची गर्ल्स हार्ई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी़ आइ.सी.डबल्यू.ए.( कॉस्ट एकाउण्टेन्सी) ;निवास स्थान – लन्दन,यू.के.;पिता -श्री शुभंकर झा,ज़मशेदपुर;माता -श्रीमती सुधा झा़ शिवीपट्टी ;''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी़ नानी़ भाई बहिन सबकेँ पत्र लिखबामे केने छी ।बचपन सँ मैथिली सँ लगाव रहल अछि|-ज्योति

हिमपात
बर्फ ओढ़ने वातावरण !
मानू आकाश टूटि क बिखरि गेल ,
अपने आप के छिरियाकऽ
सबके एक रंग में रंगि गेल ॥

थरथराबैत सरदी स भयभीत
सब जीव अपन जगह धेलक;
प्रकृति के इहो अवरोध मुदा,
मनुष्य के नहि बॉंधि सकल ॥

भॉंति प्रकारक साधन जोगारलक
विकट परिस्थिति पर विजय लेल;
अपन सर्वश्रेष्ठ बुद्धिबल स
मनुष्य अंतत: सफल भेल॥




गजेन्द्र ठाकुर

90.नव-घरारी

साँप काटल नन्दिनीकेँ,
नव घरारी लेलक खून।
टोलक घरारी छोड़ू जुनि।
ई विशाल जनसंख्या एतय,
छल बनल एकटा काल,
ई नव-घरारी लेलक प्राण,
टोलक घरारी साबिकक डीह,
परञ्च अछि छोट आब की।
खून लेलक आब ई बनि गेल अख्खज,
नव घरारी होयत छोट किछु काल अन्तर।


91. बुद्ध
हृदय लग अछि जेबी,
से जखन रहय खाली,
मोन कोना रहत प्रसन्न।
बुद्ध सेहो कहि गेल छलाह ई।
मुम्बइमे सूप मँगलहुँ,
पुछलक अहाँमे जैनी कैकटा छी।
देत लहसुन की नहि रहय तात्पर्य,
आपद्काले रहि गेल अछि आइ काल्हि सदिखन।
सेल टैक्समे करैत छी भरि दिन काज,
तैँ प्रोननशियेशन भेल अछि मराठी,
एक्साइज तँ अछि केन्द्रीय सरकार,
संपर्क बाहरीसँ बेशी।
छत्तीसगढ़क छत्तीस घंटाक यात्रा,
उत्तर-मध्य क्षेत्रक स्तूपकेँ देखल,
बंगाल घूमल पंजाब घूमल,
बंगाली कहलन्हि सुनि जे जौँ,
बंगाली जायत संग करत कानूनी बात\
सरदारजी कहलन्हि रोड पर,
रेड लाइट रहलो क्रॉस करू,
सोझाँसँ अबैत छल एकटा सरदार,
कहल करत आब ई झगड़ा।
सक्सेना कहलक एक मैथिलकेँ,
मैथिल अछि मैथिलक परम शत्रु।
हम कहल सक्सेनाकेँ,हे
जुनि करू हुनका दूरि।
काज सभटा झट कराऊ जुनि भड़काऊ।
बुद्धक भूमिसँ घुरि आयल छथि,
दिल्लीक सड़क पर एहि बेर।
पाटलिपुत्र रहय राजधानी,
हम छलहुँ ततय पुन फेर,
दिल्ली बनल राजधानी भारतक,
कोन जुलुम हम कएल।
कणाद कपिल गौतम जेमिनी देतथि
जौँ नहि काज,
कहलन्हि ई ठीके हृदय लग,
जेबी देने अछि सीबि।
हृदय कोना प्रसन्न रहत जखन,
पेट रहत गय खाली।
जेबीमे पाइ नहि रहत,
उपासे करब हम भाइ।
बुद्ध सेहो कहि गेलाह ई।

92. रिक्त पाँचम वर्गसँ सातम वर्गमे,
तड़पि गेल छलहुँ हम।
छट्ठा वर्गक अनुभव अछि रिक्त।
बा’ आ’ बाबा जन्मक पहिनहि,
प्राप्त कएलन्हि मृत्यु,
वात्स्ल्यक अनुभव भेल रिक्त।
माँ एके बहिनि छलि तेँ,
मौसी-मौसाक अनुभवो नहि,
ईहो रहल रिक्त।
क्यो कहैत अछि जे छठामे पढ़ैत छी,
बा’ आ’ बाबाक संग घुमैत छी,
मौसी-मौसाक काज उद्यममे जाइत छी,
तँ हम कहैत छी, जे ई कोन संबंध
, कोन वर्ग अछि,
छोड़ि सकैत छी।
उत्तर भेटैछ,
अहाँ नहि बुझब।
मुदा नव संबंध,
नब नगर,
नव भाषा,
नवीन पीढ़ीकेँ, कोना बुझायब,
ओ’ कोना बुझत।
ओ’ तँ नहि बूझि सकत काका-काकी,
नहि बूझत दीया-बाती,
खटैत दौड़ैत आ’ नहि घुरि आओत,
ककरा बुझायब आ’ के बूझत।

93. चित्रपतङ्ग
उड़ैत ई गुड्डी,
हमर मत्त्वाकांक्षा जेकाँ,
लागल मंझा बूकल शीसाक,
जेना प्रतियोगीक कागज-कलम।
कटल चित्रपतङ्ग,
देखबैत अछि वास्तविकताक धरा।
जतयसँ शुरू ओतहि खत्म,
मुदा बीच उड़ानक स्मृति,
उठैत काल स्वर्गक आ’,
खसैत काल नरकक अनुभूति।

94.प्रवासी
संगहि काटल घास,
महीस संगे चड़ेलहुँ,
पुछैत छी गहूम ई,
पाकत कहिया?
दू दिन दिल्ली गेलहुँ,
सभटा बिसरेलहुँ,
ईहो बिसरि गेलहुँ,
जे धान कटाइछ कहिया।


95. वेदपाठी
वेद वाक्य परम सत्य,
संस्कृत साहित्य अति उत्तम।
करैत छी अहाँ वक्त्तव्य,
मुदा अहाँ की अहाँक पुरखा,
मरि गेलाह बिन सुनने,वेद वाक्य,
बिन पढ़ने संस्कृत।
यौ अहाँ नहि पढ़लहुँ अहाँ,
अनका अनधिकार बनेबाक चेष्टा,
कएलहुँ अहाँ।
छी वेदक अप्रेमी,
नहि अछि क्षमता,
वेदक पक्ष की विपक्षमे बजबाक ।
वेद वाक्य सत्य एकरा बनेने छी,
अहाँ फकड़ा।

