8. संगीत शिक्षा
ई जे सातो स्वरक वर्णन पिछला अंकमे देल गेल छल ओकरासँ आगू आऊ। एहि सातू स्वरमे षडज आ’ पंचम मने सा आ’ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ होयबाक गुंजाइस नहि छैक। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ’ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर अछि से सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइस अछि एहिमे। सा आ’ प मात्र शुद्ध होइत अछि। आ’ आब विकृति भ’ सकैत अछि दू तरहेँ शुद्धसँ ऊपर स्वर जायत किंवा नीँचा। जदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ’ नीचाँ रहत तँ कोमल कहायत। म कँ छोड़ि कय सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, ग,ध, नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ’ शुद्ध। ’म’ केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ’ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह ग दैत अछि शांति म सँ होइत अछि भय ध सँ दुःख
आ’ नि सँ आदेश। (अनुवर्तते)
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