5. पद्य ज्योति झा चौधरीक पद्य
गामक सूर्यास्त
गामक सूर्यास्त
एक अद्भुत दृष्य यादि पाड़ि चकित भेलहुँ,
पोखरिक भीड़ पर हम ठाढ़ छलहुँ
आसमानक नीलवर्ण भेल रंगमय
दिया बातीक मुहुर्तमे सुर्य सबसॅं विदा लय
क्षितिजमे विलीन हुअ लागल
संग ओकर प्रकाशपुंज सेहो भागल
सबहक खरिहानमे लालटेन टिमटिमाय छल
पक्षी सब समदाओन गाबि रहल छल
सेहो ध्वनि मन्द पड़ि गेल
सॉंझ रातिमे बदलि गेल
फेरि स अगिला भोर मे पक्षिगण
गायत प्राती सब मिलि एक संग।
आ’ गजेन्द्र ठाकुर
होली
धुरखेलक कादो-माटिसँ रहथि अकच्छ, रंग अबीर भने आयल मुदा लगैछ टका,
साफ-सुथड़ा बुझैत छलहुँ एकरा मुदा, निबंध निकलैत अछि रंगक केमिकलक, विषय अछि पुरनके छल ठीक यौ कका।
दारू पिनहार सोमरसक चर्चा करैत नहि अघाइत छथि, देवतो पिबैत रहथि ओकरा पुरनका नामसँ, अछि होली,
मित्रता बढ़ेबासँ बेशी घटा रहल अछि आइ काल्हि ई।
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