96. बिसरलहुँ फेर
खूब ठेकनेने जाइत,
जे नहि बिसरब आइ,
मुदा गप्प पर गप्प चलल,
कृत्रिमता गेल ढ़हाइत।
फेर काजक बेर मोन,
नहि पड़ल पड़ैत-पड़ैत मोन,
कर्णक मृत्युक छोट- छीन रूप,
आ’ तकरा बाद मसोसि कय
रहि जाइत छी गुम्म।

97. तक्षशिला
तक्षशिला अछि पाकिस्तानमे,
इतिहासक उनटबैत पन्ना,
चक्र घूमल टूटल हमर देश,
अराड़ि ठाढ़ कएलक दियाद।
मुदा सोचैत छी।
जे भने दियाद अछि समीप,
आ’ कएने अछि अराड़ि,
ताहि बहन्ने छी हम सजग,
करैत रहैत छी तैयारी।
1962 धरि हिमालयकेँ बुझल बेढ़,
जेना 1498 धरि छल समुद्र,
द्वार खोलैत छल खैबर दर्रा।
प्ड़ोसीयो पर आक्रमण होइत छल,
दूर-दूरसँ अबैत छल अत्याचारी,
भने दियाद अछि कएने अराड़ि,
जे करैत रहैत छी तैयारी।

98. चोरि
गेलहुँ गाम आ’ एम्हर,
आयल फोन, समाचार चोरिक।
छुट्टी होयबला छल समाप्त,
मुदा चोरक गणना छल ठीक।
आबयसँ एक्के दिन पहिने,
लगेलन्हि घात।
तोड़ि कय केबाड़,
उधेसल घर-बार।
नहि पाबि कोनोटा चीज,
घुरल माथ पीटि।
भोरमे पड़ोसी कएलन्हि डायल सय,
पुलिस आयल हारि थाकि कय।
पड़ोसीसँ किनबाय दू टा अतिरिक्त ताल,
(पुलिस महराज अपन घरक हेतु),
चाभी लेलन्हि अपन काबिजमे।
चोर हड़बड़ीमे छल चलि गेल,
मुदा एहि महाशयक हाथ चाभी गेल,
आ’ शो-केशक चानीक नर्त्तकी गुम भेल।
चोरकेँ छल डर गेटक दरबानक,
से छलाह ओ’ गहनाक आ’ नकदीक ताकक।
मुदा पुलिस महाराज दय राब दौब दरबानहुँकेँ,
निकललाह चोरि कय बरजोड़ीसँ।

99. चोरकेँ सिखाबह
यौ काका छी अहाँ खाटकेँ,
धोकड़ी किएक बनओने,
खोलि नेवाड़ फेर घोरिकेँ,
बनाऊ खाट फेर नवीने।
कहलन्हि काका तखन जे हौ,
देखह आयत रातिमे जे चोर,
पटकत लाठी खाट पर आ’
चोट नहि लागत मोर।
परञ्च काका जौँ ओ’ चलबय,
लाठी नीचाँ बाटे,
वाह बेटा कहि दिहह चोरकेँ,
ई गप तोहीँ जा कय।


100. काल्हि
भोरे उठि ऑफिस जाइत छी,
आ’ साँझ घुरि खाय सुतैत छी।
कतेक रास काज अछि छुटैत,
अनठाबैत असकाइत मोन मसोसैत।
जखन जाइत छी चुट्टीमे गाम,
आत्ममंथनक भेटैत अछि विराम।
पबैत छी ढ़ेर रास उपराग,
तखन बनबैत छी एकटा प्रोग्राम।
कागजक पन्ना पर नव राग,
विलम्बक बादक हृदयक संग्राम।
चलैत छल बिना तारतम्यक,
उद्देश्यक-विधेयक।
कनेक सोचि लेल,
छुट्टीमे जाय गाम।
विलम्बक अछि नहि कोनो स्थान,
फुर्तिगर, साकांक्ष भेलहुँ आइ,
जे सोचल कएल, नित चलल,
जीवनक सुर भेटल आब जाय।

101. मोन पाड़ैत
मोन अछि नहि पड़ि रहल,
पाड़ि रहल छी मोन।
लिखना कड़ची कलमसँ लिखैत,
फेर फाउन्टेन पेनक निबमे बान्हि ताग,
छलहुँ लिखाइकेँ मोटबैत,
मास्टर साहब भ’ जाइथ कनफ्यूज।
केलहुँ अपने अपकार ठाढ़े-ठाढ़,
अक्षर अखनो हमर नहि सुगढ़।
फेर मोन पाड़ैत छी,
दिनमे बौआइत रही,
कलममे बाँझी तकैत,
दोसर ठाढ़ि तोड़ने पड़ैत छल,
बुरबक होयबाक संज्ञा,
ईहो छी नहि बुझैत,
मोजर होइत तँ खैतहुँ आम,
अगिला साल।
बाँझीमे नहि कोनो आस,
घूरमे होइछ मात्र काज।
फेर छे पाड़ैत, अंडीक बीया बीछब,
पेराइ कटबाय अनैत छलहुँ तेल,
ओहिमे छनल तिलकोड़क स्वाद,
राजधानीक शेफकेँ करैछ मात।
तेलक कमीसँ भभकैत कबइक स्वाद,
’की नीक बनल’ केर मिथ्यावाद।
महिनामे आध किलो करू तेलक खर्च,
भ’ जायत एक किलो, पाइक माश्चर्ज।
कंजूसी नहि, जबरदस्ती ठूसी।
मोन पाड़ैत छी धानक खेत,
झिल्ली कचौड़ी, लोढ़ैत
काटल धानक झट्ठा,
ओहि बीछल शीसक पाइसँ कीनल लालछड़ी।
‘जकरे नाम लाल छड़ी’ आ’ सतघरियाक खेल,
आमक जाबी,
बंशीसँ मारैत माछ,
खुरचनसँ सोहैत आम काँच।
चूनक संग काँच आमक मीठ स्वाद,
बडका दलान, दाउन,
बाढ़िक पानि सँ डूबल शीस होइत खखड़ी,
धानमे मिला देला पर पकड़ैत छल कुञ्जड़नी।
भैरव स्थानक काँच बैरक स्वाद,
बिदेसरक रवि दिनक बूझल,
फूल_लोटकीसँ बिदेसर पूजल।
चूड़ा लय जाइत रही गामसँ,
दही-जिलेबी कीनि घुरैत भोजन कय।
जमबोनीक बनसुपारीक स्वाद,
पुरनाहाक धातरीमक गाछ।
साहर दातमनिक सोझ नीक छड़,
जे अनैछ छी बुधियारी तकड़।
तित्ती खेलाइत बाल, गुल्ली डंटा,
गोलीक खेल, अखराहाक झमेल।
हुक्का लोलीक बाँसक कनसुपती,
फेर कपड़ाक गेनी मटियातेलमे डुबाय,
छलहुँ रहल जराय।
छठिक भोरमे फटक्का फोड़ल,
जूड़िशीतलक धुरखेल खेलेल।
आयल बाढ़ि दुर्भिक्ष,
छोड़ल गाम यौ मित्र।
मोन नहि पड़ैछ,छी पाड़ैत,
बैसि बैसि बैसि।

