Pages

Wednesday, July 22, 2009

सभ दिन रातिमे-अविनाश



सभ दिन रातिमे चारि टा लोक घरक देबाल
सभ दिन रातिमे ताशक कोटपीस
की कतहु किछु भ’ रहल छै गड़बड़
से के कहत?
सभ दिन रातिमे सजमनि सोहारी
सभ दिन रातिमे निन्नक खुमारी

विविध भारतीक छायागीतमे डूबल अछि लोक
ओ समय नहि जे
लोकमे डूबल अछि लोक
जीवनक पुरबा-पछबामे सदाबहार रेडियो
आ नेनपनक झिझिरकोना

बुचनूक घरमे क्यो नइं खेलकइ आइ
हम की क’ सकै छी भाइ?
क्यो की क’ सकैछ?
जखन देशक दुर्भाग्य
गाम-गाम
आत्मा बनि भटकि रहल हो
हम अपन सुखमे कते क’ सकैत छी बाँट-बखरा
हम अपन दुखकें कतेक पोसि सकै छी एकसर

हम एकसर पड़ल दुखी नागरिक
भयक बहन्ना छी बनौने
साँझमे बन्न क’ दै छी देशक दुर्दशाक विरुद्ध युद्ध
जेना युद्ध हो कोनो आॅफिसियल काज

सभ दिन रातिमे चकल्लस
सभ दिन रातिमे रंग-रभस

की हम सभ कोनो भोरक प्रतीक्षा क’ रहल छी?


3 comments:

  1. सभ दिन रातिमे चारि टा लोक घरक देबाल
    सभ दिन रातिमे ताशक कोटपीस
    की कतहु किछु भ’ रहल छै गड़बड़
    से के कहत?
    सभ दिन रातिमे सजमनि सोहारी
    सभ दिन रातिमे निन्नक खुमारी
    bad nik avinashji

    ReplyDelete
  2. हम एकसर पड़ल दुखी नागरिक
    भयक बहन्ना छी बनौने
    साँझमे बन्न क’ दै छी देशक दुर्दशाक विरुद्ध युद्ध
    जेना युद्ध हो कोनो आॅफिसियल काज

    सभ दिन रातिमे चकल्लस
    सभ दिन रातिमे रंग-रभस

    की हम सभ कोनो भोरक प्रतीक्षा क’ रहल छी?
    ati sundar

    ReplyDelete