13. रचना लिखबासँ पहिने... (आँगा)
1.पूर्वार्चिकमे क्रमसँ अग्नि, इन्द्र आ’ सोम पयमानकेँ संबोधित गीत अछि।तदुपरान्त आरण्यक काण्ड आ’ महानाम्नी आर्चिक अछि।आग्नेय, ऐन्द्र आ’ पायमान पर्वकेँ ग्रामगेयण आ’ पूर्वार्चिकक शेष भागकेँ आरण्यकगण सेहो कहल जाइछ। सम्मिलित रूपेँ एक प्रकृतिगण कहैत छी। 2.उत्तरार्चिक: विकृति आ’ उत्तरगण सेहो कहैत छी। ग्रामगेयगण आ’ आरण्यकगणसँ मंत्र चुनि कय क्रमशःउहगण आ’ ऊह्यगण कहबैछ- तदन्तर प्रत्येक गण दशरात्र, संवत्सर, एकह, अहिन, प्रायश्चित आ’ क्षुद्र पर्वमे बाँटल जाइछ। पूर्वार्चिक मंत्रक लयकेँ स्मरण क’ उत्तरार्चिक केर द्विक,त्रिक, आ’ चतुष्टक आदि (2,3, आ’ 4 मंत्रक समूह)मे एहि लय सभक प्रयोग होइछ। अधिकांश त्रिक आदि प्रथम मंत्र पूर्वार्चिक होइत अछि, जकर लय पर पूरा सूक्त(त्रिक आदि) गाओल जाइछ।
उत्तरार्चिक उहागण आ’ उह्यगण प्रत्येक लयकेँ तीन बेर तीन प्रकारेँ पढ़ैछ। वैदिक कर्मकाण्डमे प्रस्ताव, प्रस्तोतर द्वारा, उद्गीत उदगातर द्वारा, प्रतिघार प्रतिहातर द्वारा, उपद्रव पुनः उदगातृ द्वारा आ’ निधान तीनू द्वारा मिलि कय गाओल जाइछ। प्रस्तावक पहिने हिंकार (हिं,हुं,हं) तीनू द्वारा आ’ ॐ उदगातृ द्वारा उदगीतक पहिने गाओल जाइछ। ई पाँच भक्त्ति भेल। हाथक मुद्रा-
(अनुवर्तते)
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