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 6. संस्कृत शिक्षा (आँगा)

6. संस्कृत शिक्षा (आँगा)
संस्कृत कथा
गंगातीरे एकः साधुः अस्ति। सः सज्जनः। सर्वदा परोपकारम् करोति। दयालुः अपि आसीत। सः यः कोपि आगत्य सहाय्यम पृच्छतेत सः परोपकारम करोति। एकः बालकः आगत्य किमपि पृच्छति। तस्य सहायम् करोति। एकदा सः साधुः स्नानार्थम् गंगां नदीं गच्छति। सः गंगा नद्याम अवतरति। स्नानं करोति। तदा प्रवाहे एकः वृश्चिकः आगच्छति। वृश्चिकस्य स्वभावः दंशनम्। दुष्ट स्वभावः। सः वृश्चिकः तत्र तस्य समीपम् आगच्छति। तदा सः साधुः वृश्चिकः रक्षणीयः इति चिन्तयति। सः साधु वृश्चिकं गृह्णाति। सः वृश्चिकः बहुवारं तस्य हस्तं दशति। एकवारं सः त्यजति, पुनः दशति। पुनः गृह्णाति, पुनः दशति। तथापि सः साधुः वृश्चिकं न त्यजति।सम्यक् गृह्णाति। अत्र तटम् आनयतुं प्रयत्नं करोति। सः साधुः वृश्चिकं त्यजति। पुनः चिंतयति- एषः वृश्चिकः रक्षणीयः इति। सः वृश्चिकं पुनः गृह्णाति। सावधानं नदीतटम् आनयेति। तत्र एकः पुरुषः सर्वं पश्यन् भवति। साधुं किं करोति। इति पश्यन् भवति। तदा सः पुरुषः पृच्छति। भोः। किमर्थं वृश्चिकं रक्षति। सः दशति किल। इति। तदा साधुः वदति। भोः। तस्य स्वभावः सः। दुष्टः स्वभावः। मम् स्वभावः परोपकारः। क्षुद्रः जंतुः सः यथा सः स्वभावं न त्यजति तथा अहं मनुष्यः। मम् स्वभावं कथं त्यजति। इति सः साधुः तम वदति। सज्जनस्य स्वभावः किदृशः भवति किल।
कथायाः अर्थः ज्ञातः खलु। ज्ञातः।
सुभाषितम्
नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने। विक्रमार्जित सत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता।
वयं इदानीं यत् सुभाषितं श्रुतवंतः तस्य सुभाषितस्य अर्थः एवम् अस्ति। सिंहः वनराजः इति प्रसिद्धः। किन्तु तस्य कोपि अभिषेकं न करोतु। किमपि संस्कारं न ददाति। तथापि सः वनराजः। कथं सः स्वसामर्थयेन एव स्व प्रयत्नेन् एव वनस्य आधिपत्यं प्राप्नोति। एवमेव सामर्थ्यवान् पुरुषः स्वस्य प्रयत्नेन एव अत्यन्तं पदं प्राप्तुम शक्नोति।

पद्य ( गजेन्द्र ठाकुर)
चटका चञ्चति नृत्यति उड्डयति आकाशे। रचयति नीडं चटका वृक्षे आकाशे।
नगरं ग्रामं क्षेत्रं भ्रमति चटका आकाशे। आहारं प्राप्नोति आगच्छति सायं दृश्टवा, न कोलाहलं करोति गायति सा चटका।
कलहः करोति न चटका तत्र मध्ये आकाशे, कलहः न करोति चटका च क्षेत्रे गृह मध्ये।

------------------------------------------------
नमोनमः। भवतां सर्वेषाम् अपि स्वागतम्।
जलम् आवश्यकम्।
काफी आवश्यकम्।
मास्तु।
चायम् आवश्यकम्।
मास्तु। मास्तु। पर्याप्तः।
किम् आवश्यकम्। जलम् आवश्यकम्।
किंचित् आवश्यकम्।
आम्।
पुनः किंचित् आवश्यकम्। धनम् आवश्यकम्। चाकलेहः आवश्यकः। मिष्टान्नम् मधुरम् आवश्यकम्। शिक्षणम् आवश्यकम्। मास्तु। संस्कृतम् आवश्यकं वा। आवश्यकम्। ताडनं मास्तु। वस्त्रं धनं आवश्यकम्। द्वेषः कोलाहलः मास्तु। अहं भवतः युतकं ददामि। सर्वे वदंतु। चतुर्वेदस्य युतकम्। भवान युतकम्। मम युतकम्। वदतु। भवतः युतकम्। भवतः नासिका। समीचीनम्। सुनीते। भवति आगच्छतु। अहं भवत्याः आभूषणं वदामि। भवति मम् आभूषणं वदतु। भवन्तः सुनीतायाः आभूषणम् इति वदन्तु। भवत्याः घटी। भवत्याः केशः। साधु-साधु। पुनः एकम् अभ्यासः कुर्मः। कः कस्य मित्रम्। अथवा का कस्याः सखी। इति भवन्तः। लता प्रियङ्कायाः सखी। वदन्तु। उदाहरणं वदामि। इदानीम भवन्तः वदन्तु। रोहितः अभिषेकस्य मित्रम्। उत्तमम्। इदानीं वयं बहुवचनस्य अभ्यासं कुर्मः। छात्रः- छात्राः। दंतकूर्चः-दंतकूर्चा।
उत्तमम्। चशकः- चशकाः। बालकः- बालकाः। सैनिकः- सैनिकाः। वृक्षः- वृक्षाः। शिक्तवर्तिका- शिक्तवर्तिकाः। पेटिका- पेटिकाः। उत्पीठिका- उत्पीठिकाः। लेखनी- लेखन्यः। अङ्कनी- अङ्कन्यः। घटी- घट्यः। कूपी- कूप्यः। पर्णम्- पर्णानि। पुस्तकम्- पुस्तकानि। कङ्कनम्- कङ्कणानि। फलम्- फलानि। सङ्गणकम्- सङ्गणकानि।
अहम् एकवचने वदामि। भवन्तः परिवर्त्तनं कुर्वन्।

