5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य
विशाल समुद्र
समुद्रक लहरिक तरंग
अनगिनत बेर दोहरा रहल अछि ।
उद्देश्यहीन अपने मुदा ओकर गान
कहिया कत’ सँ चलि रहल अछि ।
बेर बेर रेत पर बनल पदचिह्न
मेटा क’ तटसॅं घुरि जाइत अछि ।
जलक सभसॅं शक्तिशाली संगठन
सागरक रूपमे उपस्थित अछि ।
रातिक अन्हारोमे ओकर गर्जन
ओकर विशालताक आभास कराबैत अछि ।
गजेन्द्र ठाकुर-
के छथि
के छथि जिनकर हस्त-रेखमे,
अछि परिश्रमसँ बढ़ब लिखल।
के छथि जिनका ललाट मध्य,
परिश्रमक गाथा रहैछ सकल।
जे छथि सुस्त तकरे चमकैत,
अछि हाथक रेखा बुझूँ सखा,
जिनका घाम नहि खसन्हि,
छन्हि ललाट चमकैत,नहि बेजाय।।
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