जाति
उच्च जातिक बात सुनिते
आँखि मे किछु गड़ि रहल छै।
हम रहब चुपचाप तैयो
लोक अपने जड़ि रहल छै।
की केलहुँ हम कर्म अनुचित
जन्म भेटल उच्च कुल मे।
धैर्य स्व अभिमान भेटल
आत्मबल संतोष मन मे।
रक्त मे शुभ संस्कारक
बहि रहल अछि धार निर्मल।
प्रज्ज्वलित अछि भाल एखनहुँ
तेज सँ परिपूर्ण प्रतिपल।
कर्म मे विश्वास सदिखन
के हमर पुरषार्थ कीनत।
धर्म मे अछि आस्था ओ
के हमर अधिकार छीनत।
राजनीतिक स्वार्थ के ई
नीति आरक्षण उपज अछि।
योग्य जन छथि कात लागल
ज्ञानहीनक उच्च पद अछि।
अछि उचित नहि कर्म एखनहुँ
ज्ञान के पथ द्वेष बाँटब।
जाति के सीढ़ी बना क’
दान मे सम्मान बाँटब।
किरिण फुटतै फेर अपने
भोर के प्रतिबद्धता सँ।
हम रहब बढ़िते , अहाँ नहि
रोकि पायब दुष्टता सँ।
सतीश चन्द्र झा, राम जानकी नगर,मधुबनी
BAHUT NEEK, PRASANGIK AA SAMEECHEEN KAVITA....LAGATAR DU BER PARHALAU. WAAH! ATI SUNDAR.
ReplyDeletesatish ji,
ReplyDeleteaarakshana asaman vargak bich samanatak lel ekta hatiyar chhaik takaro bujhu
bahut nik prastuti....
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