छात्रः अस्ति- छात्राः सन्ति। छात्रा अस्ति।– छात्राः सन्ति। दंतकूर्चः अस्ति। - दंतकूर्चाः सन्ति। चमषः अस्ति।– चमषाः सन्ति।
अङ्कणी अस्ति। अङ्कन्यः संति।
पर्णम् अस्ति।पर्णानि सन्ति।
वृक्षः अस्ति।– वृक्षाः सन्ति। बालकः अस्ति।– बालकाः सन्ति। गायकः अस्ति।– गायकाः सन्ति।
लेखकः अस्ति।– लेखकाः सन्ति। बालिका अस्ति। बालिकाः सन्ति। पत्रिका अस्ति। पत्रिकाः सन्ति। पत्रम् अस्ति।पत्राणि सन्ति। पुष्पम् अस्ति।पुष्पाणि सन्ति। मन्दिरम् अस्ति।मन्दिराणि सन्ति। फलम् अस्ति। फलानि सन्ति। पर्णम् अस्ति। पर्णानि सन्ति।
अङ्कणि अस्ति। अङ्कण्यः सन्ति। लेखनी अस्ति। लेखन्य सन्ति।
इदानीम् एकम् अभ्यासं कुर्मः।
बालिकाः सन्ति। बालकाः सन्ति। बालकः एकवचनं वाक्यं वदति। बालिकाः बहुवचनं रूपं वदन्तु।तस्य वाक्यस्य बहुवचन रूपं वदति।
बालिकाः एकवचनं वाक्यं वदति। बालकाः परिवर्त्तनन्ति। अस्तु वा। अस्तु। पुस्तकम् अस्ति।पुस्तकानि सन्ति। लेखनी अस्ति। लेकण्याः सन्ति। घटी अस्ति। घट्याः सन्ति। सः छात्रः। ते छात्राः। सः पुरुषः। ते पुरुषाः। सः कः। सः पुरुषाः। ते के। ते पुरुषः। कः पुरुषः। सः पुरुषः। ते पुरुषाः। ते के। ते पुरुषाः। के पुरुषाः। ते पुरुषाः। हस्तं दर्शयन्तु। अक्षता उत्तिष्ठन्तु। ताः बालिकाः। सा बालिका। सा पेटिका। ताः पेटिकाः। सा का। ताः काः। का पेटिका। सा पेटिका।
काः पेटिका। ताः पेटिकाः। तत् चित्रम्। ताणि चित्राणि। तत् किम्। ताणि कानि। ते वृक्षाः। एते वृक्षाः। एते छात्राः। ताः घट्यः। ते के। एते के। एताः बालिकाः। एताः घट्यः। ताः बालिकाः। एताः काः। ताः घट्यः। काः घट्यः। तानि फलानि। एतानि फलानि। एतानि पुस्तकानि। तानि पुस्तकाणि। एतानि फलानि। एतानि कानि। तानि फलानि। भवान् बालकः। भवन्तः बालकाः। भवती बालिका। भवत्यः बालिकाः। अहं भारतीया। वयं के। वयं भारतीयाः। वयं भारतीयाः।
अहं देशभक्त्तः। वयं देशभक्ताः। भवन्तः बालकाः। भवन्तः के। वयं बालकाः। भवत्यः बालिकाः। भवत्यः काः। वयं बालिकाः। अहम् एकवचनं वदामि। भवन्तः बहुवचनं वदन्तु। एकम् अभ्यासः कूर्मः। अहं भारतीयः।अहं राष्ट्रभक्तः। अहं चतुरः। अहं मूर्खः। वयं मूर्खाः।
सिद्धिरस्तु।

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 11. मिथिला आ’ संस्कृत

11. मिथिला आ’ संस्कृत

कामेश्वरसिंह दरभङ्गा संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा त्रैमासिकी संस्कृत पत्रिका ‘ विश्वमनीषा’ निकलैत छल। 1975 ई. सँ 1994 ई. धरि ई पत्रिका प्रकाशित होइत रहल, मुदा 14 वर्षसँ एकर प्रकाशन बंद अछि। हिन्दीमे मिथिलाक इतिहासक अतिरिक्त सात खण्डमे मैथिलीक परम्परागत नाटकक ( 1300 ई. सँ 1900ई. धरिक 16 टा नाटक)प्रकाशन कएल गेल छल। मैथिलीमे पं गोविन्द झा लिखित वातावरण नाटकक संस्कृत अनुवाद श्री पं शशिनाथ झा कएलन्हि आ’ तकरा विश्वविद्यालय प्रकाशित कएलक। ‘ स्मृति-साहस्री’ जे 20म शताब्दीक विद्वान्-साधकक जीवन पर आधारित प्रथम मैथिली महाकाव्य अछि, आ’ जकर रचयिता श्री बुद्धिधारी सिंह’रमाकर’ छथि केर प्रकाशन सेहो विश्वविद्यालय कएने अछि। रूपक समुच्चयः नामक पुस्तकमे चारि गोट रूपक अछि। एहि मे चारिम संस्कृत रूपक म.म.अमरेश्वर कृत धूर्त्तविडम्बन प्रहसनम् मैथिली अनुवादक संदेल गेल अछि। म.म. भवनाथ उपाध्यायक राजनीतिसारः सेहो मैथिली अनुवादक संग देल गेल अछि।

संप्रति विश्वविद्यालयक कार्य सालमे एकबेर पंचाङ बनेबा धरि सीमित बुझाइत अछि।

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 14. प्रवासी मैथिल English मे

