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Thursday, July 24, 2008

विदेह (दिनांक 01 मार्च, 2008) वर्ष: 1 मास: 3 अंक: 5 3. महाकाव्य महाभारत (आँगा)

3. महाकाव्य
महाभारत (आँगा) ------
2.सभा पर्व
मय दानव छल कय रहल नव निर्माण,
सभा भवनक दिन-राति लागि उत्थान।
स्फटिकसँ युक्त शीसमहल सन कौशल,
युधिष्ठिर ओतहि तखन सिंहासन बैसल।
ऋषि नारदक आगमन भेल ओतय जाय,
देलन्हि करबाक यज्ञ जे राजसूय कहाय।
बजाओल द्वारकासँ कृष्णकेँ समाद पठाय,
कृष्ण कहलन्हि सभा भवनमे आबि कय,
जरासंध मगधक नरेश रहत गय यावत।
राजसूय सफल नहि होमय देत तावत।
बंदी बनेलक राजा लोकनिकेँ ओ’हराय,
आक्रमण ओकर भेल मथुरा पर बड्ड ,
हारि द्वारका राजधानी बनाओल जाय ।
युधिष्ठिर बात सुनैत भेलथि हतास सन,
भीम अर्जुन आशा बन्हेलन्हि भ्राता सुन।
क्षत्रिय-धर्म अछि शत्रुके वशमे करय,
कृष्ण,अर्जुन-भीम संग राजगृह चलल।
ब्राह्मण वेशधारी राजगीरक प्राचीर लाँघि,
पहुँचल सभ सोझे सभा-भवन जी-जाँति।
सत्कार करय चाहलक जरासंध बुझि विप्र,
ललकारा देलक किंतु भीम द्वंद-युद्धक शीघ।
दिन बीतल खत्मक नाम नहि लैछ ई युद्ध,
कृष्णक संकेत पाबि चीरल ओ’शरीर संधिसँ,
भीम तोड़ल शरीर जरासंधक उनटि फूर्त्तिसँ,
शरीर फेंकल दुहू दिशि उनटि एम्हर-ओम्हर,
मुक्त कएल कारागारसँ बंदी गण राजा सभकेँ।
जरासंध-पुत्र सहदेवकेँ दय मगध राजक गद्दी,
आपस भेलाह इंद्रप्रस्थ घुरलाह तीनू व्यक्त्ति।
पूर्व दिशि भीम उत्तर अर्जुन नकुल दक्षिण ,
सहदेव पश्चिम दिशा दिशि दिग्विजय खातिर।
विजय रथ नहि क्यो रोकि सकल हुनकर,
धन-धान्यसँ परिपूर्ण सभ आबि कएल तैयारी,
राजसूय यज्ञक भेल राजा सभक प्रस्थमे बजाही।
राजा लोकनि केँ दय समुचित कार्यक भार,
भीष्म-द्रोणकेँ यज्ञ-निरीक्षणक देल प्रभार।
कृष्ण विप्र चरण-धोबाक लेलन्हि काज ।
हस्तिनापुरसँ भीष्म,
द्रोणक संग भेल आगमन,
धृतराष्ट्र विदुर कृप अश्वत्थामा दुर्योधन दुःशासन।

(अनुवर्तते)

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