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Friday, July 25, 2008

विदेह 15 मार्च 2008 वर्ष 1मास 3 अंक 6 2. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आँगा)

2. उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आँगा)
गामक प्राइमरी स्कूलमे सभ कलाक परीक्षा होइत छल। संगीत, चित्र, नाटक। गाममे हारमोनियम, ढ़ोलक बजेनहार खूब रहथि। पहिने दुर्गा पूजाटामे नाटक होइत छल, मुदा पछाति जा’ क’ कृश्णाष्टमी, काली पूजा इत्यादिमे सेहो नाटक खेलेनाइ शुरू भ’ गेल। हरखाक रामलीला पार्टी सेहो एक महिना खेला क’ गेल छल। अहूमे दू चारि दिनमे रामलीलाक बीचमे नाटक होइत छल। शुरू भेल रामलीला पार्टी बिना बजेनहि। मुदा दू चारि दिन धरि माला क्यो न’ क्यो उठबैत गेलाह। रामलीला पार्टीक सभ कलाकारकेँ एक दिनक खेनाइक खर्चाकेँ माला उठेनाइ कहल जाइत छल। दूचारि दिनतँ माइक पर क्यो न क्यो जोशमे जा’ क’ हम माला उथायब तँ हम उठायब कहैत गेलाह, मुदा दू चारि दिनुका बाद रामलीला पार्टीक आर्द्र अनुरोधकेँ देखैत गौँका सभ टोलक अनुसार माला उठेबाक एकटा क्रम बना देलखिन्ह। ओहि समयमे ओकर एकटा चमत्कार छल, आ’ हम अपन कैरियर अभिनेताक रूपमे बादमे करबाक मोने-मोन इच्छा रखैत छलहुँ। ओहि समयमे शनि दिन स्कूलमे नाटक खेलेबाक प्लान शिक्षकगणक स्वीकृतिसँ बनल। नाटकक किताब कतएसँ आयत ताहि हेतु एकटा नाटक दानवीर दधीची लिखलहुँ। स्कूलक कलाकार सभकेँ एकत्र कएलहुँ। आब कलाकार सभक नाम तँ सुनू। पोटहा, लुल्हा, नेँगड़ा, पोटसुड़का,लेलहा,ढ़हीबला,कनहा, अन्हरा, तोतराहा,बौका,बहिरा ई सभ हमर बालकलाकार रहथि। कारण जे अपनाकेँ शुभ्र-शाभ्र बुझथि से किएक नाटक खेलेताह। दहीकेँ तोतराकेँ कहियो क्यो ढ़ही बजल तँ ओकर नाम ढ़हीबला भ’ गेलैक। सर्दीमे कहियो पोटा चुबैत रहि गेलैकतँ पोटहा भ’ गेल आ’ दोसर एहन भेल तँ दुनूमे अन्तर कोना करी। से ओ’ पोटा खसैत काल सुरकतो अछि से ओकर नाम भ’ गेल पोटसुरका। आँगा आऊ। ककरो अन्हरिया रातिमे ठेस लागि गेलैक तँ कोन अत्ततः भेलैक। हँ ओकर नाम अन्हरा भ’ गेलैक। बच्चामे देरीसँ बजनाइ शुरू कएने छलहुँ तँ अहाँ भ’ गेलहुँ बौका। सोझगर छी तँ लेलहा। गपकेँ अनठबैत छी तँ भेलहुँ बहिरा। नव घड़ी पहिरलाक बाद(घड़ी पाबनि दिन वनस्पतिक घड़ी) हाथ कनेक सोझ राखि लेलहुँ तँ भेलहुँ लुल्हा। तोतराइत तँ सभ अछि, मुदा कबियाठी टोलक छी तँ लोक नाम राखि देलक तोतराहा। कनेक डेढ़ भ’ ताकि देलहुँ आकि पिपनीकेँ उनटा क’ ककरो डरेलहुँ त’ भेलहुँ कनहा। ठेस लगलाक बाद कनेक झका क’ चललहुँ तँ भेलहुँ नेंगड़ा।
आ’ जौँ कनेक पाइ बलाक बेटा छी, आकि माय कनेक दबंग छथि तँ कनाह रहलो उत्तर क्यो कनहा कहि क’ देखओ। अस्तु एहि बाल कलाकार सभक संग शनि दिन होयत हमर नाटक दानवीर दधीची।

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