14. प्रवासी मैथिल English मे
King Videha of Mithila had his counsellor Mahosadha.Mithila was invaded by Sudhanvan, king of Sankaiya, and much later by Chulani Brahmadatta and Kewatta, king of Kampila both were defeated by Siradhvaja and Videha, respectively. Jataka story of king Videha and Mahosadha,commander. Secret service reported daily ,employed a hundred and one soldiers in as many cities,employed parrots also, great rampart,watchtowers, and between the watctowers,three moats, water,mud and a dry moat. In city old houses were restored and large banks were dug made warter-reservoirs and grain store-houses. The siege of Mithila and the great tunnel have been described in the Jataka.The weapons included,red-hot missiles,javelins,arrows,spears and lances,and showers of mud and stone. The society consisted of Brahmanas, Kshatriyas, Vaisyas. Sirivaddha, father of Mahosadha was an important merchant of Mithila. The Chandala is also referred.A hawk carried off a piece of flesh from the slab of a slau¬ghter-house. A dog fed upon the bones, skins of the royal kitchen. There was a type of education and later Videha students went to Takshsila for education,e.g.Pintguttara. Kahoda Kaushitaki was married to the daughter of his teacher Uddalaka Aruni. Suka visited Mithila to acquire wisdom. Srutadeva was a great scholar of pre-Bharata era. Agriculture and Cattle-rearing was in vogue and Yajur-Veda mentions famous cows of Videha.King Vedeha gave a thousand cows and a bull to Mahasodha. There was a place where foreign merchants showed their goods. Goods from Magadha and Kasi were imported. The conches of Magadha,Kasi-robe and Sindh mares were famous.Krishna visited Mithila to see his devotees Srutadeva and Bahulashva.The Mahabharata says that shaligrama is another name of Vishnu, Shaligrama worship begun. Janakpur had four gates were four market towns distinguished as eastern, southern, western and northern. There was a revival of Mithila after Bharata war which lasted for more than two centuries and in this period the famous sages of the Brahmanas, the Aranyakas and the Upanishads flour¬ished. Vaishali lost its significance. After Bharata War period the Puranas furnish genealo¬gies of Pauravas(Hastinapura-Kosambi), the Ikshvakus (Kosala) and the Barhadrathas (Mag adha).The names of the kings of Videha ia available in the Jatakas.The Upanishads mention one ruler known as Janaka Videha.Videha has been omitted in the sixteen Mahajanapada available in the Buddhist work Aiguttara-Nikaya where we have Vajji.Karala Janaka perished along with his king-dom and relations. Kasi was conquered by Kosala and Anga by Magadha. The Vajji established their republic before the Kosala conquest of Kasi and the Magadh conquest of Anga.Mall, the penultimate sovereign of the Janaka dynasty of Videha, adopted the faith of the Jaina Parsva, the first historical Jaina 250 years before Mahavira(561BC-490BC).Between Bharat war circa.950 BC and Karala Janaka circa 725 B.c Videha monarchy flourished.
Suruchi group consisting of Suruchi I, Suruchi II Suruchi III and Mahapadmanada.
Janaka group consisting of Mahajanaka I, Arittha¬janaka, Polajahak, Mahajanaka II and Dighavu.Then a group of two kings Sadhina and Narada and then Nimi and Karala(father and son).Makhadeva is regarded as the founder of Mithila monarchy.
Angatis was righteous king,had a daughter named Raja. His ministers were Vijaya, Sunama and Alata. Narada set him to right path after the influence he got from the heretical teachings of a naked Guna Kassapa. Purana Kassapa and Maskari Gosala were the contemporaries of Buddha, thus, Guna Kassapa flourished round 6th century B.C. Chulani Brahmadatta of Kampilya conquered 101 princes of India and only Videha had been left. There is reference that Gandhara king and the Videha king met and mystic meditation was taught to Videha King by Gandhara king.There were land owners and Alaras is mentioned in this regard.The Vedic texts mention Uddalaka and Svetaketu as belonging to the age of Janaka of Videha. The Jatakas mention these two scholars connected with Banaras.For MahapanadaVisvakarman, engineer, constructed a palace seven storeys high with precious stones. Mahajanaka II was brought up by his mother in the house of a Brahmana teacher at Kalachampa and after finishing his education at16 sailed for Suvarnabhumi on a commercial enterprise, in order to get mone to recover the kingdom of Videha. The ship perished in the middle of the ocean. He managed to reach Mithila, where the throne had been lying vacant since the death of Polajanak, his uncle, who had left a marriageable daughter Sivalidevi and no son. Mahajanaka II was now married to this princess and raised to the throne. He later renounced the world. A remarkable feature of the character of Mahajanaka II was his spirit of renunciation. He gives utterance to a famous verse :¬ ‘We have nothing own may live without a care Mithila palaces may burn,nothing mine is burned . Mahajanaka-Jataka is sculptured on a railing of the Bharhut Stupa having inscription : The arrowmaker, King Janaka, Queen Sivali.Nimi and Kalara are men¬tioned in Buddhist,Brahmanical and Jaina literature. Ugrasena Janaka revived the greatness of Mithila. Ashtavakra sais as all other mountains are inferior to the Mainaka, as calves are inferior to the ox, so kings of the earth inferior to the king of Mithila (Ugrasena). He is called Janakana varishtha Samrat(Mahabharata),great performer of sacrifices and is compared with Yayati. In one such Yagya Ashtavakra, son of Kahoda and Sujata (daughter of Uddalaka), attended and Ashtavakra defeated Vandin, son of a charioteer and got released his son.Paurava prince, Satanika, the son of Janamejaya, was a Vaidehi. Sathnika married the daughter of Ugrasena Janaka who sought to enhance his influence by means of this matrimonial alliance. Devarata II was contemporary of Yajnavalkya, who took the management of the royal sacrifice where a quarrel arose between Yajnavalkya and his maternal uncle Vaisampayana as to who should be allowed to take the sacrificial fee and in presence of Devala, Devarata, Sumanta, Paila and Jaimini Yajnavalkya took half of that. Devarata I obtained the famous bow of Siva. The Vedic texts mention five Videha kings,Videgha Mathava, Janaka Vaideha, Janaki Ayasthuna, Nami Sepya and Para Ahlara. Janak Ayasthuna in the Brihadaranyaka Upanishad is said to be pupil of Chuda Bhagavitti and a teacher of Satyakama Jabala. Satyakama Jabala is contemporary of Janaka Vaideha and Yajnavalkya. Ayasthuna was a Grihapati of those whose Adhvaryu was Saulvayana and taught the latter the proper mode of using certain spoons. Sayana Ayasthuna is the name of a Rishi. Jatak mentions a city named Thuna between Mithila and the Himalayas, a favourite resort of Ayasthuna. Janakpur corres-ponds exactly with the position assigned by Hiuen Tsang the capital of Vaji. Janaka Vaideha is Kriti Janaka, son of Bahulasva and was contemporary of Janamejaya Parikshita and his son Satanika. Yajnavalkya and Kritis were the disciples of Hiranyanabha Kausalya. Uddalaka Aruni was approached by Janamejaya Parikshita to become his priest. Uttanka instigated Janamejaya to exter¬minate the non-Aryan Sarpas by burning them in a sacrifice.Uddalaka Aruni with his son Svetaketu attended the Sarpa satra of Janamejaya. Yajnavalkya taught the Vedas to Satanika, the son and successor of Janamejaya.Kriti, the disciple of Hiranyanabha, was the son of a king. Janaka Videha was a contemporary of Uddalaka Aruni,Yajna¬valkya, Ushasti Chakrayana. Janaka Vaideha brought centre of political and intellectual gravity from the Kuru country to Videha.The royal seat of the main branch of the Kuru or Bharata dynasty shifted to Kausambi. Aitareya Brahman says that all kings of the are called Samrat. Satapatha¬ Brahman says that the Samrat was a higher authority than a Rajan as by the Rajasuya he becomes Raja and by Vajapeya he becomes Samrat.
The Kuru ¬Panchalas were called Rajan. Janaka Vaideha’s was a master of Agnihotra sacrifice. Yajnavalkya learnt the Agnihotra from this king. Yajnavalkya Vajasaneya, who was a pupil of Uddalaka Aruni.


