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Friday, July 25, 2008

विदेह 15 मार्च 2008 वर्ष 1मास 3 अंक 6 3. महाकाव्य महाभारत (आँगा)

3. महाकाव्य महाभारत (आँगा)
बीच यज्ञमे उठल छल प्रश्न अग्र-पूजाक ,
भीष्मक सम्मति युधिष्ठिर पुछलन्हि जा’,
भीष्म कहल छथि श्रेष्ठ कृष्ण नृप बीच,
सहदेव सुनि वचन चरण पखारय लाग।

चेदिराज शिशुपालसँ सहल नहि भेल,
अपशब्द कृष्ण-भीष्मकेँ देब’ लागल,
दुर्यओधन-भ्राता प्रसन्न छल भेल,
भीमक क्रोध बढ़ल छल ओ,झपटल,
भीष्म रोकि शांत छल ओकरा कएल।
शिशुपालक गारि सुनियो छल कृष्ण प्रशांत,
छलाह किएकतँ ओ’पिसियौत कृष्णक,
दिन बीतल कृष्ण देलथि वचन दीदीकेँ एक,
सय अपराध क्षमा हम करब ओकर।

सय गारि सुनलाक उपरांत चलल सुदर्शन,
चक्र कएलक चेदिराजक शिरोच्छेद तखन,
सभा मध्य शांति – पसरल छल जाय,
शिशुपाल पुत्रकेँ चेदिक गद्दी पर बैसाय।

यज्ञक क्रिया निर्विघ्न संपन्न छल भेल,
सभ राजाकेँ ससम्मान विदा कएल गेल।
सभा भवनक चामत्कृत्यक भेल चर्चित,
दुर्योधन-शकुनि भवनकेँ देखल चकित।
नीँचा देखि मृग-मरीचिका बान्हल फाँढ़,
पानि नहि छल हसलि द्रौपदी ई जानि,
अयना सोँझा पारदरर्शी नहि ई देखल,
ओ’ चोटिल भीमक अट्टहाससँ विकल।
आँगा स्फटिक फर्श छल जकरा बुझल,
पानि भरल भीजल छल सभ हँसल।

अपमानित छल लय युधिष्ठिरसँ आज्ञा,
चलल हस्तिनापुर शीघ्रहि सभ भ्राता। (अनुवर्तते)

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