बउवा पुछलक ,
बाबूजी सं,
कहियौ, ककरा,
कहैत छै - दहेज़ ?
बउवा , अहाँ के ,
विवाह में,
जे टाका लैबे,
गाडी लैबे,
घर में रखैबै ,
सबटा समान सहेज,
ई त हक़,
बनैत ऐछ हमर,
लोक कहैत ऐछ - दहेज़॥
मुदा अहाँ के,
छोटकी बहिन के,
विवाह के,
जखन आयत बेर ,
अहि सड़ल,
प्रथा सं, हमरा ,
भ जायत परहेज,
हमहूँ ढोल पीट,क,
गरियायब, आ कहबई,
कतेक लालची ,
ऐछ ई समाज,
माँगैत ऐछ - दहेज़॥
बउवा अखनो,
चकित- अचंभित,
नहीं बूईझ सकल,
ई भेद,
सबके पूछैत,
रहैत छै,
सैद्खैन, ककरा,
कहैत छै _ दहेज़ ?
अपन मिथिला मs पैल रहल दहेज़प्रथा पर आधारित अपने के कविता (ककरा,
ReplyDeleteकहैत छै _ दहेज़) बहुत निक रचना अछि, अहिना मिथिला के प्रति लिखैत रहू .....
dhanyavaad.
ReplyDeleteआत्मासँ हृदयसँ लिखल एहि ब्लॉगक सभ पद्य हृदयकेँ छुबैत अछि।
ReplyDeleteগজেন্দ্র ঠাকুব
हमहूँ ढोल पीट,क,
ReplyDeleteगरियायब, आ कहबई,
कतेक लालची ,
ऐछ ई समाज,
माँगैत ऐछ - दहेज़॥
ee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.
ReplyDeletedr palan jha