सिद्धिरस्तु
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Wednesday, July 23, 2008

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 14. प्रवासी मैथिल English मे

14. प्रवासी मैथिल English मे
Uposatha is the Buddhist fast day,Upagupta was a famous Buddhist saint. A Jataka mentions a king of Videha and calls him Vedeha . He is made a contemporary of Chidani Brahmadatta of Kampilya who conquered all except Videha in the course of a little over seven years but was defeated by Vedeha due to the superior wisdom of the Videhan minister, Mahosadha. A new era of close intellectual co-operation between Videha on one side and the Kuru-Panchala country on the other . Bahulaiva is represented as the king of Mithila in the Bhagavata. There lie is depicted as a contemporary and devotee of Krishna who paid a visit to Mithila to see his Brahmana friend Srutadeva, so Bahulaiva flourished slightly before the Bharata War.Two events given in Purana belong to the reign of Bahulaiva, the visit of Balarama and Krishna to Mithila in search of a jewel and Duryodhana's training there under Balarama and the visit of Krishna to Mithila to show favour to Srutadeva and Bahulaiva. Krishna, Bhima and Arjuna went to Girivraj to have a fight with Jarasandha of Magadha, this event occurred in the reign of Bahulaiva of Mithila through which territory the three passed in their journey from Indraprastha to Rajagriha.A king of Mithila, called Janaka, was the disciple of Vyasa Krishna Dvaipayan who used to officiate at the sacrifices. Vyasa had a high opinion of the learning of his disciple. He asked his son Suka to go to him to learn the science of libera¬tion. Janaka received and instructed his son who later reported this to his father. This Janaka was Bahulaiva. The Bhagavata says that Suka was also with the Rishis who accompanied Krishna to Mithila to see Bahulaiva and Srutadeva. There were Jankriti, the last of the Janaka dynasty, might flourish even after Yudhishthira.The Puranas conclude with the remark that with Kriti ends the race of the janakas.We Know from Arthashashtra that Karala Janaka brought the line of Vaideha to an end. Karala is represented as the son of Nimi, whereas Kriti was the son of Bahula.Karala Janaka, king of Mithila, is known to the Brahmanical literature. Kriti flou¬rished after Siradhvaja but not after Vedic Janaka. Karala is reported to be cruel and unscrupulous. The names of Bahulaiva ,one with many horses and. Kriti,performance.The list of Puranas appears to be continuous and there is no apparent break, it is presumed that other Janakas are to follow. So, Kriti is not the last Janaka,who is a distinct Karala Janaka. The Puranas are assumed to have been narrated in the reigns of the Paurava king Adhisimakrishna, the Aikshvaku. Bahulaiva, the king of Mithila is a contem-porary of Krishna in the Bhagavata, his son Kriti cannot be identified with Karala on any account.With Kriti the main regular line of the Janakas closed and after him came irregular lines of the Janakas as we know from the¬ Jatakas and the Mahabharata.One of the clans of the Vajjian Republic were the Kauravas. Pandu, the Kuru king, get strengthened by the treasure and army from Magadha, went to Mithila and defeated the Videhas in battle. Vaideha Kritakshana was one of the princes who waited upon Yudhishthira in his palace newly constructed by Maya. He was Kriti as a Yuvaraja or as a King. Krishna, Bhima and Arjun on their way from Kuru to Rajagir, for fighting Jarasandha, took circuitous route through Mithila to avoid detection.Videha was a friendly country. The Videhas were defeated by Bhima on his digvijaya in the east and was staying with Vaidehas and then he could defeat other powers with comparative ease. The rivalry between the sons of Pandu and Dhritarashtra had its effect on the Videhas and Karna defeated these people and caused them to pay tribute to Duryodhana.Vaidehas were vanquish¬ed by Arjuna on the battle of bharata.At one place in Mahabharata the Videhas along with others attacked Arjuna, at another place they are in the army of Yudhishthira and are slain by Kripa.Balarama who did not take part in the Bharata war took refuge during the period in Mithila thus it may be surmised that Videha kings remained neutral in Bharata war.Pandu had conquered Mithila, Bhima subdued the Rajas of Mithila and Nepal but Duryodhana came to Mithila to learn Gada Yudha from Balarama, when Krishna and Balarama were in Mithila in quest of Syamantakamani. Later Balarama went on a pilgrimage and visited the ashrama of Pulaba-Salagrama and the Gandaki. After the Bharata war the Puranas do not provide us with any genealogical list for Videha and for this information is available from the Mahabharata and the Jatakas. Videhan king was reputed for the welfare and all were versed in the discourses of atman the grace of the Lord of the Yogas they were all free from the conflicting passions such as pleasure and pain, though they were leading a domestic life. The Buddhist literature mentions Makhadeva of Mithila and all his 84000 successors and says that they adopted the lives of ascetics after ruling over the kingdom.The kings of Videha are known to be sacrificers. Nimi and Vasishtha had a quarrel and cursed each other to become bodiless,i.e.,Videha. Both then went to Brahma and he assigned Nimi to the eyes of the creatures to wink ,i.e., nimesha, and said Vasishtha should be son of Mitra and Varuna with the name Vashistha. This fable just supply a reason for the birth from Mitra and Varuna. It says that long sacrifices were performed by the Videhan kings. Other famous sacrificers were Devarata and Siradhvaja. Devarata obtained the bow of Shiva which centred the sacrifice of Siradhvaja. The Yajna¬vata of Siradhvaja correspond to the sacrificial areas with temporary residences of members of the kingship in the manner described in YajurVeda. The barber who found a grey hair in Makhadeva's head got grant of a village, equivalent to a hundred thousand pieces of money. The King Satadyumna , Siradhvaja's second successor , gave a house to the¬ Brahmana Maudgalya descendant of King Mudgala of North Panchala. Vedeha, king of Videha, gave Mahosadha a thousand cows, a bull and an elephant and ten chariots drawn and sixteen excellent villages and the revenue taken at the four gates, when he was pleased with an answer given by him. Before becoming king he lived as a prince and ruled as a viceroythe the maneer exactly in the case of Makhadeva. The eldest son succeeded the throne when the old king adopted the life of an ascetic. The king was assisted by his ministers and the priest played an important role and the sages instructed the king. King Vedeha of Mithila had four sages, Senaka, Pukkusa, Kavinda and Devinda , who instructed him in the law. Senaka was most important and Senaka and Pukkusa were counsellors

