1. शोध लेख: मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध (आँगा)
श्री मायानान्द मिश्रक जन्म सहरसा जिलाक बनैनिया गाममे 17 अगस्त 1934 ई.केँ भेलन्हि। मैथिलीमे एम.ए. कएलाक बाद किछु दिन ई आकाशवानी पटनाक चौपाल सँ संबद्ध रहलाह । तकरा बाद सहरसा कॉलेजमे मैथिलीक व्याख्याता आ’ विभागाध्यक्ष रहलाह। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
हरकिसन अध्यायक प्रारम्भ 3400 वर्ष पूर्व होइत अछि।कृषि विकासक संग स्थायी निवासक प्रवृत्ति बढ़य लागल। आ’ तकरा बाद परिवारक रूप स्पष्ट होमय लागल। कृषि-विकाससँ वाणिज्य विस्तारक आवश्यकता बढ़ल। ऊनक वस्त्र, चक्की, भीतक घर आ’ इनारक घेराबा बनय लागल।
किसन अध्यायक प्रारम्भ 3300 ई.पूर्व भेल। श्रम-बेचबाक प्रारम्भ भेल। पटौनीक प्रारम्भक संग कृषि-विकास गति पकड़लक। भूगोल जानकारी भेलासँ वाणिज्य बढ़ल। अलंकारक प्रवृत्ति बढ़ल।
हरप्पा:मोहनगाँव अध्याय 3200 वर्ष पूर्व देखाओल गेल अछि।श्रम-बेचबाक हेतु काठक टोलक उदाहरण अबैत अछि। अलंकार प्रवृत्ति बढ़ल। गोलीक मालाक संक कुम्हारक चाक सेहो सम्मुख आयल। समाजमे वर्ग विभाजनक प्रारम्भ भेल।
गणेषक श्रीगणेष अध्याय 3100 ई. पूर्व प्रारम्भ भेल। दक्षिणांचल लोकक आगमन बाद हरप्पा हुनका ल्कनिक द्वारा बनेबाक चर्च लेखक करैत छथि। मोहनजोदड़ो, लोथल आ’ चान्हूदोड़ोक विकास व्यापारिक केन्द्रक रूपमे भेल। लिपि, कटही गाड़ी आ’ मूर्त्तिकलाक आविष्कार भेल आ’ वस्तु विनिमयक हेतु हाट लागय लागल।मेसोपोटामियाक जलप्लावन आ’ सुमेरी आ’ असुरक आगमनक चर्चा लेखक करैत छथि।
किश्न अध्यायक प्रारम्भ 3000 ई.पू. सँ भेल। विदेश व्यापारक आरम्भ भेल। तामक आविष्कार भेल। कृषि दासत्वक सेहो प्रारम्भ भेल। बाढ़िसँ सुरक्षाक हेतु ऊँच डीह बनाओल जाय लागल।
महाजन अध्याय 2800 पू. प्रार्म्भ होइत अछि। नगरक प्रारम्भ वाणिज्यक हेतु भेल। नहरि पटौनीक हेतु बनाओल जाय लागल। डंडी तराजूक आविष्कार आवश्यकता स्वरूप भेल। प्रकाशक व्यवस्थाक ब्योँत लागल।
मंडल अध्यायमे चर्च 2600 ई.पू.क छैक। संस्था निर्माण, विवाह व्यवस्था आ’ दूरक यात्राक हेतु पाल बला नावक निर्माण प्रारम्भ भेल।
किश्न मंडल अध्याय 2400 ई.पू. केर कालखण्डसँ आरम्भ कएल गेल अछि। एहिमे वर्षाक अभावक चर्चा अछि। आर्यक पूर्व दिशामे बढ़बाक चर्चासँ लोकमे भयक सेहो चर्चा अछि। मंडल:मंडली अध्याय 2200 ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल। आर्यक आगमनक आ’ वर्षाक अभाव दुनूकेँ देखैत लोथल वैकल्पिक रूपसँ विकसित होमय लागल।
पतन:पुरंदर: एहि अध्यायक कालखण्ड 2000 ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल अछि। आर्यक राजा द्वारा पुरकेँ तोड़ि महान केंद्र हड़प्पाकेँ ध्वस्त करबाक चर्चासँ मायानन्द जी अपन पहिल किताब ‘प्रथमं शैल पुत्री च’ केर समापन करैत छथि। आर्य हड़प्पाकेँ हरियूपियासँ संबोधित कएल, आर्य बाहरसँ अयलाह प्रभृत्ति किछु सिद्धांतक आधार पर रचित ई उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास होयबाक दावा करैत अछि। आ’ एहिमे 20,000 ई.पू.सँ 1800 ई.पू. तकक इतिहासोपाख्यानक चर्चा अछि। मुदा मौलिक एतिहासिक विचारधारा आ’ नवीन शोधक आधार पर एकर बहुतो बात समीचीन बुझना नहि जाइत अछि।
अग्नासँ शुरू भेल ई कथानक बड्ड आशा दिअओने छल। लेखक पहिल अध्यायमे लिखैत छथि जे पृथ्वीक उत्पत्ति लगभग 200 करोड़ वर्ष पूर्व भेल जे सर्वथा समीचीन अछि। कर्मकाण्डमे एक स्थान पर वर्णन अछि- “ ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री स्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्ठाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरणे” आ’ एहि आधार पर गणना कएला उत्तर 1,97,29,49,032 वर्ष पृथ्वीक आयु अबैत अछि। रेडियोएक्टिव विधि द्वारा सेहो ईएह उत्तर अबैत अछि। ई अनुमानित अछि जे यूरेनियमक 1.67 भाग 10,00,00,000 वर्षमे सीसामे बदलि जाइत अछि। विभिन्न प्रकारक पाथर आ’ चट्टानमे सीसाक मात्रा भिन्न रहैत अछि। एहि प्रकारसँ गणना कएला पर ई ज्ञात होइछ जे रेडियोएक्टिव पदार्थ 1,50,00,00,000 वर्ष पहिने विद्यमान छल। एहि प्रकारेँ कोनो शैलक आयु 2,00,00,00,000 वर्षसँ अधिक नहि भ’ सकैछ। यूरोपमे सत्रहम शाब्दी तक पृथ्वीक आयु 4000 वर्ष मानल जाइत रहल। ईरानक विद्वान 1200 वर्ष पहिने पृथ्वीक उत्पत्ति मनलैन्ह। ई दुनू दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ हास्यास्पद अछि। एहि तरहक पाश्चात्य शोधकेँ लेखक पहिल अध्यायमेतँ नकारि देलन्हि मुदा अंत धरि जाइत-जाइत ओ’ आर्य लोकनि हड़प्पाकेँ हरियूपिया कहैत छथि एहि प्रकारक पाश्चात्य दुराग्रहक प्रभावमे आबि गेलाह। पश्चिमी विद्वानक उच्छिष्ट भोजसँ बचि श्रुति परम्पराक परीक्षा तर्क आ’ श्रद्धाक मिश्रणसँ नहि कए सकलाह। एहि प्रकारे ‘प्रतमं शैल पुत्री च’ निम्न आधार पर अपन इतिहासोपाख्यान साहित्यिक रूपसँ नहि बना पओलक..............
(अनुवर्तते)
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