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Wednesday, July 23, 2008

विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 10. पंजी प्रबंध लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार

10. पंजी प्रबंध
लेखक- विद्यानंद झा पञ्जीकार
भारतीय इतिहासक वेत्ता ओ’ जातीय व्यवस्थाक मर्मज्ञ लोकनि जनैत छथि, जे भारतवर्षक ब्राह्मण लोकनि सर्वप्रथम वेदक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित रहथि। जेना- सामवेदी, यजुर्वेदी, आदि कहाबथि। मुदा समयक प्रभावमे भिन्न क्षेत्र-प्रक्षेत्रमे रहनिहार ब्राह्मण लोकनि भिन्न-भिन्न संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह। क्षेत्रीय संस्कृतिसँ प्रभावित होएबाक मुख्य कारण छल विशिष्ट क्षेत्रक विशिष्ट जलवायु, क्षेत्र विशेषक भाषा-विशेष, भिन्न-भिन्न क्षेत्रक भिन्न-भिन्न आहार एवम भेष-भूषा आ’ एक क्षेत्र सँ दोसर क्षेत्र जयबाक हेतु आवागमनक असुविधा आदि। फलतः क्षेत्र-विशेषक ब्राह्मण समुदाय, क्षेत्र विशेषक आचार-विचार, खान-पान,वेश-भूषा ,भाव-भाषा ओ’ सभ्यता संस्कृतिसँ प्रभवित भय गेलाह।
उपरोक्त कारणे पुरानक युग अबैत0-अबैत भारत वर्षक ब्राह्मण समाज भिन्न-भिन्न क्षेत्रक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित भए गेलाह। पुरानक सम्मतिये भारत-वर्षक समस्त ब्राह्मण समाजकेँ दस(10) वर्गमे विभाजित कएल गेल रहय। ब्राह्मणक ई दसो वर्ग थीक-उत्कल,कान्यकुब्ज,गौड़,मैथिल,सारस्वत, कार्णाट,गुर्जर, तैलंग,द्रविड़ ओ’ महाराष्ट्रीय। स्थूल रूपेँ पूर्वोक्त पाँच केँ पञ्च गौड़ आ’ अपर पाँचकेँ पञ्च द्रविड़ कहल जाइत अछि। एकर सीमांकन भेल विन्ध्याचल पर्वतक उत्तर पञ्च गौड़ ओ विन्ध्याचल पर्वतक दक्षिण पञ्च द्रविड़।
मैथिल ब्राह्मण
पञ्च गौड़ वर्गक मैथिल ब्राहमण लोकनि पुस्ति-दर-पुस्त सँ मिथिलामे रहबाक कारणेँ मिथिलाक विशिष्ट संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह, तँय अहि कारणेँ पुराणक युगमे मैथिल ब्राह्मण कहाए सुप्रसिद्ध भेलाह। मिथिला वस्तुतः प्राचीन राहवंशक राजधानी रहए। मुदा पश्चातक युगमे विदेह राजवंशक समस्त प्रशासित क्षेत्र अथवा जनपद मिथिला कहाए सुप्रसिद्ध भेल आ’ एहि जनपदक रहनिहार ब्राह्मण लोकनि मैथिल ब्राह्मण कओलन्हि। ई मिथिला आइ नेपाल ओ’ बंगलादेशक सीमा सँ सटैत अनुवर्त्तमान अछि, जे राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसँ अपन एक विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
मैथिल ब्राह्मण लोकनि मूलतः दुइए गोट वेदक अनुयायी थिकाह। एक वर्गक यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक अनुयायी थिकाह तँ दोसर सामवेदक कौथुम शाखाक अनुगमन करैत छथि। यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक अनुयायी”वाजसनेयी” कहबैत छथि, एहिना सामवेद्क कौथुम शाखाक अनुयायी छन्दोग कहबैत छथि।दुहुक संस्कारमे किछु स्थूलो अन्तर अछि। छन्दोग उपनयनमे चारि गोट संस्कार- नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन ओ समावर्त्तन मुदा वाजसनेयीक ई चारू संस्कार थिक, चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ ओ समावर्त्तन। एहिना छन्दोग विवाह मुख्यतः दू खण्डमे सम्पन्न होइत अछि, पूर्व विवाह आओर उत्तर विवाह। उत्तर विवाह सूर्यास्तक बाद तारा देखि कए होइत अछि। मुदा वाजसनेयी विवाहमे एहन कोनो विभाजन नहि अछि। एकहि क्रममे दिन अथवा रातिमे कखनहुँ भए सकैत अछि। वाजसनेयी ओ’ छन्दोगक धार्मिक संस्कारमे तँ सूक्ष्म अंतर कतौक अछि।
(अनुवर्तते)

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