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 13. रचना लिखबासँ पहिने...

13. रचना लिखबासँ पहिने...
जेना मात्रिक छन्द वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि, तहिना स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओहि युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- 1. उदात्त 2. उदात्ततर 3. अनुदात्त 4. अनुदात्ततर 5. स्वरित 6. अनुदात्तानुरक्तस्वरित
7. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओला पर उत्पन्न होइत अछि।)।
1. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नहि अछि। 2. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। 3. अनुदात्त- जे कण्ठादि स्थानमे अधोभागमे उच्चारित होइछ।नीचाँमे तीर्यक चेन्ह खचित कएल जाइछ। 4.अनुदातात्ततर- कण्ठादिसँ अत्यंत नीचाँ बाजल जाइत अछि। 5. स्वरित- जाहिमे अनुदात्त रहैत अछि किछु भाग आ’ किछु रहैत अछि उदात्त। ऊपरमे ठाढ़ रेखा खेंचल जाइत अछि, एहिमे। 6. अनुदाक्तानुरक्तस्वरित- जाहिमे उदात्त, स्वरित किंवा दुनू बादमे होइछ ,ई 3 प्रकारक होइछ। 7.प्रचय-स्वरितक बादक अनुदात्त रहलासँ अनाहत नाद प्रचयक,तानक उत्पत्ति होइत अछि। (अनुवर्तते)

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी

12. भाषा आ’ प्रौद्योगिकी
आब किछु बात यूनीकोड आ’ वेबसाइट केर संबंधमे।
कोनो फाइलकेँ पढ़बाक हेतु कंप्युटरमे आवश्यक फॉंट होयब जरूरी अछि, नहि तँ सभसँ सरल उपाय अछि, वर्ड डोक्युमेंटकेँ पी.डी.एफ. फाइलमे परिवर्त्तित करू। एहिमे नफा नुकसान दुनू अछि। नफा जे बिना कोनो फांटक झंझटिक पी.डी.एफ.फाइल जाइ लिपिमे लिखल गेल अछि, ताहिमे पढ़ल जा’ सकैत अछि। एकर नुकसान जे जखने फाइलमे जा’ कय सेव एज टेक्स्ट करब तँ अंग्रेजीतँ सेव भय जायत, मुदा देवनागरी तेहन सेव होयत जे पढ़ि नहि सकी। दोसर यूनीकोडक मंगलमे टाइप कएल डॉक्युमेंटकेँ एडोब अक्रोबेटसँ पी.डी.एफ.मे परिवर्त्तित करबामे दिक्कत होय तँ संपूर्ण फाइलकेँ खोलि कय सेलेक्ट करू यूनीवर्सल यूनीकोड एम.एस.फांट ड्रॉप डाउन मेनूसँ सेलेक्ट करू फेर प्रिंटमे जा कय प्रिंटर एडोब एक्रोबेट सेलेक्ट करू। आब ई फाइल परिवर्त्तित भय जायत पी. डी. एफ.मे। आब वेबसाइट बनेबाक पूर्व किछु मुख्य बातकेँ देखि लिय’। चारि तरहक इंटरनेट ब्राउजर अछि, शेष सभटा एकरा सभकेँ आधार बना कय रचित अछि। तखन सभसँ पहिने ई चारू अपना कंप्युटरमे इंस्टॉल करू. 1.ओपेरा 2.मोजिल्ला 3.माइक्रोसॉफ्टक इंटरनेट एक्सप्लोरर(ई तँ होयबे करत) आ’ चारिमक बीटा(प्रायोगिक) वर्सन आयल अछि, 4. एपलक,अखन तक मेकिनटोसक लेल छल ई, सफारी (विंडोजक हेतु)। आब जखन वेब पेज उपलोद करू वा पहिनहु तँ एहि चारू पर खोलि कय जरूर देखि लिय’।(अनुवर्तते)

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 11. मिथिला आ’ संस्कृत

11. मिथिला आ’ संस्कृत

कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालयसँ प्रकाशित दोसर नाटक अछि- महाकवि विद्यापतिक गोरक्षविजय नाटक। एहिसँ पहिने कृष्ण पर आधारित नाटक प्रचल छल। एहि अर्थमे ई एकटा क्रांतिकरी नाटक कहल जायत।
नाथ संप्रदाय किंवा गोरक्ष संप्रदायक प्रवर्त्तक योगी गोरक्षनाथक कथा ल’ कय एहि नाटकक कथावस्तु संगठित भेल अछि।गोरक्षनाथक गुरु मत्स्येन्द्रनाथ योग त्यागि कदलिपुरमे राजा 18 टा रानीक संग भए भोग कए रहल छथि। गोरक्ष आ’ काननीपादकेँ द्वारपाल रोकि दैत अछि।मंत्री ढोलहो पिटबा दैत अछि जे योगी सभक प्रवेश कतहु नहि हो आ’ रानी सभकेँ राजाक मोन मोहने रहबाक हेतु कहल जाइत अछि। गोरक्ष आ’ काननपाद नटुआक वेष धरैत छथि आ’ मोहक नृत्य राजाकेँ देखबैत छथि। एहि बीच राजाक एकमात्र पुत्र बौधनाथ खेलाइत-खेलाइत मरि जाइत अछि। राजाक शंका नट पर जाइत छैक तँ ओकरा मारबाक आदेश होइत छैक। नट बच्चाकेँ जिया दैत छैक। राजा हुनकर परिचय पुछैत छथि तखन ओ’ हुनका अपन पूर्व जन्मक सभटा गप बता दैत छन्हि, जे अहाँ तँ जोगी छी भोगी नहि।
एहि नातकक पात्रमे महामति(राजाक मंत्री) आ’ महादेवी- मत्स्येन्द्रनाथक ज्येष्ठ रानी सेहो छथि। मत्स्येन्द्रनाथ कदलीपुरक राजा आ’ पूर्व जन्मक योगी छथि। मत्स्येन्द्रनाथ अंतमे कहैत छथि जे गोरक्ष जेहन शिष्य हो आ’ महादेवी जेहन सभ नारी होथु। --------

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 10. पंजी प्रबंध लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार

10. पंजी प्रबंध
लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार
भारतीय इतिहासक वेत्ता ओ’ जातीय व्यवस्थाक मर्मज्ञ लोकनि जनैत छथि, जे भारतवर्षक ब्राह्मण लोकनि सर्वप्रथम वेदक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित रहथि। जेना- सामवेदी, यजुर्वेदी, आदि कहाबथि। मुदा समयक प्रभावमे भिन्न क्षेत्र-प्रक्षेत्रमे रहनिहार ब्राह्मण लोकनि भिन्न-भिन्न संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह। क्षेत्रीय संस्कृतिसँ प्रभावित होएबाक मुख्य कारण छल विशिष्ट क्षेत्रक विशिष्ट जलवायु, क्षेत्र विशेषक भाषा-विशेष, भिन्न-भिन्न क्षेत्रक भिन्न-भिन्न आहार एवम भेष-भूषा आ’ एक क्षेत्र सँ दोसर क्षेत्र जयबाक हेतु आवागमनक असुविधा आदि। फलतः क्षेत्र-विशेषक ब्राह्मण समुदाय, क्षेत्र विशेषक आचार-विचार, खान-पान,वेश-भूषा ,भाव-भाषा ओ’ सभ्यता संस्कृतिसँ प्रभवित भय गेलाह।
उपरोक्त कारणे पुरानक युग अबैत0-अबैत भारत वर्षक ब्राह्मण समाज भिन्न-भिन्न क्षेत्रक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित भए गेलाह। पुरानक सम्मतिये भारत-वर्षक समस्त ब्राह्मण समाजकेँ दस(10) वर्गमे विभाजित कएल गेल रहय। ब्राह्मणक ई दसो वर्ग थीक-उत्कल,कान्यकुब्ज,गौड़,मैथिल,सारस्वत, कार्णाट,गुर्जर, तैलंग,द्रविड़ ओ’ महाराष्ट्रीय। स्थूल रूपेँ पूर्वोक्त पाँच केँ पञ्च गौड़ आ’ अपर पाँचकेँ पञ्च द्रविड़ कहल जाइत अछि। एकर सीमांकन भेल विन्ध्याचल पर्वतक उत्तर पञ्च गौड़ ओ विन्ध्याचल पर्वतक दक्षिण पञ्च द्रविड़।
मैथिल ब्राह्मण
पञ्च गौड़ वर्गक मैथिल ब्राहमण लोकनि पुस्ति-दर-पुस्त सँ मिथिलामे रहबाक कारणेँ मिथिलाक विशिष्ट संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह, तँय अहि कारणेँ पुराणक युगमे मैथिल ब्राह्मण कहाए सुप्रसिद्ध भेलाह। मिथिला वस्तुतः प्राचीन राहवंशक राजधानी रहए। मुदा पश्चातक युगमे विदेह राजवंशक समस्त प्रशासित क्षेत्र अथवा जनपद मिथिला कहाए सुप्रसिद्ध भेल आ’ एहि जनपदक रहनिहार ब्राह्मण लोकनि मैथिल ब्राह्मण कओलन्हि। ई मिथिला आइ नेपाल ओ’ बंगलादेशक सीमा सँ सटैत अनुवर्त्तमान अछि, जे राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसँ अपन एक विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
मैथिल ब्राह्मण लोकनि मूलतः दुइए गोट वेदक अनुयायी थिकाह। एक वर्गक यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक अनुयायी थिकाह तँ दोसर सामवेदक कौथुम शाखाक अनुगमन करैत छथि। यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक अनुयायी”वाजसनेयी” कहबैत छथि, एहिना सामवेद्क कौथुम शाखाक अनुयायी छन्दोग कहबैत छथि।दुहुक संस्कारमे किछु स्थूलो अन्तर अछि। छन्दोग उपनयनमे चारि गोट संस्कार- नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन ओ समावर्त्तन मुदा वाजसनेयीक ई चारू संस्कार थिक, चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ ओ समावर्त्तन। एहिना छन्दोग विवाह मुख्यतः दू खण्डमे सम्पन्न होइत अछि, पूर्व विवाह आओर उत्तर विवाह। उत्तर विवाह सूर्यास्तक बाद तारा देखि कए होइत अछि। मुदा वाजसनेयी विवाहमे एहन कोनो विभाजन नहि अछि। एकहि क्रममे दिन अथवा रातिमे कखनहुँ भए सकैत अछि। वाजसनेयी ओ’ छन्दोगक धार्मिक संस्कारमे तँ सूक्ष्म अंतर कतौक अछि।
(अनुवर्तते)